भारत समेत दुनिया भर में आज 10 नवंबर रविवार को 'ईद-मिलाद-उन-नबी' का पर्व पूरी धूमधाम एवं परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है. पहले 'ईद', फिर 'ईद-उल-जुहा' और अब 'ईद-मिलाद-उन-नबी'. ऐसे में आम लोगों के जेहन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि मुस्लिम समाज में साल में कितनी ईदें मनाई जाती हैं और तीनों ईदों और उनकी संस्कृति तथा रीति-रिवाजों में क्या फर्क है. इस्लामी कैलेंडर के अनुसार साल में जो सबसे पहले ईद आती है, उसे 'ईद-उल-फित्र' कहते हैं. यह रमजान माह की समाप्ति के बाद रोज़ा खत्म होने के पर्व के रूप में मनाई जाती है. मान्यता है कि पहली 'ईद-उल-फित्र' पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में 'जंग-ए-बदर' के बाद मनायी थी.
‘ईद-उल-अजहा’ मुख्य ईद के ढाई माह बाद आती है. इसे ‘बकरीद’ के नाम से भी जाना जाता है. चूंकि इस दिन कुछ नियमों का पालन करते हुए कुर्बानी दी जाती है. इसलिए इसे कुर्बानी की ईद और सुन्नत-ए-इब्राहिम भी कहते हैं. क्योंकि इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी.
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‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ की रीति-रिवाज और संस्कृति को समझने से पूर्व इसके शाब्दिक अर्थ को समझना जरूरी है. ईद का आशय ‘खुशी’ और ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ का अर्थ है नबी का जन्मदिन. यानी आज के दिन मुसलमान अपने नबी के जन्मदिन का जश्न मनाते हैं. यहां ‘नबी’ मुसलमानों के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद को कहा जाता है.
पैगंबर मुहम्मद का जन्म सउदी अरब के मक्का में 12 रवि-उल-अव्वल को हुआ था. रवि-उल-अव्वल वास्तव में इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रवि-उल-अव्वल को कहते हैं. इस्लामी कैलेंडर लूनर पॉलिसी के तहत यानी इसमें चांद के आधार पर तिथियां तय की जाती हैं. इस्लामी तारीख के अनुसार आज जहां 12 रवि-उल-अव्वल है, वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 10 नवंबर है.
विदेशों में ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ का पर्व
आज दुनिया भर में ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ यानी हजरत मुहम्मद के जन्मदिन की खुशियां मनाई जा रही है. कुछ देशों यह पर्व काफी जोश और उत्साह के साथ एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, लेकिन सौदी अरब में ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ को लेकर विशेष उत्साह नहीं मनाया जाता. क्योंकि वहां की हुकूमत में जन्म-दिन मनाने की खास रवायत नहीं है. उधर टर्की में यही पर्व खूब जोर-शोर से मनाया जाता है. 1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई थी, वहां के धार्मिक नेता इमाम खुमैनी ने कहा था कि हजरत मुहम्मद की पैदाइश को हम इस तरह से मना सकते हैं कि हम दुनिया भर में मुहम्मद साहब के संदेश का प्रचार-प्रसार कर सकें., ताकि दुनिया के सामने मुहम्मद साहब की सही छवि पहुंच सके
भारत में भी दो मत
भारतीय मुसलमानों में भी ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ के रीति-रिवाज को लेकर अलग-अलग मत है. मुसलमानों के दो सबसे बड़े समुदाय शिया और सुन्नी में इस त्यौहार को लेकर बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन सुन्नी समुदाय में मुसलमान दो हिस्सों में बंटे हैं. एक ग्रुप स्वयं को देवबंदी मुसलमान कहता है, और दूसरा बरेलवी मुसलमान. बरेलवी मुसलमान इस त्यौहार को खूब जोर-शोर से मनाते हैं. इस दिन वे खुदा की इबादत करते हैं, रोजे रखते हैं, घरों में खास तरह के पकवान बनाते हैं. अलग-अलग मंचों से हजरत मुहम्मद के शांति एवं सौहार्द के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाते हैं. जबकि देवबंदी समूह के मुसलमान हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को किसी उत्सव की तरह नहीं मनाते. उनका भी यही मानना है कि इस्लाम में जन्मदिन सेलीब्रेट करने की विशेष प्रथा नहीं है.
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दिया इस पर्व को विशेष दर्जा
भारत में पहले गैरमुस्लिमों को इस पर्व के बारे में विशेष जानकारी नहीं थी. लेकिन साल 1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने ‘ईद-मिलाद-उन-नबी’ पर्व को सरकारी अवकाशों में शामिल करने का आदेश पारित किया. जब देश भर में इस दिन अवकाश होना शुरू हुआ तो स्वाभाविक रूप से गैर मुस्लिमों में भी इस पर्व को जानने-समझने की ललक जागी. इससे इस ईद-मिलाद-उन-नब को विशेष दर्जा मिल गया.