बेल्जियम ने 1 दिसंबर को एक ऐतिहासिक कानूनी ढांचे की शुरुआत की है, जिसके तहत सेक्स वर्कर्स को रोजगार अधिकार दिए गए हैं. इस नए कानून के तहत सेक्स वर्कर्स को पेंशन, मातृत्व अवकाश और सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे अधिकार मिलेंगे. यह कदम 2022 में सेक्स कार्य को अपराधमुक्त करने के बाद उठाया गया है और यह वैश्विक स्तर पर पहला कदम है.
नई कानून के तहत, सेक्स वर्कर्स को रोजगार प्रमाणपत्र दिए जाएंगे, जिससे उन्हें स्वास्थ्य बीमा, सुरक्षित कार्य परिस्थितियां और कानूनी सुरक्षा मिल सकेगी. अब नियोक्ताओं को सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा, जिसमें कार्यस्थलों पर पैनिक बटन लगाना और सेक्स वर्कर्स को उन ग्राहकों या कार्यों को नकारने का अधिकार देना शामिल है, जिनसे वे असहज महसूस करते हैं.
यह कानून 2022 में हुए उन प्रदर्शनों से प्रेरित है, जिनमें सेक्स वर्कर्स के लिए महामारी के दौरान समर्थन की कमी पर सवाल उठाए गए थे. बेल्जियम सेक्स वर्कर्स यूनियन की अध्यक्ष विक्टोरिया ने इस बदलाव को क्रांतिकारी बताया है, क्योंकि यह सेक्स वर्कर्स को सुरक्षा और सशक्तिकरण का अवसर देता है.
हालांकि, कुछ आलोचक मानते हैं कि सेक्स वर्क को कानूनी रूप से मान्यता देने से शोषण और मानव तस्करी को बढ़ावा मिल सकता है. इस तरह के तर्क NGOs जैसे इसाला द्वारा दिए गए हैं, जो मानते हैं कि ज्यादातर सेक्स वर्कर्स पेशे से बाहर निकलने की चाहत रखते हैं, न कि केवल श्रमिक अधिकारों की. दूसरी ओर, मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि यह कानून नियोक्ता की शक्ति को सीमित करता है और सेक्स वर्कर्स को सम्मान प्रदान करता है.
बेल्जियम का यह कदम भारत जैसे देशों से अलग है, जहां सेक्स वर्क को अपराधमुक्त तो किया गया है, लेकिन उसे औपचारिक सुरक्षा नहीं मिल पाई है. अगर भारत में भी बेल्जियम की तरह मॉडल लागू किया जाए, तो सेक्स वर्कर्स की जिंदगी में सुधार हो सकता है, लेकिन इसे सामाजिक कलंक और प्रणालीगत अड़चनों का सामना करना पड़ेगा.
बेल्जियम की यह पहल एक वैश्विक मानक स्थापित करती है, जो सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को कानूनी पहचान और सुरक्षा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. यह अन्य देशों को सेक्स कार्य पर अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की चुनौती देती है, ताकि सभी पेशों के लिए सुरक्षा, समानता और सशक्तिकरण सुनिश्चित किया जा सके.