नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर : उच्चतम न्यायालय ने उस जनहित याचिकाकर्ता पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है, जिसने यह दावा किया था कि बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने ‘दोषपूर्ण’ तरीके से शपथ ग्रहण की है. शीर्ष अदालत ने इस प्रकार की याचिका को प्रचार पाने का तुच्छ प्रयास करार दिया. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ दिलाए जाने के बाद हस्ताक्षर कराये गये हैं, इसलिए इस तरह की आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं.
पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रचार पाने करने के लिए जनहित याचिका के इस्तेमाल का एक तुच्छ प्रयास था. पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि पद की शपथ सही व्यक्ति को दिलाई गई थी. शपथ राज्यपाल द्वारा दिलाई गई है और शपथ के बाद हस्ताक्षर लिये गये है. इसलिए ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं.’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा स्पष्ट मानना है कि इस तरह की फर्जी जनहित याचिकाएं न्यायालय का समय बर्बाद करती हैं और ध्यान भी भटकाती हैं. ऐसे मामलों के कारण अदालत का ध्यान अधिक गंभीर मामलों से हट जाता है और इस प्रकार न्यायिक मानव संसाधन एवं न्यायालय की रजिस्ट्री के बुनियादी ढांचे का दुरुपयोग होता है. ’’ पीठ ने कहा कि अब समय आ गया है जब अदालत को ऐसी तुच्छ जनहित याचिकाओं पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए.
इसने कहा, ‘‘हम तदनुसार याचिका को पांच लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज करते हैं और याचिकाकर्ता को यह राशि चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करनी होगी.’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि उपरोक्त अवधि के भीतर जुर्माना राशि जमा नहीं की जाती है, तो इसे लखनऊ में कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भू-राजस्व के बकाये के रूप में संग्रहित किया जाएगा.
शीर्ष अदालत अशोक पांडे द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि वह बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिलाई गई 'दोषपूर्ण शपथ' से व्यथित हैं. याचिकाकर्ता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ लेते समय अपने नाम के पहले "मैं" शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. उन्होंने यह भी दलील दी कि केंद्र शासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव सरकार के प्रतिनिधियों और प्रशासक को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था.
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