नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) मुस्लिम समाज में प्रचलित एक बार में तीन तलाक (Triple Talaq) देने की प्रथा को दण्डनीय अपराध बनाने संबंधी कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली नयी याचिका पर विचार के लिये शुक्रवार को तैयार हो गया. न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की तीन सदस्यीय पीठ ने इस नयी याचिका पर केन्द्र सरकार से जवाब मांगा है। यह याचिका एक संगठन ने दायर की है. पीठ ने कहा कि इस याचिका को न्यायलाय में पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया जाये। याचिका में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) कानून, 2019 की वैधता को चुनौती दी गयी है.
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया था। इन याचिकाओं में कहा गया था कि यह कानून असंवैधानिक है क्योंकि इससे संविधान के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन होता है. यह भी पढ़े: राजस्थान के कोटा में एक दिन में दो महिलाओं को दिया गया तीन तलाक, FIR दर्ज
इस कानून के तहत किसी भी रूप में-मौखिक, लिखित, एसएमएस या व्हाट्सऐप या किसी अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यम से- एक बार में तीन तलाक देने को गैरकानूनी बनाने के साथ ही इसे दण्डनीय अपराध बनाया गया है और इसके लिये दोषी पाये जाने पर तलाक देने वाले पति को तीन साल तक की सजा हो सकती है। कानून में जमानत का भी प्रावधान है.