NEET-UG: नीट-यूजी पर न्यायालय की टिप्पणी केंद्र के रुख की पुष्टि करती है, सत्य की सदैव जीत होती है- धर्मेंद्र प्रधान
Dharmendra Pradhan - ANI

नयी दिल्ली, 2 अगस्त : केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को कहा कि वर्ष 2024 की राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) में शुचिता का कोई प्रणालीगत उल्लंघन नहीं होने संबंधी उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी केंद्र सरकार के रुख की पुष्टि करती है. प्रश्न पत्र लीक सहित अन्य अनियमितताओं के आरोपों के बीच राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा की आलोचना करने के लिए विपक्ष पर हमला करते हुए मंत्री ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘झूठ के बादल कुछ समय के लिए सच्चाई के सूर्य को छिपा सकते हैं, लेकिन सच्चाई हमेशा जीतती है.’’ उन्होंने कहा कि न्यायालय के निष्कर्ष और फैसले ने उस दुष्प्रचार को सिरे से खारिज कर दिया जिसे प्रसारित किया जा रहा था. शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि उसने प्रश्नपत्र लीक की चिंताओं के बीच विवादों से घिरी नीट-यूजी परीक्षा को रद्द नहीं किया क्योंकि इसकी शुचिता का कोई प्रणालीगत उल्लंघन नहीं हुआ था.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने 23 जुलाई को सुनाए गए आदेश के विस्तृत कारणों में बताया कि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) को अपना ‘ढुलमुल’ रवैया बंद करना चाहिए जो इस साल देखा गया था, क्योंकि यह छात्रों के हित में नहीं है. ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट में प्रधान ने कहा, ‘‘नीट-यूजी परीक्षा में शुचिता का कोई प्रणालीगत उल्लंघन नहीं होने और इसलिए दोबारा परीक्षा नहीं कराने पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी सरकार के रुख की पुष्टि करती है. सरकार ‘छेड़छाड़ मुक्त, पारदर्शी और त्रुटिविहीन परीक्षा प्रणाली के प्रतिबद्ध है.’’ उन्होंने कहा कि इसे सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों की उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों को प्रस्तुत किए जाने के बाद जल्द से जल्द लागू किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि न्याय करने और लाखों मेहनती छात्रों के हितों की रक्षा करने पर वह उच्चतम न्यायालय को हार्दिक धन्यवाद देते हैं. उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले को अक्षरश: लागू किया जाएगा. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने 22 जून को एनटीए के कामकाज की समीक्षा करने और परीक्षा सुधारों की सिफारिश करने के लिए इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति का गठन किया था.

शीर्ष अदालत ने पांच मई की परीक्षा को रद्द करने और दोबारा परीक्षा कराने की मांग करने वाली याचिकाओं को 23 जुलाई को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह निष्कर्ष निकालने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि इसकी शुचिता के ‘प्रणालीगत उल्लंघन’ के कारण इसे ‘दूषित’ किया गया. न्यायालय का अंतरिम फैसला संकटग्रस्त भाजपा नीत राजग सरकार और एनटीए को बल प्रदान करने वाला था जिसे प्रतिष्ठित परीक्षा में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर कदाचार जैसे कि प्रश्न पत्र लीक, धोखाधड़ी और परीक्षा में फर्जी अभ्यर्थियों के बैठने को लेकर सड़क से लेकर संसद तक कड़ी आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ रहा था.