
सुनीता विलियम्स और उनके सहयोगी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर, नौ महीने बाद पृथ्वी पर सफलता से लौट आए हैं. उनके साथ आए दो और अंतरिक्ष यात्रियों को भी अभी घर जाने से पहले लंबी मेडिकल प्रक्रिया से गुजरना होगा.अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर नौ महीने रहने के दौरान विलियम्स और विलमोर को जो स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उठाने पड़े, उनमें से कुछ के बारे में काफी जानकारी है लेकिन कई और जोखिम आज भी एक रहस्य हैं.
अमेरिका के बेलर कॉलेज में सेंटर फॉर स्पेस मेडिसिन की प्रोफेसर रिहाना बोखारी कहती हैं कि विलियम्स और विलमोर के मिशन ने काफी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है लेकिन उनका आईएसएस में प्रवास काफी सामान्य रहा.
आईएसएस पर एक्सरसाइज
आईएसएस के मिशन आमतौर पर छह महीनों के होते हैं, लेकिन कई अंतरिक्ष यात्री वहां एक साल तक भी रुक चुके हैं. शोधकर्ताओं को इतनी अवधि तक अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ्य बनाए रखने की अपनी क्षमता पर पूरा विश्वास है.
ज्यादातर लोग जानते हैं कि वजन उठाने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत होती हैं. लेकिन धरती पर तो जरा सी गतिविधि को भी गुरुत्वाकर्षण शक्ति रोकती है, जबकि अंतरिक्ष में वो होती ही नहीं.
क्यों नौ महीनों तक अंतरिक्ष में फंसे रहे सुनीता विलियम्स, बुच विल्मोर
इसका मुकाबला करने के लिए अंतरिक्ष यात्री आईएसएस पर तीन एक्सरसाइज मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 2009 में लगाया गया एक रेजिस्टेंस उपकरण भी शामिल है जो वजन की नकल करने के लिए वैक्यूम ट्यूबों और फ्लाईव्हील तारों का इस्तेमाल करता है.
दो घंटे वर्कआउट करने से वो फिट रहते हैं. बोखारी ने एएफपी को बताया, "हमारे तरीके काफी प्रभावशाली हैं, यह दिखाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि अंतरिक्ष यात्री जब धरती पर वापस आते हैं तो उन्हें फ्रैक्चर से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती हैं," हालांकि स्कैन में बोन लॉस फिर भी नजर आता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा में वाइस चेयर ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन, इमानुएल उर्कियेता कहते हैं कि संतुलन में बाधा आना एक और समस्या है. उन्होंने एएफपी को बताया, "यह हर एक अंतरिक्ष यात्री के साथ होता है, उनके साथ भी जो अंतरिक्ष में बस कुछ ही दिनों के लिए जाते हैं."
गुर्दों और आंखों पर असर
अंतरिक्ष यात्रियों को मिशन के बाद नासा के 45 दिन के स्वास्थ्य लाभ कार्यक्रम में अपने शरीरों को फिर से ट्रेन करना होता है. एक और चुनौती जो उनके सामने आती है वो है, 'फ्लूइड शिफ्ट' यानी माइक्रोग्रैविटी में शरीर के अंदर मौजूद तरल पदार्थों का सिर की तरफ पुनर्वितरण.
इससे पेशाब में कैल्शियम का स्तर बढ़ सकता है, जिससे गुर्दों में पथरी का जोखिम बढ़ सकता है. फ्लूइड शिफ्ट 'इंट्राक्रेनियल' दबाव को भी बढ़ा सकते हैं, जिससे आंख की पुतली का आकार बदल सकता है और एसएएनएस सिंड्रोम हो सकता है. इसमें नजर को थोड़ा सा नुकसान हो सकता है.
एक और थ्योरी के मुताबिक ऐसा कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े हुए स्तर के कारण हो सकता है. लेकिन कम से कम एक मामले में तो लाभकारी असर हुआ है. नासा की अंतरिक्ष यात्री जेसिका मेर ने ताजा लॉन्च के पहले कहा, "मुझे काफी गंभीर रूप से एसएएनएस हुआ था. लॉन्च के समय मैंने चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंस पहने थे, लेकिन 'ग्लोब फ्लैटनिंग' की वजह से मेरी नजर अब 20/15 है - इससे महंगी सर्जरी संभव नहीं है. देश के करदाताओं, आपका धन्यवाद."
इसके अलावा आईएसएस पर रेडिएशन का स्तर पृथ्वी से ज्यादा है, क्योंकि वह वैन एलन रेडिएशन बेल्ट से गुजरता है. धरती को उसका मैग्नेटिक फील्ड रेडिएशन से काफी सुरक्षा देता है और यह बेहद जरूरी है. नासा का लक्ष्य है कि अंतरिक्ष यात्रियों में बढ़ते कैंसर के जोखिम को तीन प्रतिशत से कम रखना.
लेकिन ऐस्ट्रोफिजिसिस्ट जिगफ्रीड इग्ल ने समझाया कि चांद और मंगल पर जाने वाले मिशन अंतरिक्ष यात्रियों को कहीं ज्यादा एक्सपोजर दे सकते हैं.
सीके/ओएसजे (एएफपी)