Independence Day 2020: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ गुमनाम नायक! करतार सिंह सराभा से अरुणा आसिफ अली तक, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की नींव हिला कर रख दिया था!
भारतीय तिरंगा ( फोटो क्रेडिट- ANI )

भारत 15 अगस्त को अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा. 1947 में आज के ही दिन भारत एक आजाद राष्ट्र बना था. यह देश लगभग 200 साल तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा. यह दिन 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत और स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र की स्थापना का प्रतीक है. आजादी की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गयी थी. जब कई भारतीय रियासतों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक साथ लडाई लड़ी थी. देश को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए कई भारतीयों ने अपने प्राणों की आहुति दी. हर स्वतंत्रता दिवस पर देशवासी स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि देते हैं. महात्मा गांधी, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में कम लोग ही जानते हैं. इनके अलावा और भी कई लोग थे, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया. यहां हम कुछ ऐसे ही गुमनाम नायकों से आपका परिचय करवा रहे हैं.

करतार सिंह सराभाः वह एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ाई लड़ी थी. सराभा जब गफ्फार पार्टी के सदस्य बनें थे, तब उनकी उम्र17 साल थी. सिंह को नवंबर 1995 में लाहौर में फांसी दी गई थी, जब उनकी उम्र महज 19 साल थी.

अरुणा आसफ अलीः भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बंबई के गोवालिया टैंक में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए उन्हें व्यापक रूप से याद किया जाता है. उन्होंने नमक सत्याग्रह के दौरान सार्वजनिक जुलुसों में भी भाग लिया.

लक्ष्मी सहगलः वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित भारतीय राष्ट्रीय सेना की अधिकारी थी, वह आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं. सहगल को आमतौर पर भारत में कैप्टन लक्ष्मी के रूप में जाना जाता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में कैदी के रूप में उनके रैंक का संदर्भ है.

भिकाजी कामाः वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख आंकड़ों में से एक थीं. कामा लैंगिक समानता के लिए भी एक आंकड़ा था. उन्होंने 1907 में जर्मनी के स्टंटगार्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भारतीय ध्वज फहराया था.

तिरुपुर कुमारनः वह एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. कुमारन ने देसा बंधु यूथ एसोसिशन की स्थापना की और अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया. विरोध मार्च के दौरान तिरुपुर में नोयाल नदी के तट पर पुलिस के हमले से उसकी मौत हो गयी.

कमलादेवी चट्टोपाध्यायः वह एक भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता कार्यकर्ता थीं. स्वतंत्र भारत में भारतीय हस्तशिल्प, हथकरघा और रंगमंच के पुनर्जागरण के पीछे प्रेरक शक्ति होने के लिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान के लिए उन्हें सबसे अधिक याद किया गया.

सेनापति बापटः महादेव को मुल्शी सत्याग्रह का नेतृत्व करने के बाद सेनापति बापट के नाम से जाना जाता था. 1912 में उन्हें 1908 के अलीपुर बम विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. बाद में उन्होंने स्वराज के महात्मा गांधी के विजन से खुद को फिर से गठबंधन किया.