Shivaji Maharaj Jayanti 2019: मराठा गौरव और महान शासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने खेल-खेल में सीखा किले पर फतह करना
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती 2019 (Photo Credits: Facebook)

Shivaji Maharaj Jayanti 2019: भारत के एक महान योद्धा (Great Warrior) और दयालु शासक के तौर इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) को बहुत से लोग हिंदू हृदय सम्राट कहते हैं तो बहुत से लोग उन्हें मराठा गौरव बताते हैं. तिथि के अनुसार 23 मार्च, शनिवार को इस महान शासक (Great Ruler) की जयंती मनाई जा रही है. छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी सन 1630 को पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग में एक मराठा परिवार में हुआ था, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म सन 1627 में हुआ था. हिंदू पंचांग की तिथि के अनुसार, उनका जन्म चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था और तिथि के मुताबिक शिवाजी महाराज जयंती (Shivaji Maharaj Jayanti) 23 मार्च को है.

शिवाजी महाराज का पूरा नाम शिवाजी भोसले था. उनकी माता का नाम जीजाबाई (Jijabai) और पिता का नाम शहाजी भोसले (Shahaji Bhosle) था. छत्रपति शिवाजी महाराज को उनके अदम्य साहस, कूटनीति, बुद्धिमता, कुशल शासक और महान योद्धा के रूप में पूरा भारत जानता है. शिवाजी महाराज न सिर्फ एक दयालु शासक थे, बल्कि एक महान योद्धा (Great Warrior) भी थे.

धार्मिक संस्कारों के साथ हुआ पालन-पोषण

शिवाजी महाराज का बचपन उनकी माता जीजाबीई के मार्गदर्शन में बीता. उनकी माता एक वीरांगना होते हुए भी धार्मिक स्वभाव वाली नारी थीं. यही वजह है कि उन्होंने बालक शिवा को रामायण, महाभारत और अन्य भारतीय वीरात्माओं की कहानियां सुनाकर और उनकी शिक्षा देकर पालन-पोषण किया. जीजाबाई से मिले धार्मिक संस्कारों के साथ-साथ उन्होंने दादा कोणदेव के संरक्षण में सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में निपुणता हासिल की. बचपन में धर्म, संस्कृति और राजनीति की उचित शिक्षा पाकर शिवाजी राष्ट्रप्रेमी, कर्तव्यपरायण और कर्मठ योद्धा बने. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: एक महान योद्धा और दयालु शासक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये खास बातें

बचपन में किले जीतने का खेलते थे खेल

छत्रपति शिवाजी महाराज ने खेल-खेल में ही किले पर फतह करना सीख लिया था. दरअसल, बचपन में वे अपनी उम्र के बच्चों को इकट्ठा करके, उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे. बालक शिवा जैसे ही युवावस्था में आए उन्होंने किले जीतने के खेल को वास्तविकता में अपना कर्म बना लिया. वे शत्रुओं पर आक्रमण करके उनके किले जीतने लगे. जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर फतह हासिल की, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई. किले जीतने की यह खबर आगरा और दिल्ली तक आग की तरह फैल गई. आलम तो यह था कि तुर्क, यवन और उनके सहायक भी शिवाजी महाराज का नाम सुनकर डर के कारण चिंतित होने लगे थे.

व्यापक थी शिवाजी के राज्य की सीमा

शिवाजी महाराज जितने महान शासक थे, उनके राज्य की सीमा का विस्तार भी उतना ही व्यापक था. शिवाजी के राज्य की पूर्वी सीमा उत्तर के बागलना को छूती हुई, दक्षिण की ओर नासिक एवं पुणे जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सातारा और कोल्हापुर के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी. पश्चिम कर्नाटक के क्षेत्र के बाद उनके राज्य की सीमा में सम्मिलित हुए क्षेत्रों को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया गया था.

पुणे से लेकर सल्हर तक और कोंकण का क्षेत्र जिसमें उत्तरी कोंकण भी शामिल था. इस पूरे क्षेत्र को पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में रखा गया था.

उत्तरी किनारा से दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तो के अधीन था, जबकि दक्षिण में सातारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल के क्षेत्र दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे.

शिवाजी महाराज के पास थे 250 किले

बताया जाता है कि शिवाजी महाराज के पास करीब 250 किले थे, जिनके रख-रखाव और मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे. शिवाजी ने कई किलों पर अधिकार किया था जिसमें सिंहगढ़ का किला भी शामिल था. इस किले पर फतह करने के दौरान तानाजी को वीरगति मिली थी. इसके बाद बीजापुर के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अतंर्गत आने वाले रायगढ़, चाकन, सिंहगढ़ और पुरंदर के किले भी शीघ्र ही शिवाजी के पास आ गए. यह भी पढ़ें: Shivaji Maharaj Jayanti 2019: शिवाजी महाराज का सुशासन ‘अष्टप्रधान’ मंडल, तभी वे कहलाये ‘सदी का महानायक’!

शिवाजी महाराज मां तुलजा भवानी के उपासक थे. हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर मशहूर छत्रपति शिवाजी महाराज हिंदू होने के साथ-साथ दूसरे धर्मों का सम्मान भी करते थे. वे संस्कृत और हिंदू राजनीतिक परंपराओं का व्यापक तौर पर विस्तार चाहते थे, यही वजह है कि उनकी अदालत में पारसी की जगह मराठी भाषा का इस्तेमाल किया जाने लगा.

गौरतलब है कि अपने शासन काल में कई किलों पर खेल-खेल में फतह हासिल करने वाले शिवाजी महाराज ने लंबी बीमारी के चलते सन 1680 में दम तोड़ दिया, जिसके बाद उनके बेटे संभाजी महाराज ने साम्राज्य को संभाल लिया.