![Bengal Panchayat Election: बंगाल पंचायत चुनाव की उलटी गिनती शुरू, टीएमसी की तैयारियां तेज Bengal Panchayat Election: बंगाल पंचायत चुनाव की उलटी गिनती शुरू, टीएमसी की तैयारियां तेज](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2022/03/69-2-380x214.jpg)
कोलकाता, 23 अक्टूबर : पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने अगले साल मार्च में राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का बिगुल फूंक दिया है, ऐसे में राजनीतिक गलियारों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 में पिछले तीन मौकों की तुलना में ग्रामीण निकाय चुनाव पूरी तरह से अलग परिस्थितियों में होंगे. 2008 में, ग्रामीण निकाय चुनाव हुए थे, जब हुगली जिले के सिंगूर और पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विपक्षी तृणमूल कांग्रेस के दोहरे आंदोलन के कारण सत्तारूढ़ वाम मोर्चा जबरदस्त दबाव में था. तब वाम मोर्चा सरकार पंचायत के तीन स्तरों जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत में अधिकांश सीटों को बरकरार रखने में कामयाब रही.
लेकिन राज्य के विभिन्न हिस्सों में यह स्पष्ट था कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में वाम दलों की मजबूत पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी. 2009 के लोकसभा चुनावों में ये कमजोरी और बढ़ गई और अंतत: 2011 में उन दरारों के कारण वाम मोर्चा शासन का पतन हो गया, जिसने 1977 से 34 वर्षों तक राज्य पर शासन किया था. 2013 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव राज्य में पहले ग्रामीण निकाय चुनाव थे, जिसमें तृणमूल कांग्रेस सत्ता में थी और प्रमुख विपक्षी वाम मोर्चा ये नहीं पता था कि उनके ढहते संगठन नेटवर्क को कैसे पुनर्जीवित किया जाए. जैसे कि उम्मीद थी, तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के साथ सत्ताधारी दल के खिलाफ चुनावों में जीत हासिल की. यह भी पढ़ें : Air Quality: हवा की गुणवत्ता में गिरावट के साथ मुंबई व पुणे के लोगों की जिंदगी दूभर
2018 के त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ग्रामीण निकाय के तीन स्तरों के बहुमत पर कब्जा करने में तृणमूल कांग्रेस के पूर्ण वर्चस्व की निरंतरता देखी गई. हालांकि, 2018 में परिणाम अलग थे क्योंकि भाजपा पहली बार तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी, जिसने वाम मोर्चा और कांग्रेस को क्रमश: तीसरे और चौथे स्थान पर धकेल दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 के पंचायत चुनावों में तीन सामान्य कारक थे. पहला यह था कि इन तीनों चुनावों में जबरदस्त हिंसा हुई थी जिसमें कई लोग मारे गए थे. दूसरा यह था कि इन तीनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के वोट शेयर में एक बड़ी वृद्धि देखी गई जो 2018 में चरम पर पहुंच गई. तीसरा, ग्रामीण बंगाल में वाम मोर्चा के वोट शेयर में भारी गिरावट थी.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का माननE0%A4%8F%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%80+%E0%A4%95%E0%A5%80+%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82+%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C&via=LatestlyHindi ', 650, 420);" title="Share on Twitter">