Shradh 2019: हिंदू संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति हैं, जिसमें पर्वों, पूजा-विधानों, रस्म-रिवाजों एवं कला का विशेष महत्व है. हिन्दू धर्म के महात्म्य का विश्व भर में कोई सानी नहीं है. विदेशों में भी हिन्दू संस्कृति एवं परंपराओं को अलौकिक, अद्भुत और अतुलनीय माना जाता है. इसी का एक हिस्सा है पितृ पक्ष (Pitru Paksha), जब हम अपने मृत पीढ़ियों की शांति एवं सम्मान के लिए उनका श्राद्ध (Shradh), पिण्डदान (Pind Daan) और तर्पण (Tarpan) आदि क्रियाएं करते हैं. पित्तरों (Ancestors) के प्रति हमारी आस्था है कि हम उन्हें सम्मान देंगे, तो वे प्रसन्न होकर हमें और हमारी अगली पीढ़ियों को आशीर्वाद देंगे. उनके आशीर्वाद से ही हमारा हमारा विकास होगा और हम समृद्धिशाली जीवन जी सकेंगे. इसीलिए भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक के पूरे पखवारे में हम तिथि के अनुसार पितरों का श्राद्ध, पिण्डदान और तर्पण आदि करते हैं.
अन्न-जल ग्रहण करने और आशीर्वाद देने आते हैं पित्तर
हमारे सनातन धर्म में मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर उतरते हैं और अपने हिस्से का अन्न-जल ग्रहण करते हैं. श्राद्धकर्मों से जुड़े पुरोहितों का कहना है कि पितृ पक्ष पर सभी पितृगण अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रुप में ग्रहण करते हैं और हमें हमारे सुख, शांति और समृद्धिपूर्ण जीवन के लिए आशीर्वाद देते हैं. ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि हमारे पूर्वज जो सशरीर हमारे साथ नहीं हैं, उनके प्रति हमारा प्रेम और सम्मान बना रहे, उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे. लगभग सभी पुराणों में पितृ पक्ष की महिमा का वर्णन मिलता है. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha Dates 2019: कल से शुरू होगा पितृपक्ष! जानें श्राद्ध के नियम, किस तिथि पर करें श्राद्ध!
विष्णु पुराणः
विष्णु पुराण में उल्लेखित है कि श्रद्धा और निष्ठा के साथ श्राद्धकर्म (पिण्डदान एवं तर्पण) करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते, बल्कि स्वर्गलोक में स्थित ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त देह त्याग चुके प्राणी भी तृप्त होते हैं, इसलिए पितृ पक्ष के पखवारे में किसी भी जीव-जंतु की हत्या नहीं करनी चाहिए.
ब्रह्म पुराणः
ब्रह्म के अनुसार 'जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा के साथ शाक के द्वारा श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई दुःखी नहीं होता. ब्रह्म पुराण में वर्णित है कि 'श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किए गये श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े पितरों का भी पोषण होता है. जिस परिवार में बाल्यावस्था में ही किसी की मृत्यु हो गयी है तो वे सम्मार्जनी के जल से ही तृप्त हो जाते हैं.
गरुड़ पुराणः
श्राद्ध अथवा पितृपक्ष के संदर्भ में 18 पुराणों में गरुड़ पुराण सबसे अलग है. यही वजह है कि मृतक के घर में ब्रह्म भोज तक गरुण पुराण का नित्य पाठ का विधान बताया गया है. मान्यता है कि श्राद्ध कर्म से खुश होकर पितर मनुष्यों को दीर्घायु, पुत्र, यश, कीर्ति, बल, अच्छी सेहत, सुख, धन-धान्य, पशु धन, ऐश्वर्य से भरे जीवन का आशीर्वाद देते हैं.
मार्कण्डेय पुराणः
मार्कण्डेय पुराण में श्राद्ध के महत्व को लेकर उल्लेखित है कि पितृ पक्ष में पितृगण श्राद्ध कर्म से संतुष्ट होकर श्राद्धकर्ता को लंबी उम्र, धन, विद्या, राज सुख, स्वर्ग, मोक्ष का वरदान देते हैं
कुर्मपुराण:
जो प्राणी किसी भी विधि-विधान से एकाग्रचित और निष्ठापूर्वक अपने पितर का श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है, एवं मृत्योपरांत पुनः मानव चक्र में नहीं आता.’ यमस्मृति में भी उल्लेखित है कि ‘जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में वास करने वाले भगवान विष्णु की ही पूजा करते हैं.’ यह भी पढ़ें: Shradh 2019: क्या है पिण्डदान और तर्पण? लोग गया ही क्यों जाते हैं? जानें इसका महात्म्य एवं प्रक्रिया
पितरों को ये चीजें प्रिय मानी जाती हैं
गाय के दूध, दही, घी एवं शक्कर आदि से तैयार व्यंजन, शहद मिलाकर बनाया गया कोई भी पदार्थ तथा गाय का दूध, घी से बनी खीर को अक्षय माना जाता है, यही वजह है कि पितर इन व्यंजनों को बहुत पसंद करते हैं. इसके अलावा श्राद्ध में कुश, साठी चावल, जौ, गन्ना, मूंग, सफेद फूल इत्यादि के उपयोग से भी पितर प्रसन्न होते हैं. इसके विपरीत मसुर दाल, मटर, बेल-पत्र, कमल, धतूरा एवं भेड या बकरी का दूध का उपयोग श्राद्ध में नहीं करना चाहिए.
श्राद्ध के संदर्भ में पौराणिक कथाओं में स्पष्ठ रूप से उल्लेखित है कि श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों द्वारा भोजन करने के बाद जो आचमन किया जाता है और पैर धोया जाता है, उसी से हमारे पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं और अगर संपूर्ण परिवार के साथ विधि-विधान से किये गये श्राद्ध से तो कई गुणा ज्यादा फलों की प्राप्ति होती है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.