
Eid ul Azha 2025: पाकिस्तान (Pakistan) में ईद-उल-अजहा का त्यौहार नजदीक आते ही वहां के अल्पसंख्यक अहमदिया मुस्लिम समुदाय (Ahmadiyya Muslim) की मुश्किलें बढ़ गई हैं. पंजाब और सिंध प्रांतों में पुलिस और प्रशासन उन पर यह दबाव बना रहे हैं कि वे कुर्बानी देने या ईद से जुड़ी कोई भी रस्म निभाने से दूर रहें, यहां तक कि अपने घरों के अंदर भी.
ताजा मामले में, पंजाब की प्रांतीय सरकार ने अहमदिया समुदाय के लोगों को एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया है. इस शपथ पत्र में लिखा है कि अगर वे ईद मनाते या कुर्बानी देते पाए गए, तो उन्हें 5 लाख पाकिस्तानी रुपये (PKR) का भारी जुर्माना भरना होगा.
यह कार्रवाई उन लोगों के साथ हो रही है, जिनके पूर्वजों ने कभी मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग का साथ देकर पाकिस्तान के निर्माण का पुरजोर समर्थन किया था. आज उसी पाकिस्तान में उन्हें अपनी धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है.
क्यों हो रहा है यह अत्याचार?
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को आधिकारिक तौर पर मुसलमान नहीं माना जाता है. इसकी जड़ें 1974 के एक संवैधानिक संशोधन में हैं, जब उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था.
इसकी मुख्य वजह एक धार्मिक मतभेद है. इस्लाम की मुख्य धारा मानती है कि पैगंबर मुहम्मद अल्लाह के आखिरी पैगंबर हैं. वहीं, अहमदिया समुदाय मिर्ज़ा गुलाम अहमद को भी एक पैगंबर मानता है। इसी मान्यता के कारण कट्टरपंथी संगठन उन्हें "गुस्ताख" मानते हैं.
1984 में, जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में "अध्यादेश XX" नामक एक और कठोर कानून लाया गया. यह कानून अहमदिया लोगों को सार्वजनिक रूप से नमाज़ पढ़ने, अपनी इबादतगाह को मस्जिद कहने या किसी भी तरह से खुद को मुसलमान के तौर पर पेश करने से रोकता है. ऐसा करने पर उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
मुख्य बातें
- पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय पर ईद-उल-अजहा (बकरीद) न मनाने का दबाव.
- हस्ताक्षर करवाए जा रहे शपथ पत्र (Affidavit), उल्लंघन पर 5 लाख पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना.
- विडंबना यह है कि इसी समुदाय ने कभी पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन किया था.
सिर्फ ईद ही नहीं, हर तरफ से उत्पीड़न
यह उत्पीड़न सिर्फ ईद तक सीमित नहीं है. अहमदिया समुदाय पाकिस्तान में लगातार हिंसा और भेदभाव का शिकार होता है.
- हमले: तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकवादी संगठन उन पर हमले करते रहे हैं.
- कब्रों का अपमान: इसी साल मार्च में, पंजाब के खुशाब जिले में कट्टरपंथियों ने अहमदिया समुदाय की 100 से ज़्यादा कब्रों को तोड़ दिया था.
- गिरफ्तारियां: एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, अकेले जून 2024 में, 36 अहमदिया लोगों को सिर्फ इसलिए मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया ताकि वे ईद पर कुर्बानी न दे सकें.
हैरानी की बात यह है कि वकीलों के संगठन, लाहौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी पुलिस को पत्र लिखकर अहमदिया समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. उनका कहना है कि अहमदिया लोगों द्वारा कुर्बानी करने से "बहुसंख्यक मुसलमानों की भावनाएं आहत होती हैं."
संक्षेप में, पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को व्यवस्थित तरीके से उनके धार्मिक और नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. जिन लोगों ने पाकिस्तान की नींव में अपना योगदान दिया, आज उन्हें उसी देश में अपनी आस्था का पालन करने के लिए या तो छिपना पड़ता है या फिर जुर्माना और जेल का सामना करना पड़ता है.