Jaya Ekadashi 2022: भूत-प्रेत की योनि से मुक्ति का एकमात्र व्रत! जानें व्रत का महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा विधि?
जया एकादशी (File Photo)

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माघ मास की शुक्लपक्ष (Shukla Paksha) की एकादशी का बहुत महत्व है. भगवान श्रीहरि को समर्पित यह एकादशी जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के नाम से प्रचलित है. मान्यता है कि इस दिन श्रीहरि का व्रत एवं षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करने से श्रीहरि शीघ्र प्रसन्न होते हैं, और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस साल जया एकादशी का व्रत एवं पूजन 12 फरवरी (शनिवार) को पड़ रहा है. Pausha Putrada Ekadashi Vrat 2022: पौष पुत्रदा एकादशी श्रीहरि की कृपा पाने के लिए करें ये काम, इन चीजों से करें परहेज

जया एकादशी का महात्म्य!

पद्म पुराण में जया एकादशी का महात्म्य स्वरूप उल्लेखित है कि मृत्यु के बाद जीव को अपने कर्मों के अनुसार अनेक अदृश्य शरीर (प्रेत और भूत पिशाच की योनी) में जाना होता है. जया एकादशी के दिन श्रीहरि का व्रत एवं पूजा अर्चना कर इन अदृश्य योनियों से मुक्ति मिलती है. पद्म पुराण में उल्लेखित कथा के अनुसार इंद्रदेव की सभा में एक बार नर्तकी गंधर्व कन्या पुष्यवती और गायक माल्यवान अपना कार्य भूल कर एक दूसरे के आकर्षण में खो जाते हैं. इस कारण इंद्रदेव से शापित होकर उन्हें पिशाच योनी में जाकर हिमालय पर्वत के वृक्ष पर रहने का सहारा मिला था. यहाँ उन्हें जया एकादशी का व्रत करने के बाद श्रीहरि की कृपा से प्रेत योनि से मुक्ति पाकर देव लोक में पुन: स्थान प्राप्त हुआ था.

जया एकादशी (12 फरवरी 2022, शनिवार) शुभ तिथि एवं पूजा मुहूर्त

जया एकादशी प्रारंभः 01.53 PM (11 फरवरी 2022)

जया एकादशी समाप्त 04.28 PM (12 फरवरी 2022)

उदया तिथि 12 फरवरी दिन शनिवार को पड़ रहा है, इसलिए जया एकादशी का व्रत 12 फरवरी को मान्य है.

पारण का समयः 07.01 AM से 09.30 AM बजे तक (13 फरवरी 2022)

सुबह 07 बजकर 01 मिनट से 09 बजकर 15 मिनट

जया एकादशी का व्रत एवं पूजा का विधान

जया एकादशी का व्रत रखने वाले जातक को एक दिन पूर्व यानी दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें. व्रत के दिन पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करें. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनकर श्रीहरि के कृष्ण रूपी अवतार की पूजा-व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात श्रीकृष्ण की प्रतिमा को गंगाजल एवं पंचामृत से स्नान करवाकर स्वच्छ आसन पर विराजित करें. प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित कर श्रीहरि का आह्वान करें. अब रोली, अक्षत, तुलसी पत्ता, मौसमी फल, मिठाई अर्पित करें. श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री”

अब विष्णु चालीसा का पाठ करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारें. मान्यता है कि रात्रि जागरण एवं कीर्तन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. अगले दिन स्नान-ध्यान के पश्चात ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को यथाशक्ति दान देने के पश्चात पारण करें.