समंदर में तेल रिसाव का कैसे पता लगाया जाए?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

समुद्रों में कच्चे तेल के लिए ड्रिलिंग और जहाजों से रिसाव की घटनाएं सामने आती रही हैं. यह जलीय जीवों के लिए जानलेवा है. अब वैज्ञानिक कुछ आधुनिक तकनीकों के जरिए रिसाव की छोटी-छोटी घटनाओं का पता लगा पा रहे हैं.हमारे ग्रह का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा समुद्र है. लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक, हम अभी तक बहुत ही कम जानते हैं कि हमारे समुद्रों में क्या-क्या है. अब नई तकनीकें इस स्थिति को बदलने में मदद कर रही हैं. ये छिपे हुए तेल रिसाव को सामने ला रही हैं, नई प्रजातियों की खोज तेज कर रही हैं और पता लगा रही हैं कि प्रकाश प्रदूषण समुद्री जीवन को कैसे प्रभावित करता है.

मशीन लर्निंग और सैटेलाइट इमेजरी

सैटेलाइट इमेजरी से समुद्र में बड़े तेल रिसाव का पता आसानी से लगाया जा सकता है. जब कोई टैंकर टकराता है या पाइप फटता है तो वैज्ञानिकों को पता होता है कि उन्हें कहां देखने की जरूरत है. लेकिन छोटी मोटी घटनाओं में समुद्र की सतह पर एक पतली लकीर से ज्यादा कुछ नहीं दिखाई देता है. अमेरिकी एनजीओ स्काईट्रुथ के मिशेल दे लियोन बताते हैं, "पहले विश्लेषकों को एक छोटे पैमाने के तेल रिसाव का पता लगाने में महीनों नहीं तो हफ्तों लग जाते थे."

अब यह संगठन मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके सैटेलाइट इमेजरी के बड़े डेटासेट को जांचता है और अनदेखे रह गए रिसाव का पता लगाता है. स्काईट्रुथ ने कुछ मौकों पर लाल सागर और भूमध्य सागर में रिसाव का खुलासा किया है. साथ ही रहस्यमय रूसी जहाजों से होने वाले प्रदूषण को उजागर करने में भी मदद की.

सिर्फ तेल रिसाव ही समस्या नहीं

हम लंबे समय से जानते हैं कि रात में आसमान को रोशन करने का हमारा जुनून तारों को देखने के अनुभव को धुंधला कर देता है और जमीन पर रहने वाले जीवों को भ्रमित करता है. लेकिन इसका समुद्र पर क्या असर होता है?

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों को सैटेलाइट तस्वीरों की जरूरत पड़ती है, जो दिखाती हैं कि तटीय महानगरों से रोशनी कैसे फैलती है. ब्रिटेन की प्लाइमाउथ मरीन लैबोरेट्री के समुद्री बायोजियोकेमिस्ट्री विशेषज्ञ टिम स्मिथ ने बताया कि इसके लिए जटिल डेटा मॉडलों की भी जरूरत होती है जो यह गणना कर सकें कि प्रकाश समुद्र में कैसे दाखिल होता है.

समुद्र का पानी आम तौर पर लाल प्रकाश को ज्यादा सोखता है, लेकिन फाइटोप्लांकटन या ज्यादा गंदलापन होने की सूरत में यह स्थिति बदल सकती है. स्मिथ ने कहा, "हम कंप्यूटरों को इस तरह से प्रोग्राम कर सकते हैं कि हम पानी के नीचे प्रकाश क्षेत्र को ज्यादा सटीकता के साथ मॉडल कर सकें."

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उनके शोध से पता चला कि 20 लाख वर्ग किलोमीटर समुद्र यानी उत्तर प्रदेश के आकार से लगभग 9 गुना बड़ा क्षेत्र- दुनिया भर में प्रकाश प्रदूषण से प्रभावित है. इसके प्रभाव गहरे हैं. मछलियों और समुद्री पक्षियों के खानपान में बाधा डालने से लेकर, कोरल के प्रजनन और फाइटोप्लांकटन के पानी में ऊपर नीचे जाने तक, हर जगह प्रकाश प्रदूषण का असर दिख रहा है. हमारे पर्यावरण पर इसके दूरगामी परिणाम होंगे.

प्रकाश प्रदूषण से कैसे बचें

बायोजियोकेमिस्ट स्मिथ कहते हैं, "यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम कुछ कर सकते हैं." उनके मुताबिक, बिलबोर्ड जैसी अनावश्यक रोशनी को बंद करना और आकाशीय "फैलाव" को घटाने के लिए लाइटों को फिर से डिजाइन करना- लागत और कार्बन उत्सर्जन घटाएगा. इससे जमीन और समुद्र में रहने वाले जीवों फायदा होगा. तकनीकी प्रगति और डिजाइन सुधारों ने हमें समुद्र की सबसे अंधेरी गहराइयों तक पहुंचने में सक्षम किया है. लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हम अपने समुद्रों में रहने वाली सिर्फ 10 प्रतिशत प्रजातियों के बारे में ही जानते हैं.

ओशन सेंसस की मरीन बायोलॉजिस्ट और विज्ञान प्रमुख लूसी वूडॉल कहती हैं कि इससे पहले कि हम एक नई प्रजाति की मौजूदगी महसूस करें, "हम उस विविधता को खो रहे हैं." 2023 में शुरू किए गए वैज्ञानिकों के इस वैश्विक गठबंधन का लक्ष्य कोरल से लेकर केकड़ों तक, तमाम समुद्री प्रजातियों की खोज तेज करना है.

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इसका एक तरीका है हाई-टेक लैब वाले समुद्री रिसर्च जहाज, जहां शोधकर्ता जमा किए नमूनों पर तुरंत काम शुरू कर सकते हैं. वूडॉल कहती हैं कि "जिस काम के लिए 10 साल पहले जमीन पर ही महीनों लग जाते थे, वो अब फील्ड (समुद्री जहाज) में हो जाता है."

एक संभावित नई प्रजाति को खोजने से लेकर उसके वैज्ञानिक वर्णन तक औसतन करीब 13 साल से ज्यादा समय लगता है. इस परियोजना ने अब तक 800 से अधिक नई खोजों को दर्ज किया है जिसे ओपन-एक्सेस वाले एक जैव विविधता प्लेटफॉर्म पर साझा किया जाता है.

आरएस/ओएसजे (एएफपी)

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