कर्नाटक विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है. कांग्रेस से लेकर बीजेपी ने अपने तरकश में तीर कस लिए हैं. बीजेपी जहां इस राज्य में भी सत्ता में आने के लिए पूरे जोर-शोर से जुटी है, वहीं कांग्रेस के सामने फिर एक बार सत्ता में आने की चुनौती है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के आला नेता वोटरों को लुभाने में जुटे हैं.
कर्नाटक में सरकार चला रहे कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने चुनाव जीतने के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला है. 23 मार्च को कर्नाटक की सिद्धरामैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया. कांग्रेस सरकार ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी है. इस प्रस्ताव पर अभी केंद्र को फैसला लेना है. कर्नाटक में लिंगायत बीजपी का मज़बूत वोट बैंक है. आइए जानते है इस समाज के बारे में.
कौन हैं लिंगायत:
12वीं सदी के दौरान कर्नाटक में बैजल द्वितीय नाम के राजा का शासन था. इस दौरान ब्राह्मणवाद चरम पर था और जाति प्रथा ने निचली मानी जाने वाली जातियों का जीवन दूभर कर रखा था. उसी दौरान समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदू जाति व्यवस्था में दमन के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ा. ब्राह्मण समाज से आने वाले बासवन्ना ने जाति प्रथा के खिलाफ खूब काम किया. वो आज़ादी, बराबरी और भाईचारे जैसे मूल्यों पर खूब ज़ोर देते थे.
बासवन्नाऔर उनके अनुयायियों ने उस समय के रीति-रिवाज़ों को मानने से इनकार कर दिया था. आम मान्यता यह है कि बासवन्ना को मानने वालों को ही लिंगायत कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं. लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था.
कर्नाटक की सियासत में अहमियत:
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की संख्या 17 प्रतिशत के करीब है. माने एक बहुत बड़ा वोट बैंक. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं. सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. कर्नाटक में लिंगायत बीजपी का मज़बूत वोट बैंक है. लेकिन कांग्रेस इन्हें अपने पाले में करना चाहती है. उसने अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को हमेशा हवा दी.
80 के दशक में इस समाज ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया और उनका समर्थन किया. हेगड़े से लिंगायतों का लगाव तब भी बना रहा जब वे जनता दल से अलग होकर जनता दल यूनाइटेड में आ गए. उन्ही की वजह से लिंगायतों ने बीजेपी को वोट दिए और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी.
रामकृष्ण हेगड़े के निधन के बाद इस समाज ने बीएस येदियुरप्पा का समर्थन किया और 2008 में बीजेपी सत्ता में आई. बीजेपी द्वारा येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद 2013 में यह समाज बीजेपी से दूर हुआ. नतीजा राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी.
बीजेपी ने येदियुरप्पा को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया है. वहीँ कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने की सिफारिश से येदियुरप्पा के जनाधार को तोड़ने का प्रयास किया है.