प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
नेपाल की राजधानी काठमांडू में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है. जिससे यहां के निवासी दुनिया की सबसे खराब हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं.नेपाल की राजधानी, काठमांडू कई दिनों से धूल और धुएं की चपेट में है. धुंध से छनकर आ रही किरणें में सूरज भी लाल दिखाई दे रहा है. नेपाल अपनी पर्वत श्रृंखलाओं, खासकर माउंट एवरेस्ट के लिए मशहूर है. लेकिन नेपाल की राजधानी काठमांडू में पिछले छह महीनों में ढंग से बारिश भी नहीं हुई है.
घाटी के आस-पास, खासकर दक्षिण और पूर्वी क्षेत्रों में फैले जंगलों में आग लगने के कारण वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है. इसके अलावा गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और शहर की भौगोलिक संरचना की वजह से रुकी हुई हवा प्रदूषण को और बढ़ा रही है.
अंतर्राष्ट्रीय पर्वतीय विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) की वायु प्रदूषण विशेषज्ञ, बिद्या बनमाली प्रधान ने डीडब्ल्यू को बताया, "काठमांडू घाटी एक कटोरे के आकार की है. जब बारिश नहीं होती, तो प्रदूषण के कण हवा में ही रह जाते हैं और नीचे नहीं बैठते. साथ ही हवा की गति भी कम होती है. जिसकी वजह से प्रदूषण घाटी में जमा होता चला जाता है.” उन्होंने आगे कहा, "मैदानी इलाके की तुलना में यहां प्रदूषित हवा को साफ होने में ज्यादा समय लगता है.”
नेपाल के पहाड़ों की एक तिहाई बर्फ खत्म
आईसीआईएमओडी, एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें नेपाल, भारत, चीन और पाकिस्तान शामिल हैं. संस्था के हालिया आंकड़ों के अनुसार, काठमांडू की हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है. इसके अलावा इलाके में धुंध होने के कारण सब धुंधला दिखता है. इस वजह से काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बार-बार उड़ानों में बाधा आ रही है.
काठमांडू की हवा दुनिया में सबसे खराब
नेपाल की राजधानी काठमांडू, इस समय वायु गुणवत्ता के मामले में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन चुकी है. यह रैंकिंग आईक्यू एयर नाम की स्विट्जरलैंड की एक संस्था ने दी है, जो सरकारों, कंपनियों और गैर-सरकारी संगठनों से प्रदूषण से जुड़ा डेटा इकट्ठा करती है.
इस एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के अनुसार अगर आंकड़ा 0 से 50 तक हो तो हवा अच्छी है, 51 से 100 तक का मतलब हुआ सामान्य हवा, 101 से 150 तक का मतलब हुआ संवेदनशील लोगों के लिए हानिकारक, 151 से 200 तक हानिकारक, 201 से 300 तक बहुत हानिकारक 301 से ऊपर का मतलब हुआ हवा का स्तर बेहद खतरनाक है.
नेपालव के पहाड़ों में बिन बरफ सब सून
पिछले गुरुवार को काठमांडू का औसत एक्यूआई 348 तक पहुंच गया था, और कुछ इलाकों में तो यह 400 के भी पार चला गया था. इसके बाद से काठमांडू का एक्यूआई लगातार 200 से ज्यादा बना हुआ है, जिसके कारण यह शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की फेहरिस्त में आने लगा है.
सीमा पार से आ रहा है प्रदूषण
नेपाल की वायु प्रदूषण की समस्या सिर्फ राजधानी काठमांडू तक सीमित नहीं है. एयर क्वालिटी इंडेक्स के आंकड़ों के अनुसार, नेपाल के दक्षिण और पूर्वी इलाकों में हवा इतनी खराब हो चुकी है कि वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन गई है.
पर्यावरण विभाग (डीओई) की पर्यावरण निरीक्षक, हसना श्रेष्ठ ने डीडब्ल्यू को बताया, "वायु प्रदूषण में तेजी से बढ़ोतरी का एक मुख्य कारण जंगलों में लगी आग भी है. यह आग सिर्फ नेपाल में ही नहीं, बल्कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के कई हिस्सों में भी फैल रही है, और इसका असर हम तक आ रहा है.”
श्रेष्ठ ने यह भी बताया कि वाहनों से निकलने वाला धुआं, उद्योगों और ईंट के भट्टों से होने वाला प्रदूषण, खुले में कचरा जलाना और निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल वायु गुणवत्ता को और खराब कर रही है.
नेपाल के आसपास के शहर जैसे नई दिल्ली, कोलकाता, ढाका, लाहौर और यंगून भी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में आते हैं.
वायु प्रदूषण विशेषज्ञ प्रधान ने डीडब्ल्यू को बताया, "नवंबर से दिसंबर के बीच, ज्यादातर प्रदूषण सीमापार से आता है, खासकर भारत के पंजाब और हरियाणा राज्यों में पराली जलाने की वजह से.”
