महिलाओं को लड़ाई पर नहीं भेज सकते, लेकिन गैर-लड़ाकू भूमिकाओं में बढ़ाएंगे संख्या-आर्मी चीफ बिपिन रावत
आर्मी चीफ बिपिन रावत (Photo Credit-PTI)

समाज में महिलाएं किसी से भी कम नहीं है. वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. हर फिल्ड में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है. आज के बदलते युग में ऐसा कोई काम नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं. आर्मी चीफ बिपिन रावत (Army Chief Bipin Rawat) ने महिलाओं की भागीदारी पर बात की है, और पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम आंका है. आर्मी चीफ बिपिन रावत ने कहा है कि बॉर्डर पर लड़ाई के लिए महिलाएं अभी तैयार नहीं हैं. इसके पीछे उन्होंने कारण भी बताया के ‘महिलाओं पर बच्चों की जिम्मेदारी होती है और महिलाएं फ्रंटलाइन में कपड़े बदलने में अनकंफर्टेबल होंगी. यही नहीं आर्मी चीफ ने कहा कि वो सैनिकों पर तांक- झांक का भी आरोप लगाएंगी.

एक इंटरव्यू में जनरल रावत ने कहा, एक वक्त था जब उन्होंने ही महिलाओं को जंग पर भेजने की वकालत की थी. लेकिन फिर अचानक से उन्हें ख्याल आया कि सेना में ज्यादातर सैनिक ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं. अगर कोई महिला उन्हें ऑर्डर देगी तो वो असहज हो जाएंगे. उन्होंने कहा के अगर कोई कमांडिंग ऑफिसर महिला है, तो वो अपनी यूनिट 6 महीने तक नहीं छोड़ सकती, और अगर छुट्टी नहीं देंगे तो विवाद हो जाएगा.

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इंटरव्यू के दौरान बिपिन रावत ने से जब पूछा गया क्या आपके अनुसार आर्मी में महिलाओं की भर्ती नहीं होनी चाहिए, उन्होंने इस बात को सिरे से नकार दिया और कहा हमारे इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में महिला अधिकारी काम कर रही हैं. महिलाएं ऑफिशियल काम कर रही हैं. बस उन्हें सेना के फ्रंटलाइन में नहीं रखा है.

महिलाओं को सेना के फ्रंटलाइन में नहीं रखना चाहिए इस बात पर उन्होंने एक उदहारण दिया, जोखिम पर बात करते हुए उन्होंने एक घटना के बारे में बताया कि, सेना में एक महिला 7-8 साल से काम कर रही थी. लेकिन एक घटना में उसकी मौत हो जाती है. अपने पीछे वह परिवार छोड़ जाती है, जिसमें उसका एक दो साल का बच्चा भी है. रावत ने सवालिया लहजे में पूछा कि क्या आपको लगता है कि हम तैयार हैं इसके लिए. जनरल रावत ने कहा, उनके कहने का यह मतलब नहीं है कि किसी महिला के बच्चे हैं तो उनकी मौत नहीं होगी. लेकिन जंग से तिरंगे में लिपटा हुआ सैनिक का शव जब आता है, तो हम वह देखने के लिए तैयार नहीं होते.