Shiv Jayanti 2019: जब ब्राह्मण ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक कराने से किया इंकार, जानिए उनके जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ अनसुने किस्से
छत्रपति शिवाजी महराज ( फोटो क्रेडिट - wikimedia commons )

Shivaji Jayanti 2019: भारत के वीर सपूतों और महान शासकों में शुमार छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के जीवन पर आधारित कई किताबें लिखी गई हैं. कई नाटकों के माध्यम से उनके जीवन का परिचय देने की कोशिश की जाती रही है. शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) एक ऐसे महान मराठा शासक और वीर योद्धा थे जिनकी ख्याति सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरा देश उससे वाकिफ है. 6 मई यानी आज तिथि के अनुसार देश भर में शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जा रही है. बता दें कि हर साल शिव जंयती (Shiv Jayanti) को धूमधाम से मनाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में कई तरह के कार्यक्रमों का आजोजन किया जाता है.

मराठा परिवार में जन्मे शिवाजी महाराज बचपन से ही साहसी थे. उनका जन्म 19 फरवरी सन 1627 को शिवनेरी किले में हुआ था. शिवाजी के जीवन से जुड़ी कई रोचक बातों से वैसे तो अधिकांश लोग वाकिफ हैं, लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि कुर्मी जाति का होने की वजह से ब्राह्मण उनका राज्याभिषेक कराने के लिए तैयार नहीं थे. चलिए इस बेहद खास मौके पर जानते हैं शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्से. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: मराठा गौरव और महान शासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने खेल-खेल में सीखा किले पर फतह करना

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज ने हिंदू राज्य की स्थापना 6 जून 1674 को की. इसके बाद उन्होंने रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक कराया. हालांकि शिवाजी महाराज कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते थे, इसलिए ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक कराने से इंकार कर दिया. शिवाजी महाराज ने अपने राज्याभिषेक कार्यक्रम में बनारस के ब्राह्मणों को भी बुलाया था, लेकिन वे भी उनका राज्याभिषेक कराने के लिए राजी नहीं हुए. कहा जाता है इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण को रिश्वत देकर अपना राज्याभिषेक कराया था. रायगढ़ में ही उन्हें छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया था.

इसलिए शिवाजी नाम रखा गया

कहा जाता है कि शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने देवी शिवाई के नाम पर उनका नाम शिवाजी रखा था. देवी शिवाई से ही जीजाबाई ने एक स्वस्थ शिशु के होने की प्रार्थना की थी. शिवाजी महाराज की माता धार्मिक विचारों वाली थीं और घर के धार्मिक माहौल का उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. यही वजह है कि कम उम्र में ही उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर लिया. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: एक महान योद्धा और दयालु शासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये खास बातें

खेल-खेल में जीतने लगे किले

शाहजी ने अपने पुत्र शिवाजी और पत्नी जीजाबाई को पुणे में रखा और दोनों की देखरेख की जिम्मेदारी अपने प्रबंधक दादोजी कोंडदेव को दे दी. दादोजी ने बाल शिवाजी को बेहद कम उम्र में ही घुड़सवारी, तीरंदाजी और निशानेबाजी का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. शिवाजी बचपन में अपने दोस्तों के साथ किले फहत करने का खेल खेला करते थे और खेल-खेल में उन्होंने हकीकत में कई किले जीत लिए. बताया जाता है कि महज 15 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला युद्ध लड़ा और टोरना किले पर हमला करके उसे जीत लिया. इसके बाद उन्होंने कोंडना और राजगढ़ किले पर भी फतह हासिल कर ली.

राजा-महाराजाओं में फैली दहशत

शिवाजी के बढ़ते शौर्य को देखकर बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के पिता शाहजी को कैद कर लिया. इस पर शिवाजी और उनके भाई ने कोंडना के किले को वापस कर दिया और अपने पिता को सुल्तान से मुक्त कराया. कहा जाता है कि रिहाई के बाद से उनके पिता की तबीयत खराब रहने लगी और खराब स्वास्थ्य के कारण उनकी मौत हो गई. पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी ने पुरंदर और जवेली की हवेली पर कब्जा कर लिया, शिवाजी के इन बढ़ते कदमों के कारण आस-पास के राजा-महाराजाओं में दशहत घर करने लगी.

शिवाजी ने चतुराई से अफजल को मार डाला

शिवाजी महाराज को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए अफजल खान ने अपनी विशाल सेना भेज दी, लेकिन बहुत बड़ी सेना होने के बावजूद शिवाजी को मारने की अफजल की कूटनीति फेल हो गई और शिवाजी ने बहुत चतुराई और समझदारी से अफजल खान को ही मौत के घाट उतार दिया. दरअसल, जैसे-जैसे शिवाजी की कामयाबी का परचम ऊंचाइयों पर लहराता गया, वैसे-वैसे उनके दुश्मनों की तादात भी बढ़ती गई. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: छत्रपति शिवाजी महाराज के ‘गुरिल्ला युद्ध’ से खौफ खाती थी मुगल सेना, जानें इस महान शासक से जुड़ी कुछ अनोखी बातें

गौरलतब है कि शिवाजी महाराज एक महान देशभक्त और वीर योद्धा थे, जो अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए भी तैयार थे. उन्होंने मराठा साम्राज्य के लिए अनेकों कार्य किए, इसलिए जानकार भी शिवाजी को महाराष्ट्र के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा योद्धा मानते हैं.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.