दस साल में पहली बार सेंट्रल बैंकों ने सोने की बिक्री शुरू कर दी है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) की नवीनतम तिमाही डिमांड रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना वायरस महामारी के बीच सोने की कीमतें नये उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं, जिसके बाद सोना उत्पादक कुछ देशों ने लाभ उठाने की कोशिश की. तीसरी तिमाही में सोने की कुल बिक्री करीब 12.1 टन रही. पिछले साल केंद्रीय बैंकों ने करीब 141.9 टन सोने की खरीद की थी. जिन देशों के केंद्रीय बैंकों ने सबसे ज्यादा सोने की बिक्री की, उनमें उजबेकिस्तान और तुर्की हैं. रूस के केंद्रीय बैंक ने भी बीते 13 साल में पहली बार किसी एक तिमाही में सोने की बिक्री की है. यह भी पढ़ें: Gold Loan: अब सोना देने पर मिलेगा कुल कीमत के 90% तक का कर्ज, कोरोना संकट के कारण आरबीआई ने लिया फैसला
इस साल एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स में बढ़ते निवेश ने सोने की बढ़त में तेजी आयी है. लेकिन बीते कुछ सालों में देखें तो केंद्रीय बैंकों ने सोने कीखूब खरीद की है. पिछले महीने सिटिग्रुप के अनुमान के अनुसार 2021 में एक बार फिर बड़े स्तर पर केंद्रीय बैंक सोने की खरीद करेंगे. 2018 और 2019 में रिकॉर्ड खरीदारी के बाद इस साल इसमें सुस्ती देखने को मिल रही है.
डब्ल्यूजीसी ने कहा कि तुर्की और ज्बेकिउस्तान के केंद्रीय बैंकों ने क्रमश: 22.3 टन और 34.9 टन सोना बेचा. उजबेकिस्तान अंतरराष्ट्रीय भंडार को सोने से दूर कर रहा है. तीसरी तिमाही के रिपोर्ट के अनुसार साल-दर-साल स्तर पर सोने की मांग में 19 फीसदी की गिरावट आई है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का कहना है कि सोने की मांग में यह गिरावट भारतीय ज्वेलरी की डिमांड कम होने की वजह से है. इसका एक कारण चीन में ज्वेलरी की खपत में कमी भी है.
कोरोना वायरस पेंडामिक के बीच अधिकतर देश फाईनान्शियल मदद मांग रहे हैं. वर्तमान में आसमान छूती हुई सोने की कीमतों को देखते हुए इस संकट से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक सोना बेच रहे हैं. अगर आगे भी अन्य केंद्रीय बैंक सोना बेचने का फैसला लेते हैं तो इससे सोने के दाम पर असर पड़ेगा, क्योंकि बीते कुछ समय में सोने की सबसे ज्यादा खरीद केंद्रीय बैंकों ने ही की है. ऐसा माना जा रहा है कि सोने के दाम पर यह असर कुछ वक्त के लिए ही होगा.
किसी भी देश का केंद्रीय बैंक अपनी करंसी में गिरावट की वजह से सोना खरीदने या बेचने का फैसला लेता है. इसे मोटे तौर पर समझें तो ज्यादातर देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign exchange reserves) को डॉलर में ही रखते हैं. ऐसे में अगर डॉलर मजबूत होता है या उस देश की करेंसी कमजोर होती है तो उसे डॉलर की खरीद करने में या अन्य ऋण डॉलर में चुकाना महंगा पड़ता है. अगर बैंक के पास सोने का पर्याप्त भंडारण होता है तो केंद्रीय बैंक सोने को करेंसी में बदलकर अपने ऋण चुका सकता है. इससे डॉलर पर निर्भर नहीं रहना पड़ता और सोने के दामों में तुलनात्मक रूप से स्टेबिलिटी की वजह से नुकसान भी कम होता है.