Subhash Chandra Bose Jayanti 2019: मृत्यु एक अकाट्य सच है, जन्म लेने वाले हर जीव की मृत्यु की तारीख सुनिश्चित है, लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि 23 जनवरी 1897 को जन्में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की मृत्यु (Death) आज तक एक अबूझ पहेली बनी हुई है. संभवतया वह दुनिया के अकेले व्यक्ति हैं जिनकी जीवनी में मौत की तारीख दर्ज नहीं है. आखिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का सच क्या है? मृत्यु की यह कहानी शुरु होती है 1945 से जब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) की आग में जल रही थी और भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के मुहाने पर खड़ा था.
नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को जापान के सिंगापुर में तैयार किया था. उन्हें विश्वास था कि वे ब्रिटिश हुकूमत को हराकर भारत को गुलामी से मुक्ति दिला देंगे, लेकिन इससे पूर्व ही अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर जापान को बुरी तरह हरा कर सिंगापुर पर कब्जा कर लिया.
जापान ने 15 अगस्त 1947 को अमेरिका के आगे समर्पण कर दिया. लिहाजा नेता जी को अपना ठिकाना बदलना पड़ा. उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ 16 अगस्त 1945 को बैंकाक से टोकियो के लिए उड़ान भरी, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत अनुज धर ने दिया. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘नेता जी की रहस्यगाथा’ में लिखा है कि चूंकि नेताजी को पूर्व अहसास हो गया था कि विश्व युद्ध में जापान की हार होगी, लिहाजा वह टोकियो के बजाय रुस चले गये थे. उन्हें पता था कि अगर वह यहां रह गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा. ऐसी स्थिति में भारत की आजादी लड़ाई का दीया बुझ जायेगा. यह भी पढ़ें: Subhash Chandra Bose Jayanti 2019: देश में मनाई जा रही है नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती, जानिए इस महान देशभक्त के जीवन से जुड़ी 10 दिलचस्प बातें
नेताजी ने विश्व युद्ध के दौरान ही जापान में रुस के अंबेसडर को चिट्ठी लिख कर मदद मांग ली थी. रुस और नेताजी के सौजन्य से रुस में उनके विमान दुर्घटना का ड्रामा खेला गया. रहस्य गाथा के माध्यम से अनुज धर ने लिखा कि कहा जाता है कि नेता जी का प्लेन ताइवान में क्रैश हुआ था और उनके कुछ साथियों के साथ उनका अंतिम संस्कार वहीं कर दिया गया था, लेकिन ताइवान से प्राप्त रिपोर्ट में अगस्त 1945 में ताइवान में मरने वाले दो सौ लोगों की सूची में न नेताजी का नाम है न ही उनके किसी साथी का.
पिछले दिनों देश के कुछ दैनिक अखबारों में यह खबर सुर्खियों में छपी थी कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने नेता जी के परिवार की जासूस करवाई थी, लेकिन यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि नेहरु सरकार अपने द्वारा बिठाये गये पहले कमीशन की राय से सहमत थी और नेता जी की मौत पहले ही हो गयी थी तो उनके परिवार की जासूसी करवाने की नेहरु जी को क्या जरूरत थी.
लेकिन यहां एक परेशान करने वाली बात यह भी है कि जब पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की विदेश में हुई मौत पर सिर्फ एक कागज का नोट सरकारी रिपोर्ट में रखा गया था तो नेता जी की मौत पर 217 सिक्रेट फाइलें बनवाने की क्या जरूरत थी?
माना जा रहा है कि अगर यह फाइलें निकट भविष्य में खुलीं तो इसकी आंच 1939 तक जायेगी. जब अहिंसा के एक कथित पुजारी ने नेता जी को बेइज्जत करके जबरदस्ती कांग्रेस से बाहर निकाला. उन्हें मजबूरी में देश से बाहर रहते हुए आजादी की लड़ाई लड़नी पड़ी. शायद इन नेताओं के मन में यह डर बैठ गया था कि कहीं नेताजी स्वदेश वापस आ गये तो जनता की मांग पर उन्हें ही प्रधानमंत्री न बना दिया जाए. यह भी पढ़ें: Swami Vivekananda Jayanti 2019: स्वामी विवेकानंद की 156वीं जयंती, 10 ऐसे प्रेरणादायी विचार जो आपके जीवन में भर देंगे नई ऊर्जा
नेताजी की मौत से जुड़ी 217 फाइलों का अंबार खड़ा करना और उन्हें सार्वजनिक नहीं करवाना, यह कुछ ऐसे संकेत देता है कि नेताजी की मौत प्लेन क्रैश में नहीं बल्कि आजादी के कथित नेताओं ने विदेश में अंग्रेजी सरकार से सांठ गांठ करके उनकी हत्या करवाई थी. आखिर नेताजी की मौत की सच्चाई से जनता कब वाकिफ होगी.