Swami Vivekananda Jayanti 2022: 39 वर्ष में अनंत उपलब्धियां! जानें स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े 5 रोचक एवं प्रेरक प्रसंग
स्वामी विवेकानंद जयंती 2022 (Photo Credits: File Image)

Swami Vivekananda Jayanti 2022: स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) केवल 39 वर्ष की आयु लेकर इस दुनिया में आये थे, मगर छोटी-सी आयु में ही उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने वाले इतने कार्य किये, जितना आज तक किसी लंबी उम्र वाले नहीं कर सके थे. यही वजह है कि स्वामीजी के जन्म को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है, आखिर गुलाम भारत में विवेकानंद ऐसा क्या कर गए कि दुनिया ने उन्हें स्वामी की उपाधि दे दी. प्राचीन भारत से लेकर आज के भारत में युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले एकमात्र शख्सियत स्वामी विवेकानंद ही हो सकते हैं.  विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक धनी कायस्थ परिवार में हुआ था. बचपन में उनका नाम वीरेश्वर रखा गया, किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक सुप्रसिद्ध वकील थे और माँ भुवनेश्वरी देवी आध्यात्मिक महिला थीं. वीरेश्वर के दादा जी दुर्गाचरण दत्ता, संस्कृत फ़ारसी के विद्वान थे. माता-पिता के धार्मिक, प्रगतिशील एवं तर्कसंगत विचारधारा ने विरेश्वर उसी के  अनुरूप गढ़ने में अहम भूमिका निभाई. आइए जानते है स्वामी विवेकानंद से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक किस्सों को जो किसी के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन कर उसके जीवन को सार्थक बना सकते हैं.

संस्कृति से चरित्र का निर्माण

एक बार विवेकानंद भगवा वस्त्र एवं पगड़ी पहने विदेश पहुंचे. उनका स्वागत करनेवालों ने पूछा, आपके शेष सामान कब तक पहुंचेंगे? उन्होंने कहा, -बस यही सामान है. इस पर कुछ लोगों ने कटाक्ष किया, अरे! यही संस्कृति है आपकी? पूरे तन पर बस एक भगवा चादर? कोट-पतलून जैसा कुछ नहीं पहनते हैं?  विवेकानंद ने हंसते हुए कहा, - हां, हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है. आपकी संस्कृति दर्जी तैयार करते हैं, हमारी संस्कृति हमारा चरित्र तैयार करते हैं. इसका तात्पर्य यह है कि संस्कृति का निर्माण वस्त्रों से नहीं बल्कि चरित्र के विकास से होती है.

माँ का सम्मान!

एक बार विवेकानंद विदेश प्रवास पर थे. लोग उनका स्वागत कर रहे थे. इसी क्रम में जब मेजबानों ने विवेकानंद से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो स्वामीजी ने हाथ जोड़कर उनके अभिवादन का जवाब दिया. मेजबानों को लगा कि स्वामीजी को अंग्रेजी नहीं आती. तब एक ने टूटी-फूटी हिंदी में पूछा आप कैसे हैं. इस पर स्वामी जी ने जवाब दिया, आय एम फाईन थैक्यू. मेजबान हैरान रह गये. पूछा आपको इंग्लिश आती है तो मेरे सवाल का जवाब हिंदी में क्यों दिया? इस पर स्वामी जी ने कहा, -जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे, तब मैं अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान कर दिया. स्वामी जी का जवाब सुनकर वे आत्मविभोर होकर रह गये. यह भी पढ़ें: Swami Vivekananda Jayanti 2022 Wishes: स्वामी विवेकानंद जयंती पर इन हिंदी WhatsApp Messages, GIF Images और Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

लक्ष्य पर ध्यान नहीं तो सफलता नहीं!

एक बार विवेकानंद ने अमेरिका के एक शहर में भ्रमण करते हुए देखा कि कुछ युवक नदी में तैर रहे अंडे पर बंदूक से निशाना साध रहे थे, लेकिन एक भी निशाना सही नहीं बैठ रहा था. विवेकानंद जी ने उनसे बंदूक लेकर अंडे पर निशाना लगाया. पहला ही निशाना अचूक था. उन्होंने एक-एक सभी 12 अंडों पर सटीक निशाना लगाया. यह देख हैरान-परेशान युवकों पूछा आपके सभी निशाने सटीक कैसे लगे? तुम लोगों ने लक्ष्य पर ध्यान नहीं लगाया. कोई भी काम करो लक्ष्य पर नजर जरूरी है. तभी सफलता मिलती है.

मुसीबत से डरकर भागो नहीं उसका सामना करो!

एक बार बनारस (अब वाराणसी) के एक दुर्गा मंदिर से विवेकानंदजी निकल रहे थे, कि तभी वहां के सारे बंदर इकट्ठे होकर विवेकानंद के हाथ से प्रसाद छीनने और घुड़की देकर डराने लगे. भयभीत होकर स्वामी जी वहां से भागने लगे. तभी एक वृद्ध संत जो सब कुछ देख रहा था, उसने स्वामी जी को रोका और कहा, भागो नहीं उसका सामना करो. स्वामी जी तुरंत रुके और बंदरों की ओर पलटे. इस पर सारे बंदर भाग गये. स्वामी जी ने वृद्ध संत को धन्यवाद दिया. इस घटना ने स्वामीजी के मन में इस धारणा को स्थापित किया कि मुसीबत से डरो नहीं, उसका सामना करो. बाद में स्वामीजी जहां भी भाषण करते, इस घटना का जिक्र जरूर करते थे.

अपनी मौत की भविष्यवाणी!

एक बार एक सवाल के जवाब में विवेकानंद ने बताया कि वे ज्यादा वक्त तक जीवित नहीं रहेंगे. हो सकता है कि 40 की उम्र भी क्रॉस ना कर पायें. उनके स्वस्थ व्यक्तित्व एवं वाणी को देखते हुए लोगों ने कहा था कि स्वामी जी की यह धारणा सच साबित नहीं होगी, लेकिन 4 जुलाई 1902 को तीसरी बार हार्ट अटैक के बाद वे आराम करने चले गये. कहा जाता है उन्होंने समाधि की अवस्था में ही 39 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ले ली थी.