अमेरिका और बाकी दुनिया की बातचीत अधर में
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

टैरिफ के लिए डॉनल्ड ट्रंप की दी डेडलाइन करीब आ रही है और दुनियाभर में बेचैनी बढ़ती जा रही है. अमेरिका के साथ समझौतों पर बातचीत चल रही है, लेकिन अब तक कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है.वॉशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय नेताओं की बैठक खत्म हो चुकी है, लेकिन अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर बातचीत अभी भी अधर में लटकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सरकार ने अधिकतर देशों पर 10 फीसदी बेसलाइन टैरिफ और चीन पर 145 फीसदी तक का आयात शुल्क लगाया हुआ है. अब 57 देश, जिन पर बढ़े टैरिफ लगे थे, उनके पास 90 दिन यानी जुलाई तक का समय है. इस दौरान उन्हें अमेरिका से समझौता करना है, वरना उन्हें और ज्यादा टैरिफ का सामना करना पड़ेगा.

ट्रंप कह रहे हैं कि उन्होंने 200 व्यापार समझौते कर लिए हैं जो तीन-चार हफ्तों में पूरे हो जाएंगे, लेकिन अभी तक एक भी डील की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. वहीं चीन का कहना है कि अमेरिका के साथ कोई बातचीत चल ही नहीं रही. यह ट्रंप के उस दावे को बड़ा झटका है, जिसमें उन्होंने कहा था कि शी जिनपिंग ने उन्हें फोन किया है.

चीन ने बातचीत से इनकार क्यों किया?

ट्रंप ने ‘टाइम' मैगजीन को दिए इंटरव्यू में कहा था कि चीन से टैरिफ को लेकर बातचीत चल रही है. लेकिन इसके तुरंत बाद, अमेरिका में चीनी दूतावास ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि "कोई बातचीत नहीं हो रही है” और अमेरिका को "गलतफहमी फैलाना बंद करना चाहिए.”

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने शनिवार को कजाखस्तान में एक बैठक के दौरान कहा कि कुछ देश ‘धौंस और दबाव' की नीति अपना रहे हैं और अनावश्यक रूप से व्यापार युद्ध भड़का रहे हैं. उनका इशारा साफ तौर पर अमेरिका की ओर था.

ट्रंप सरकार ने कहा है कि लगभग 15 प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ प्राथमिकता से बात हो रही है, जिनमें जापान, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड शामिल हैं. वॉशिंगटन ने थाईलैंड के साथ वार्ता को स्थगित कर दिया है और यूरोपीय संघ के साथ अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि भारत के साथ एक समझौते के करीब पहुंच चुके हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि ‘समझौते' का मतलब सिर्फ एक सिद्धांत पर सहमति हो सकती है, जरूरी नहीं कि वह औपचारिक दस्तावेज बन जाए.

दुनिया में बेचैनी क्यों है?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और वर्ल्ड बैंक की बैठकों के दौरान दुनियाभर के वित्त मंत्रियों में इस बात की चिंता साफ देखी गई कि अगर अमेरिका के साथ डील नहीं हो पाई तो वैश्विक विकास पर गंभीर असर पड़ेगा. आयरलैंड के वित्त मंत्री ने कहा, "इन बैठकों से साफ हो गया है कि कितना कुछ दांव पर लगा है – नौकरियां, विकास और जीवन स्तर.” वहीं अटलांटिक काउंसिल के जोश लिप्स्की ने कहा कि "हम स्पष्टता के साथ नहीं बल्कि और ज्यादा भ्रम के साथ बाहर निकले हैं.”

चीन ने अमेरिका पर भारी जवाबी टैरिफ लगा रखे हैं. हालांकि उसने कहा है कि अमेरिकी दवाओं को भारी शुल्क से छूट दी गई है और 131 उत्पादों की एक सूची भी सामने आई है, जिन पर राहत मिल सकती है लेकिन इस सूची की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. जापान के साथ बातचीत को अमेरिका ने ‘टेस्ट केस' बताया है, जिससे यह देखा जाएगा कि क्या द्विपक्षीय समझौते जल्दी हो सकते हैं. स्विट्जरलैंड और दक्षिण कोरिया के साथ शुरुआती बातचीत को ‘सकारात्मक शुरुआत' कहा गया है.

वर्ल्ड बैंक का सुझाव क्या है?

वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा है कि विकासशील देशों को जल्द से जल्द अमेरिका के साथ व्यापार समझौते करने चाहिए. उन्होंने कहा, "अगर आप देरी करते हैं, तो नुकसान सबको होता है.” बंगा के अनुसार, "अमेरिका से डील के बाद इन देशों को अपने बाजार खोलने पर ध्यान देना चाहिए."

अभी यह तय नहीं है कि जुलाई की डेडलाइन से पहले कितने देश अमेरिका से समझौता कर पाएंगे. यही वजह है कि टैरिफ के जरिए अमेरिका के उद्योगों को बढ़ावा देने की अमेरिकी नीति फिलहाल बाजारों को अस्थिर और निवेशकों को चिंतित कर रही है. वहीं, चीन के साथ टकराव लंबे समय तक खिंचने की संभावना है और कई विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा टैरिफ लंबे समय तक बने रह सकते हैं. इस वजह से बातचीत की मेज पर बहुत कुछ दांव पर है, लेकिन स्पष्टता और समझौते अभी दूर नजर आ रहे हैं.

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