![Hal Chath 2023: कब है हल छठ व्रत? जाने व्रत-पूजा के नियम! क्यों नहीं खाते इस दिन खेत में उगे खाद्यान्न? Hal Chath 2023: कब है हल छठ व्रत? जाने व्रत-पूजा के नियम! क्यों नहीं खाते इस दिन खेत में उगे खाद्यान्न?](https://hist1.latestly.com/wp-content/uploads/2023/09/80-3-380x214.jpg)
साल में तीन बार छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है. ललही छठ, चैत्री छठ और कार्तिक माह का महा छठ. सनातन धर्म के अनुसार ये तीनों छठ माताओं द्वारा अपनी संतान की कुशलता, तरक्की और दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत है. ललही छठ की यह पूजा भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम को समर्पित है. भाद्रपद माह में मनाया जाने वाला ललही छठ इस वर्ष 5 सितंबर 2023, मंगलवार को पड़ रहा है. आइये जानते हैं ललही छठ के महात्म्य, व्रत एवं पूजा के विशिष्ट नियम, मुहूर्त के बारे में विस्तार से.. यह भी पढ़ें: Raksha Panchami 2023: कब है रक्षा पंचमी? इस दिन भी बहनें भाई को बांध सकती हैं राखी! जानें इसका महत्व एवं पूजा-विधि!
हल छठ व्रत का महात्म्य!
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे बलराम. उनका मुख्य शस्त्र हल और मूसल बताया जाता है, इसलिए उनका एक नाम हलधर भी है. इसी कारण से इस पर्व को हल षष्ठी के नाम से पूजा जाता है. पहले से चली आ रही परंपराओं इस पर्व पर कृषि में उपयोग की जाने वाले उपकरणों की पूजा-अनुष्ठान का विधान है. अमूमन इस दिन महिलाएं अपनी संतानों की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं. निसंतान महिलाएं भी संतान की चाहत के लिए इस दिन व्रत एवं पूजा करती हैं. मान्यता है कि हल षष्ठी पर विधान से व्रत एवं पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और सभी कष्ट दूर होते हैं. चूंकि हल छठ पर हल की पूजा होती है, इसलिए इस दिन हल से जुते खेत का अन्न नहीं खाया जाता. हल षष्ठी 2023 मुहूर्त
भाद्रपद कृष्णपक्ष षष्ठी प्रारंभ: 04.41 PM (04 सितंबर 2023) से
भाद्रपद कृष्णपक्ष षष्ठी समाप्त: 03.46 PM (05 सितंबर 2023) तकपूजा मुहूर्त: 09.31 AM से 12.37 PM तक
(05 सितंबर 2023)
व्रत एवं पूजा के नियम!
भाद्रपद षष्ठी के इस व्रत में महिलाओं को प्रातः उठकर महुआ के दातुन से दांत साफ कर स्नान करना चाहिए. यह पूजा दिन में करना चाहिए. पूजा के लिए घर के बाहरी हिस्से अथवा बगीचे में गड्ढा खोदकर तालाब सरीखा बनाएं. इसे गाय के गोबर से लीप कर सुखा लें. तालाब में पलाश और झरबेरी की एक शाखा (हल का प्रतीक) गाड़ दें. अब तालाब के समीप सात किस्म के अनाज और रखें. भगवान गणेश, देवी पार्वती और देवी षठी की पूजा करने के पश्चात सात अनाजों की पूजा करें. पूजा के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें. इसके बाद रात्रि में चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण कर सकते हैं. इस दिन महुआ से बने विशेष रूप से खाए जाते हैं. इसके साथ ही गाय के दूध, इससे बने खाद्य पदार्थ, तथा खेत में जोत कर उगाये हुए किसी भी अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए. व्रती चाहें तो इस दिन तिन्नी का चावल और कर करमुआ के साग (ये तालाब में उगाए जाते हैं) का