Kali Puja 2021: कब है काली पूजा? जानें क्यों नहीं घरों में करते काली पूजा? क्या है इसका इतिहास
मां काली, (फोटो क्रेडिट्स: Wikimedia Commons)

Kali Puja 2021: कार्तिक मास में होनेवाले दीपावली महोत्सव का अहम हिस्सा है काली पूजा, काली पूजा का पर्व मूलतः बंगाल, उड़ीसा एवं असम में मनाये जानेवाले प्रमुख पर्वों में से एक है, लेकिन माँ काली का महत्व एवं पूजा-अर्चना सनातन धर्म में भी वर्षों से होता आ रहा है. यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या जिसे दीपनिता अमावस्या भी कहते हैं, के दिन सेलीब्रेट किया जाता है. इसे श्यामा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. आइये जानें इस वर्ष कब और किस मुहूर्त में तथा किस विधि से करें काली पूजा? यह भी पढ़ें: Lakshmi Puja 2021: दिवाली के दिन इस मुहूर्त में करें लक्ष्मी पूजन, जानें पूजा विधि और महत्व

काली पूजा का इतिहास

बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी तक काली पूजा का प्रचलन नहीं था. यद्यपि माँ काली को समर्पित एक वार्षिक उत्सव के तौर पर बंगाल में नवद्वीप के राजा कृष्णचंद्र द्वारा आयोजित किया जाता था, लेकिन 19 वीं शताब्दी में राजा कृष्णचंद्र के पोते ईश्वरचंद्र और बंगाल के धनी जमींदारों ने काली पूजा को भव्यतम तरीके से मनाने का सिलसिला शुरु किया. शीघ्र ही बंगाल में मनाये जाने वाले दिव्य दुर्गा पूजा के समानांतर काली पूजा को भी भव्यतम तरीके से मनाया जाने लगा. आज कार्तिक मास की अमावस्या के दिन काली पूजा हर बंगाली समुदाय के लोग सच्ची श्रद्धा एवं निष्ठा से करते हैं.

काली पूजा 04 नवंबर (गुरुवार) 2021

काली पूजा निशिता समय 11.07 (दिन) से 11.58 बजे तक (कल 51 मिनट तक)

अमावस्या शुरूः 06.03 AM (04 नवंबर, 2021)

अमावस्या समाप्तः 02.44 AM (05 नवंबर, 2021)

अमूमन काली माँ को रौद्रारूपा माना जाता है. मान्यता है कि काली मां की पूजा-उपासना में किंचित भूल अथवा गलती हो जाये तो माँ रौद्र रूप धारण कर लेती हैं, जिससे जातक को किसी भी प्रकार के नुकसान की संभावना होती है, इसीलिए हर घरों में काली पूजा का विधान नहीं है. इसलिए कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अस्थाई मंदिरों अर्थात पंडालों में माँ काली जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, और अर्धरात्रि में इनकी पूजा प्रारंभ होती है. मां काली की पूजा खास ब्राह्मण ही करते हैं, जिन्हें माँ काली के आह्वान एवं प्रस्थान का विधि-विधान पता होता है. माँ काली की पूजा तांत्रिक विधि-विधान से की जाति हैं, इसलिए पूजा के समय आम लोगों की उपस्थिति वर्जित मानी जाती है. कुछ बंगाली घरों में जिस माँ काली की पूजा की जाती है, उन्हें आद्य शक्ति कहा जाता है. आद्या शक्ति की पूजा में चावल, दाल और फलों से बनी मिठाइयां अर्पित की जाती हैं.