
Dholera Smart City Scam: राजस्थान के दो भाइयों ने 'ढोलेरा स्मार्ट सिटी' के नाम पर देशभर के हजारों लोगों को चकमा देते हुए करीब 2,676 करोड़ रुपये की ठगी को अंजाम दिया है. इस मामले ने देशभर में सनसनी फैला दी है और अब प्रवर्तन निदेशालय (ED) तक इसकी जांच कर रहा है.सीकर जिले के रहने वाले सुभाष बिजरानी और रणवीर बिजरानी नामक दो भाइयों ने साल 2021 में ‘नेक्सा एवरग्रीन’ नाम की कंपनी को अहमदाबाद में पंजीकृत कराया.
कंपनी ने खुद को गुजरात की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘ढोलेरा स्मार्ट सिटी’ का हिस्सा बताया और बड़ी मात्रा में जमीन का स्वामित्व होने का दावा किया.ये भी पढ़े:Mithi River Desilting Scam: मिठी नदी सफाई घोटाला मामले में ED की बड़ी कार्रवाई, मुंबई और कोच्चि में 15 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी
फर्जी वादे, हाई रिटर्न और प्लॉट का झांसा
कंपनी ने लोगों को जमीन, फ्लैट और भारी मुनाफे का लालच देकर निवेश के लिए प्रोत्साहित किया. सोशल मीडिया और वीडियो प्रेजेंटेशन के माध्यम से ढोलेरा शहर के भविष्य की तस्वीरें दिखाकर लोगों को भरोसे में लिया गया.
एमएलएम मॉडल से फैला नेटवर्क
इस स्कीम में मल्टी-लेवल मार्केटिंग (MLM) का तरीका अपनाया गया. जो निवेशक दूसरों को जोड़ते, उन्हें लेवल के अनुसार कमीशन, बाइक, लैपटॉप और कार जैसे ईनाम दिए गए. इस मॉडल के जरिए राजस्थान में हजारों एजेंट बनाए गए और करीब 1,500 करोड़ रुपये कमीशन में बांट दिए गए.
लोगों का पैसा आया ठगों के शाही खर्चों में काम
निवेशकों से जुटाई गई रकम से आरोपियों ने 1,300 बीघा जमीन, राजस्थान में खदानें, अहमदाबाद में फ्लैट, और गोवा में 25 रिसॉर्ट्स खरीदे. इसके अलावा, 250 करोड़ रुपये कैश में निकाले गए और शेष रकम 27 शेल कंपनियों में ट्रांसफर की गई.
ऑफिस बंद कर आरोपी फरार
जैसे ही लोगों को ठगी का एहसास हुआ, कंपनी के सारे कार्यालय बंद कर दिए गए और आरोपी फरार हो गए. इसके बाद राजस्थान पुलिस ने जोधपुर में FIR दर्ज कर जांच शुरू की.प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी अब इस मामले में सक्रियता दिखाते हुए 25 ठिकानों पर छापेमारी की है.
क्या है असली ढोलेरा स्मार्ट सिटी?
'ढोलेरा स्मार्ट सिटी' वास्तव में भारत सरकार और गुजरात सरकार की संयुक्त परियोजना है.यह देश की पहली ग्रीनफील्ड स्मार्ट सिटी है जो करीब 920 वर्ग किलोमीटर में फैली है. इस शहर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट, उद्योगिक क्षेत्र, और मल्टीनेशनल कंपनियों के ऑफिस प्रस्तावित हैं। इस परियोजना को 2042 तक पूर्ण किया जाना है.