किसी भी देश या संगठन में सुशासन बिना अच्छी नीतियों के संभव नहीं है. छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक ऐसी ही नीति की नींव रखी, ताकि वह स्वराज के सपने को साकार कर सकें. राज्य की व्यवस्था के संचालन के लिए उन्होंने विभिन्न विभागों की रचना और उसके अनुरूप नियुक्ति की. जो ‘अष्टप्रधान’ नाम से खूब प्रचलित हुई. उन्होंने अपने सहयोगियों पर भरोसा करते हुए उनके कार्यों पर नियंत्रण रखने के साथ उनकी योग्यता का भरपूर उपयोग कियाI सुशासन के लिए बनी नीतिगत ‘अष्टप्रधान’ की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिवाजी महाराज के निधन के बाद भी यह व्यवस्था सुचारु चलती रही. शुरु-शुरु में यह टीम छोटी थीI लेकिन सन 1674 तक इसका पूर्ण विस्तार हुआ. मंत्रिमंडल के अंतर्गत पदों, उनके अधिकार एवं कर्तव्य की पारदर्शी रूपरेखा के साथ तैयार की गयी, जिसका वर्णन नीचे किया गया है.
प्रधानमंत्री
महाराजा के बाद प्रधानमंत्री (पेशवा) का पद ‘अष्टप्रधान’ का सर्वोपरि थाI यह मुगलकाल के वजीर-ए-आज़म के समकक्ष पद थाI राज्य की स्थापना के समय प्रथम प्रधानमंत्री थे शामराजपंत नीलकंठ रांजेकर थेI उनके बाद इस पद के लिये मोरोपंत पिंगले का चुनाव किया गया। जब शिवाजी महाराज ने राजकाज संभाला तब मोरोपंत ही प्रधानमंत्री थे.
अमात्य (वित्तमंत्री)
अमात्य संस्कृत शब्द है, इसका आशय है वित्त मंत्री. वित्त मंत्री की जिम्मेदारी थी करों के हिसाब की देख-रेख के लिए मुंशी, मुनीम व सहयोगी कर्मचारी आदि की नियुक्ति करना. ताकि टैक्स संग्रह एवं उसके आय-व्यय का सही लेखा-जोखा रखा जाये और संबंधित कागजों पर राज्य की मुहर लगाये, तथा वित्तीय स्वीकृति व अधिकार-पत्रों का अनुमोदन करे. शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय रामचंद्र नीलकंठ मजूमदार इस पद पर नियुक्त थे. 1677 के बाद शिवाजी ने रघुनाथपंत हणमंते की नियुक्ति इस पद पर कर दिया.
पंत सचिव (सुरनवीस)
‘पंत सचिव’ का कार्य महाराज द्वारा निर्देशित सभी पत्र व्यवहार, अधिकार-पत्र व स्वीकृति पत्रों पर मुहर लगाकर उसकी सही व्यवस्था करना. 1665 में शिवाजी ने नीलकंठ सोनदेव को पंत सचिव नियुक्त किया. बाद में इस पद पर अण्णाजी दत्तो की नियुक्ति कर दी गयी.
मंत्री (वाकनिस)
मंत्री का पूर्व नाम ‘वाकनिस’ हुआ करता थाI महाराज ने सत्ता संभालने के बाद इसे ‘मंत्री’ का नाम दे दिया. मंत्री का प्रमुख कार्य विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ एवं गुप्त सूचनाओं का सत्यापन करना, राज्य में होनेवाली प्रमुख घटनाओं व गतिविधियों पर नजर रखते हुए महाराज को उससे अवगत कराना. राज्य के प्रथम मंत्री गंगाजी पंत थे, लेकिन शिवाजी के सत्ता संभालने के बाद यह पद दत्ताजी त्र्यंबक को दे दिया गया.
सेनापति
संपूर्ण सेना की देखरेख करनेवाला मुख्य सेनापति कहलाता है. शुरु में सेनापति ‘सरनौबत’ नाम से लोकप्रिय था. इसके दो विभाग थे, एक पैदल सेना और दूसरी अश्व सेना. सेनापति का कार्य था कि दोनो सेना में भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, वेतन, शस्त्र व्यवस्था और रसद की आपूर्ति प्रशासनिक नियंत्रण रखना और इससे महाराज को अवगत कराते रहना. प्रारंभ में इस पद पर नूर खान बेग को नियुक्त किया था. महाराज के सत्तासीन होने के बाद हंबीरराव मोहिते को नियुक्त किया.
सुमंत
पहले यह पद ‘डबीर’ के नाम से लोकप्रिय था. सुमंत की मुख्य ज़िम्मेदारियों में दूसरे राज्यों से आनेवाले राजनीतिक प्रतिनिधियों से वार्तालाप करना, उनका स्वागत-सत्कार करना, विदेश से आनेवाले दूतों की व्यवस्था करना तथा जरूरत पड़ने पर दूसरे राज्यों दूत के रूप में जाकर शिवाजी महाराज के प्रतिनिधि के रूप में वार्तालाप करना इत्यादि थे. 1641 में सोनोपंत इस पद पर कार्यरत थे. शिवाजी के आने पर रामचंद्र त्र्यंबक को सुमंत बनाया गया.
पंडितराव
इस पद का निर्माण शिवाजी ने स्वयं किया था. धर्म आधारित राज्य व्यवस्था पर बल देने के कारण, धार्मिक विषयों में शास्त्रों के अनुसार राय देना, अच्छी पाठशालाओं को प्रोत्साहित करना, विभिन्न राजकीय कार्यक्रमों के आचार्यो को राज्याश्रय प्रदान करना इसके प्रमुख कार्य थे. राज्याभिषेक के रघुनाथ पंत पंडितराव थे. पंडितराव को युद्ध व सासामरिक मुहिम से विलग रखा था.
न्यायाधीश
यह पद न्याय व्यवस्था को प्रशासनिक रूप के लिए रखा गया था. यह पद जनता को तत्काल व सही न्याय दिलाने के लिए रखा गया था. सर्वप्रथम इस पद के लिए निराजी रावजी की नियुक्ति की गयी. इन्हें भी युद्ध की गतिविधियों से अलग रखा गया था. ताकि धर्म और न्याय व्यवस्था के प्रतिनिधि के तौर पर जनता को ज्यादा वक्त दे सकें.
‘अष्टप्रधान’ की रचना देखकर समझा जा सकता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज को “जाणता राजा” क्यों कहा गया|.इस नीति की वजह से उन्हें सदी का महानायक कहा जाता है.