बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) के पति राज कुंद्रा (Raj Kundra) को पॉर्न फिल्मों (Porn Video) के मामले में गिरफ्तार किया गया है. उनकी गिरफ्तारी के बाद राज कुंद्रा के वकीलों ने कोर्ट में तर्क दिया कि जिन फिल्मों को पॉर्न बताकर मुंबई पुलिस ने कार्रवाई की है, वह असल में इरॉटिक फिल्में हैं पॉर्न नहीं. तो वहीं पूनम पांडे ने भी कहा राज जो फिल्में बनाते थे वो इरोटिक होती थी पोर्न यानी सेक्सी वीडियो नहीं. पोर्न और इरोटिक कंटेंट को लेकर सोशल मीडिया पर बहस देखने को मिल रही है. लेकिन क्या इरोटिक और पोर्न का मतलब एक होता है? अमेरिकन फिल्म प्रोड्यूसर लूसी फिशर जिन्हें मनोरंजन उद्योग में महिलाओं और कामकाजी माताओं के लिए अग्रणी के तौर पर देखा जाता है. उन्होंने इरोटिक और पोर्नोग्राफी को बेहद ही शानदार तरीके से समझाया है. उनके मुताबिक इरोटिक रेशम में वालियां के समान है जबकि पोर्नोग्राफी पूरी तरह से गोरा है. इरोटिक मध्यम वर्ग के अच्छे लोगों के लिए है जैसे हम हैं, जबकि पोर्नोग्राफी पूरी तरह से अकेले, बदसूरत और अनपढ़ लोगों के लिए है. जाहिर है फिशर का ये बयान उन तमाम लोगों की सोच पर वार करता है. जो दोनों में फर्क नहीं समझते हैं.
तो वहीं इरोटिक और पोर्नोग्राफी को अमेरिका के रिटायर्ड नैदानिक मनोवैज्ञानिक लियोन एफ. सेल्टज़र ने 2011 के अपने एक लेख से दोनों में अंतर को समझाया था. वो लिखते है कि
"यदि काम को कामुक रूप से सही ढंग किया गया है, तो आमतौर पर यह माना जाता है कि निर्माता ने विषय वस्तु को प्रशंसनीय के रूप में देखा. जिसे हम आनंद लेने, जश्न मनाने, और महिमा कर सकते हैं.
वह आगे कहते हैं, "यह पोर्नोग्राफी से बिलकुल अलग है. ये हमारी इंद्रियों या कामुक भूखों के लिए अपील नहीं करता है. यह हमारे सौंदर्य बोध को भी शामिल करता है. असल में सेल्टजर हमें बेहतर ढंग से समझाते हैं कि जो काम कामुकता को निर्धारित करता है वो ये है कि कलाकार ने उस सब्जेक्ट को कैसे हासिल किया है.
दरअसल पोर्नोग्राफी का सबसे बड़ा मकसद दर्शकों को जगाना होता है वो आपको मानवीय रूप आनंदित करने या शारीरिक अंतरंगता का सम्मान करना नहीं सिखाता है. पोर्नोग्राफी सीधा मकसद तत्काल और तीव्र उत्तेजना को जगाना है. इसके साथ ही ये एक पैसे कमाने का तरीका है. लेकिन इरोटिक फिल्मों और विषय वस्तु के साथ ऐसा नहीं है.
जबकि पोर्नोग्राफी के खिलाफ कई बार महिलाएं आवाज बुलंद करती भी दिखाई देती हैं. वो आरोप लगाती है कि पोर्नोग्राफी महिलाओं को एक यौन वस्तुओं तक के लिए सीमित कर देता है जो मुख्य उद्देश्य पुरुषों की वासना को पूरा करना होता है. जाहिर है इरोटिक और पोर्नोग्राफी दो अलग-अलग चीजें है लेकिन कई बार ये इंसान की सोच पर होता है. वो किसे क्या समझना चाहता है. लेकिन ये बातचीत के रास्ते जरूर खोलती है क्योंकि हमारा समाज सेक्स पर बातचीत करने से आज भी हिचकिचाता है.