
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में संतों, विद्वानों, राजनयिकों आदि के साथ-साथ, समाज के विभिन्न वर्गों के बारे में भी काफी कुछ लिखा है. आचार्य चाणक्य के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ या मोह के बिना किसी का कोई काम नहीं करता है, हालांकि दूसरों को कोई अतिरिक्त लाभ दिये बिना अपना काम निकलवाना भी एक बड़ी कला है, लेकिन यह कला तभी तक सही हो सकता है, जब तक कि आपके कारण किसी को नुकसान नहीं हो. आचार्य ने अपने नीति शास्त्र के 14वें श्लोक में ऐसा ही तरीका बताया है, कि कैसे आप किसी भी इंसान से अपना निजी कार्य पूरा करवा सकते हैं. आइये जानें क्या कहना है आचार्य ने इस श्लोक के माध्यम से..
यस्माच्च प्रियमिच्छेत् तस्य ब्रूयात्सदा प्रियम्।
व्याघ्रो मृगवधं गन्तुं गीतं गायति सुस्वरम्।।
आचार्य चाणक्य यहां वाणी की मधुरता को प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि जिससे अपने हित के लिए कोई कार्य करवाना है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसके सामने सदा मीठी वाणी बोलना चाहिए, क्योंकि यह कहावत मशहूर है कि बहेलिया हिरन पर वाण चलाने से पूर्व वह सुन्दर एवं मनोहारी स्वर में गीत गाकर उसे आकर्षित करता है. यह भी पढ़ें : Lunar Eclipse 2025: कब लगेगा साल का दूसरा चंद्र ग्रहण? जानें दुनिया के किन-किन देशों में दिखेगा ये ग्रहण? क्या भारत में लागू होगा सूतक नियम?
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य का आशय है कि जिससे अपना कोई मतलब निकालना हो, उस व्यक्ति के सामने उसे खुश करने के लिए खूब चिकनी-चुपड़ी बातें करनी चाहिए. चाणक्य यह कहने में कोई कोताही नहीं बरतते कि किसी को चारों खाने चित्त करने के लिए मक्खनबाजी सबसे अच्छा उपाय है. मीठे वाणी से मारे गये व्यक्ति को पानी मांगने तक का समय नहीं मिलता. ठीक उस हिरण की तरह, जिस पर तीर चलाने से पूर्व बहेलिया हिरन का ध्यानाकर्षित करने, उसे प्रसन्न करने के लिए एक सुरीली तान छेड़ता है. हिरन बेचारा बहेलिया के मधुर तान से खिंचा चला आता है, और जैसे ही हिरण करीब आता है, बहेलिया अपने बाणों से हिरण का काम तमाम कर देता है. इस संदर्भ में यह कहावत भी मशहूर है,
'वचने किम दरिद्रता' अर्थात् वाणी में संकोच क्यों? इससे तो माधुर्य ही प्रकट होना चाहिए.