वीर सावरकर क्रांतिकारी, चिंतक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे. किसी भी स्वतंत्रता सेनानी की तुलना में सबसे ज्यादा सजायाफ्ता क्रांतिकारी होने का रिकॉर्ड सावरकर के नाम दर्ज है, यह अलग बात है कि सावरकर के संदर्भ में देश का मत दो वर्ग में विभाजित है, कोई उन्हें नेहरू जी से बड़ा और महान स्वतंत्रता सेनानी मानता है, वहीं कुछ लोगों के मन में इससे उलट धारणा है. वीर सावरकर की 57वीं पुण्यतिथि के अवसर पर इतिहासकार विक्रम संपथ की पुस्तक ‘सावरकर इकोज फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्ट’ में उल्लेखित वीर सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी यादों का उल्लेख करेंगे, जिसके बारे में अधिकांश लोगों को नहीं मालूम..
शुरुआती जीवन!
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक-देवलाली स्थित भगूर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और माँ का नाम राधाबाई था. सावरकर काफी कम के थे, जब उनके माता-पिता का निधन हो गया, इस वजह से उनकी परवरिश उनके बड़े भाई गणेश सावरकर के सानिध्य में हुई. उन पर उनके बड़े भाई की पूरी छाप थी. यहां तक कि आजादी की लड़ाई में कूदने की प्रेरणा भी उन्हें बड़े भाई से प्राप्त हुई थी. उन्होंने पुणे के 'फर्ग्युसन कॉलेज' से स्नातक की डिग्री हासिल की. सावरकर पहले स्नातक थे, जिनकी स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया. यह भी पढ़ें : Veer Savarkar Punyatithi 2023 Quotes: वीर सावरकर की पुण्यतिथि पर शेयर करें उनके ये 10 महान विचार और करें उन्हें नमन
‘फ्री इंडिया सोसायटी’ की स्थापना
स्नातक करने के बाद सावरकर को छात्रवृत्ति के साथ इंग्लैंड में लॉ की पढ़ाई का प्रस्ताव मिला. उत्तरी लंदन में छात्र निवास में रहते हुए उन्होंने ग्रेज इन लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ छात्रावास में रहते सावरकर ने ‘फ्री इंडिया सोसायटी’ का गठन कर साथ में रह रहे भारतीय छात्रों को देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया. सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई.
‘द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस!’
सावरकर '1857 के विद्रोह' की तर्ज पर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए शिवाजी के मूल शस्त्र 'गुरिल्ला युद्ध' की कल्पना की थी. 1857 के विद्रोह को केंद्र में रखकर उन्होंने ‘द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेंस’ शीर्षक से पुस्तक लिखी. इस पुस्तक ने तमाम भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया. हालांकि ब्रिटिश हुकूमत को पहले से इस बात का अंदेशा हो गया था, लिहाला उन्होंने पुस्तक की छपाई और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया.
गुरिल्ला युद्ध तकनीक
छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध की तर्ज पर सावरकर ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए गुरिल्ला-युद्ध एवं मैनुअल बम बनाकर दोस्तों में बांट दिया. उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना अधिकारी सर विलियम हट कर्जन वाइली की हत्या के आरोप मदन लाल ढींगरा का कानूनी बचाव भी किया.
50 साल की कैद की सजा?
सावरकर के लंदन प्रवास के दरम्यान उनके बड़े भाई ने 'भारतीय परिषद अधिनियम 1909' के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. ब्रिटिश पुलिस ने इस मामले को सावरकर से जोड़ते हुए उनके खिलाफ वारंट जारी किया. सावरकर ने पेरिस भागकर भीकाजी कामा के आवास पहुंचे. 13 मार्च, 1910 को ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 1911 में सावरकर को 50 साल कैद की सजा सुनाई,. 4 जुलाई 1911 को उन्हें अंडमान निकोबार के सेलुलर जेल (काला पानी) भेजा गया. जेल में सावरकर को खूब प्रताड़ित किया जाता था. उन्हें कोल्हू के बैल की तरह इस्तेमाल कर सरसों का तेल पेरा जाता था, ब्रिटिश अधिकारी उन्हें अपनी बग्घी में घोड़ों की तरह बांध कर दौड़ाती थी. वे पहले कवि थे, जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखी और फिर उन्हें याद रखा, जिसे उन्होंने जेल से छूटने के बाद लिखा.
वीर सावरकर की माफी सच!
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वस्तुतः यह माफीनामा एक सामान्य प्रक्रिया थी, जिसे फाइल करने का हर राजनीतिक कैदियों को कानूनी अधिकार था. इससे पूर्व पारिख घोष एवं सचिंद्र नाथ सान्याल ऐसी याचिकाएं दाखिल कर चुके थे. उन दिनों दुनिया भर के राजनीतिक बंदियों को यह सुविधा हासिल थी. सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, -जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, मैंने याचिका दायर की. कुछ इतिहासकारों का प्रश्न था कि अगर राजनीतिक बंदी की स्थिति में आपको बचाव का मौका मिलता है तो आप क्यों नहीं मुक्त होना चाहेंगे. फिर सावरकर इस जर्नी को नये सिरे से संचालित कर आगे बढ़ना था. गांधीजी ने भी 1920-21 में यंग इंडिया में सावरकर के पक्ष में लेख लिखा था कि उन्हें अपनी मुक्ति के लिए सरकार को याचिका भेजना चाहिए. अंततः दस साल सजा भुगतने के बाद 1921 में उन्हें रिहा कर दिया गया था.
इच्छा मृत्यु!
उन्होंने इच्छा मृत्यु का चयन किया था. फरवरी, 1966 से वह उपवास रखने लगे थे. इस दरम्यान वे न जीवन-रक्षक दवाइयां खा रहे थे, ना खाना-पानी ले रहे थे. 26 फरवरी तक वे ऐसे ही उपवास करते रहे. इसके बाद उनकी मृत्यु हो गई. उस समय उनकी उम्र 82 साल थी.