Kargil Vijay Diwas 2023: जब लाहौर-शांति उल्लंघन की भारी कीमत चुकानी पड़ी पाकिस्तान को! जानें कारगिल-कांड के 7 चौंकाने वाले
कारगिल विजय दिवस (File Photo)

साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सैनिकों की शहादत का सम्मान करने के लिए प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ मनाया जाता है. गौरतलब है कि आज से 24 वर्ष पूर्व भारतीय सेना द्वारा जम्मू कश्मीर के कारगिल सेक्टर में पाकिस्तान के खिलाफ ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत युद्ध लड़ा गया था, जो अब लद्दाख का हिस्सा है. आइये बात करते हैं कारगिल युद्ध के संदर्भ में 7 बेहद रोचक तथ्यों पर...यह भी पढ़ें: Kargil Vijay Diwas 2023: भारतीय सेना ने 24वां कारगिल विजय दिवस मनाने के लिए नई दिल्ली से द्रास तक सेना के तीनों अंगों की सर्व महिला मोटरसाइकिल रैली लॉन्च की

भारतीय सीमा में घुसपैठ

कारगिल युद्ध जम्मू-कश्मीर के कारगिल में नियंत्रण रेखा के पास हुआ था. पाकिस्तान ने सर्दियों का फायदा उठाते हुए कारगिल पर कब्जा के इरादे से आतंकियों के वेष में अपने सैनिकों को भेजा था. उनका मकसद था, लद्दाख एवं कश्मीर के बीच संबंधों को काटकर भारतीय सीमा पर तनाव पैदा करना था. कारगिल-युद्ध में पाकिस्तानी सेना ऊंचाई पर और भारतीय सेना नीचे थी, जो भारतीय सैनिकों के लिए एक बड़ी चुनौती थी. इसी कारण पाकिस्तानी सेना सीमा रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में घुस आई थी. कम लोग जानते होंगे कि 1947 में भारत विभाजन से पूर्व कारगिल लद्दाख के बाल्टिस्तान का हिस्सा था. प्रथम कश्मीर युद्ध (1947-1948) के बाद एलओसी द्वारा अलग कर दिया गया था?

मिशन ‘ऑपरेशन विजय’

3 मई 1999 को पाकिस्तान सरकार ने आतंकवादियों के रूप में 5 हजार सैनिकों को भारतीय सीमा के भीतर कारगिल के सबसे ऊंची चोटी पर घुसपैठ करवा दिया था. एक स्थानीय चरवाहे के जरिये यह खबर जब भारत सरकार को मिली, तो वे हैरान रह गये. इसके बाद भारतीय सेना के तीनों अंगों ने विश्वासघाती पाकिस्तानी सैनिकों को सबक सिखाने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ मिशन शुरू किया.

कारगिल कांडः पाकिस्तान की अर्थहीन कूटनीति

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि पाकिस्तान ने बड़े शातिराना ढंग से रचा था. बता दें कि साल 1998-1999 में सर्दियों में पाकिस्तानी सेना सियाचिन ग्लेशियर पर दावा करने के लक्ष्य के साथ क्षेत्र पर हावी होने के लिए कारगिल के पास गुप्त रूप से प्रशिक्षण के लिए सेना भेजना शुरू किया था. पाकिस्तान सरकार ने इन्हें पाकिस्तानी सेना नहीं बल्कि मुजाहिदीन बताया था. वस्तुतः पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान आकर्षित करना चाहता था, ताकि भारत सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र से अपनी सेना हटा ले, और उसे कश्मीर मुद्दे पर बातचीत के लिए विवश किया जा सके.

लाहौर समझौते की आड़ में षड़यंत्र

साल 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, और पूर्वी पाकिस्तान बांगला देश के रूप में स्वतंत्र देश बना. इसके बाद दोनों देशों के बीच कई युद्ध हुए. दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता उस समय चरम पर पहुंची, जब दोनों देशों में परमाणु परीक्षण किये गये. फरवरी 1999 में हालात को शांत करने के लिए दोनों देशों ने लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर भी किये. कारगिल कांड शांति समझौते की आड़ में पीठ पर वार करने की साजिश थी पाकिस्तान की.

‘ऑपरेशन विजय’ ने ‘ऑपरेशन बद्र’ की हवा निकाल दी

पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने अपने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सीमा के भीतर भेजना शुरू किया. इस घुसपैठ को नाम दिया गया ऑपरेशन बद्र. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और सियाचिन ग्लेशियर से भारतीय सेना को हटाना था, जबकि पाकिस्तान का मानना था कि इस क्षेत्र में किसी तरह का तनाव पैदा होने से कश्मीर मुद्दे को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी, जिससे त्वरित समाधान निकलेगा. लेकिन भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन विजय’ पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ कर ‘ऑपरेशन बद्र’ की हवा निकाल दी.

पाकिस्तान को मिला इस तरह मुंहतोड़ जवाब

पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ के साथ-साथ ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत भारतीय वायुसेना ने उस पर मिग-2 आई, मिग-23 एस, मिग-27 एस, जगुआर और मिराज-2000 विमानों से आकाशीय हमले करने शुरू किये, वहीं जमीनी हमले के लिए मिग-21 और ज़मीन पर लक्ष्य के लिए मिग-23 और 27 से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर हमले किये गये. इस दोहरे मार को पाकिस्तानी सेना झेल नहीं सकी.

और दहल उठा पाकिस्तान

पाकिस्तान को उसकी दुष्टता पर सबक सिखाने के लिए भारतीय सैनिकों ने इस युद्ध में भारी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया. लगभग 2 लाख 50 हजार गोले एवं बम तथा रॉकेट दागे गए. प्रतिदिन 300 तोपों, मोर्टारों और एमबीआरएल से लगभग 5,000 तोपखाने के गोले, मोर्टार बम और रॉकेट दागे गए, जबकि टाइगर हिल पर कब्जा करने वाले दिन 9 हजार गोले दागे गए. युद्ध विशेषज्ञ बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह एकमात्र युद्ध था, जिसमें दुश्मन सेना पर इतनी भारी संख्या में बमबारी की गई थी. अंततः भारत को निर्णायक जीत हासिल हुई.