जर्मनी में डिप्रेशन के कारण पहले से ज्यादा छुट्टी ले रहे हैं लोग
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में डिप्रेशन के कारण लोग पहले से ज्यादा छुट्टी ले रहे हैं. कर्मचारियों द्वारा डिप्रेशन के चलते ली गई छुट्टियों की संख्या में पिछले साल करीब 50 फीसदी का इजाफा हुआ.जर्मनी में कामगारों के बीच डिप्रेशन के मामले बढ़ गए हैं. डीएके गेजुंडहाइट, जर्मनी की एक बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी है. कंपनी ने 23 मार्च को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी की. इसके आंकड़े बताते हैं कि साल 2024 में कामगारों ने डिप्रेशन के चलते जितनी छुट्टियां लीं, वो पिछले साल के मुकाबले लगभग 50 प्रतिशत अधिक हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी से इंश्योरेंस लेने वाले हर 100 कर्मचारी पर डिप्रेशन संबंधी छुट्टियों की संख्या 183 रही. साल 2023 में यह आंकड़ा 122 था. मानसिक स्वास्थ्य के कारण ली गई छुट्टियां 2023 में 323 थीं और पिछले साल यह 342 रही.

डीएके के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आंद्रेयास श्ट्रोम ने कहा, "हम और आंखें बंद नहीं रख सकते क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य सफलता का एक अहम कारक है. मुश्किल हालात से जल्दी उबर पाने वाले एक समाज के रूप में और जर्मनी के एक मजबूत कारोबारी ठिकाने के तौर पर भी." उन्होंने यह भी कहा कि अवसाद व मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों पर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अवसाद के बढ़ते मामलों से सभी आयुवर्ग के लोग प्रभावित है. युवाओं में तो पिछले कई साल से डिप्रेशन बढ़ रहा है, लेकिन 2024 में बुजुर्गों में भी अवसाद के मामलों में खासी वृद्धि दर्ज की गई.

जर्मनी में अवसाद से प्रभावित लोगों की बड़ी संख्या

पिछले साल नवंबर में 'जर्मन डिप्रेशन फाउंडेशन' द्वारा जारी एक रिपोर्ट "2024 डिप्रेशन बैरोमीटर" के मुताबिक, 45 फीसदी जर्मन अवसाद से प्रभावित हैं. या तो वे खुद अवसाद में हैं, या फिर वो डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति के रिश्तेदार हैं.

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पांच प्रतिशत संख्या ऐसे लोगों की भी है, जो खुद भी अवसाद ग्रस्त हैं और किसी अन्य डिप्रेशन प्रभावित व्यक्ति के रिश्तेदार भी हैं. एक ओर जहां यह पाया गया कि डिप्रेशन के दौरान बहुत सारे प्रभावित लोगों के लिए परिवार सहयोग का अहम स्रोत साबित होता है, वहीं लगभग तीन चौथाई रिश्तेदारों ने बताया कि डिप्रेशन परिवार की जिंदगी पर एक बड़ा भार साबित हो रहा है.

क्या है अवसाद और विशेषज्ञ से सलाह क्यों है जरूरी

अवसाद के प्रभावित लोग बस कुछ अवधि के लिए निराशा महसूस नहीं करते हैं. गहरी निराशा की अवधि कुछ हफ्तों या महीनों तक जारी रह सकती है. अवसाद के कारण वो अलग महसूस करते हैं, उनके व्यवहार में भी तब्दीली आती है. ज्यादातर मामलों में अवसाद से जूझ रहे लोग अपने आप इससे बाहर नहीं आ पाते. वो अपनी स्थिति का हल नहीं निकाल पाते और इस हालत के लिए अक्सर खुद को ही दोष देते हैं.

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अवसाद बढ़ने की स्थिति अलग-अलग लोगों में अलग तरह की हो सकती है. वो दुख, निराशा, आत्मविश्वास की कमी, थकान, प्रेरणा की कमी जैसी चीजें महसूस कर सकते हैं. जिन चीजों को करने में पहले मजा आता था या जो रुचि के काम थे, उनमें भी दिलचस्पी खत्म हो जाती है.

अवसाद के गंभीर होने पर भूख ना लगना, नींद ना आना, फैसले लेने में ऊहापोह, ध्यान ना लगा पाना, भविष्य को लेकर नकारात्मक विचार या निराशा जैसी स्थितियां उभर सकती हैं. घबराहट और चिंता बढ़ सकती है. अवसाद की स्थिति में प्रभावित व्यक्ति अक्सर परिवार या दोस्तों से दूर हो सकता है.

डिप्रेशन क्यों होता है, यह अभी भी साफ नहीं है लेकिन ये किसी भी उम्र में हो सकता है. ये किसी खास परिस्थिति, अनुभव या घटना के कारण या बाद में उभर सकता है. या फिर, बिना किसी स्वाभाविक कारण के भी हो सकता है. हालांकि, जीव विज्ञान से संबंधित प्रक्रियाएं या मनोवैज्ञानिक कारक, निजी परिस्थितियां या घटनाएं अवसाद की वजह बन सकती हैं.

अवसाद की मूल वजहों पर माथापच्ची

बचपन के भयावह या तकलीफ देने वाले अनुभव, अकेलापन या आनुवांशिक कारक भी अवसाद का जोखिम पैदा कर सकते हैं. अवसाद के लिए कई तरह के उपचार उपलब्ध हैं. इनमें साइकोथैरेपी और एंटीडिप्रेसेंट जैसी दवाएं शामिल हैं. प्रभावित व्यक्ति की जांच करके और उससे बात करके डॉक्टर इलाज का उपयुक्त तरीका तय करते हैं. इसीलिए जरूरी है कि प्रभावित व्यक्ति को डॉक्टरी सहायता उपलब्ध हो. उसे हिचके बिना, झिझके बिना, खुलकर अपनी बात कहने का सही माहौल मिले.

एसएम/आरएस (डीपीए)

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