उन्होंने आगे कहा, "मार्च से मई तक ज्यादातर प्रदूषण घरेलू स्रोतों से आता है, जिनमें जंगल की आग सबसे प्रमुख कारण है. सूखे मौसम में जंगल बहुत आसानी से जलने की स्थिति में आ जाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर आग लगती है. हालांकि, यह स्थिति जून में मानसून आने के बाद कुछ हद तक सुधर जाती है.”
प्रधान ने यह भी बताया कि पीएम 2.5, ऐसे सूक्ष्म कण हैं जो फेफड़ों में जाकर जमा हो सकते हैं, उनका स्तर इस समय 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी ऊपर पहुंच गया है, जो बहुत खतरनाक है.
संवेदनशील लोगों को सावधानी बरतने की सलाह
पिछले साल प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में नेपाल में सिर्फ वायु प्रदूषण के कारण 125 लोगों की मौत हुई थी और कुल मिलाकर 48,500 मौतें वायु प्रदूषण से संबंधित रही वजहों से हुईं. यह स्ट्रोक, दिल की बीमारियों जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण बना हुआ है.
इससे निपटने के लिए नेपाल सरकार ने सार्वजनिक चेतावनियां जारी की हैं, लोगों को घर के अंदर रहने की सलाह दी गई है, कुछ स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद भी कर दिया गया. अधिकारियों ने बताया कि अस्पतालों में भीड़ बढ़ गई है और मरीजों की आंखों में जलन हो रही है, सांस लेने में दिक्कत, गले में संक्रमण और त्वचा संबंधी समस्याएं हो रही हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता प्रकाश बुढाथोकी ने बताया, "संवेदनशील लोगों जैसे बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं और पहले से बीमार लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है.”
जंगल की आग पर सरकार के प्रयास 'पर्याप्त नहीं'
नेपाल सरकार जनता को प्रदूषण से बचाने के लिए सप्ताह में दो दिन की छुट्टी लागू करने पर विचार कर रही है. परंपरागत रूप से नेपाल में सिर्फ शनिवार को छुट्टी होती है. मई 2022 में ईंधन आयात में कटौती के लिए अस्थायी रूप से शनिवार और रविवार, दो दिन छुट्टी का फैसला किया गया था.
रविवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में, वन और पर्यावरण मंत्री ऐन बहादुर शाही ठाकुरी ने माना कि सरकार के पास जंगल की आग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए ना तो पर्याप्त उपकरण हैं और ना ही कर्मचारी.
उन्होंने कहा था, "आग पर नियंत्रण पाने के लिए सभी सरकारी संस्थाएं काम कर रही हैं, लेकिन सिर्फ सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं.” उनका मानना है, "सहयोग बेहद जरूरी है, स्थानीय समुदायों से लेकर युवाओं तक.”
'हम काम करने से ज्यादा बात करते हैं'
इस बीच गैर-सरकारी संगठन ब्रॉड सिटिजन्स मूवमेंट ने इस संकट से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की है.
संगठन ने कहा, "यह शर्मनाक है कि सरकार को वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे की बार बार याद दिलानी पड़ रही है.” उन्होंने अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को अस्थायी रूप से बंद करने और वाहनों की आवाजाही पर कुछ समय के लिए रोक लगाने की सलाह दी है.
आलोचकों का कहना है कि सरकार अक्सर वक्त रहते कदम उठाने के बजाय हालात बिगड़ने के बाद ही कदम उठाने का सोचती है.
पर्यावरण पर नजर रखने वाले श्रेष्ठ ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम काम करने से ज्यादा बात करते हैं. हमें कम से कम एक ऐसी संस्था चाहिए, जो ठोस कार्रवाई कर सके.”
कई देशों को मिलकर करना होगा काम
श्रेष्ठ और प्रधान जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि काठमांडू घाटी में बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक रणनीतियों की जरूरत है.
श्रेष्ठ ने सुझाव दिया कि ईंट के भट्टों को घाटी के बाहर लगाना चाहिए, वाहनों के उत्सर्जन मानकों को सख्ती से लागू करने चाहिए, उद्योगों की निगरानी की जाए, और सरकारी एजेंसियों के बीच बेहतर बातचीत हो ताकि ठोस कदम वक्त पर उठाए जा सकें.
क्षेत्रीय संस्था आईसीआईएमओडी के विशेषज्ञ प्रधान ने इस समस्या से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर जोर दिया. उन्होंने कहा, "दक्षिण एशिया के देशों जैसे भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान को एक सामान्य कारगर वायु प्रदूषण नीति अपनानी चाहिए और उसे सख्ती से लागू करना चाहिए.”
उन्होंने कहा, "सिर्फ कागज पर नीति लिखना काफी नहीं. हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा जैसे स्वच्छ तकनीकों को प्रोत्साहन देना, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को धीरे-धीरे घटाना और लगातार निगरानी करने पर ध्यान देना होगा.”