Ganga Dussehra 2021: क्यों और कैसे हुईं पतित-पावनी गंगा पृथ्वी पर अवतरित? जानें एक रोचक कथा!
गंगा दशहरा 2021 (Photo Credits: ANI)

Ganga Dussehra 2021: सनातन धर्म में पतित-पावनी माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस को गंगा दशहरा के नाम से पुकारा जाता है. इस वर्ष गंगा दशहरा 20 जून रविवार को पड़ रहा है. हिंदू धर्म के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप एवं क्लेष मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Ganga Dussehra 2021 Date: गंगा दशहरा कब है? आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाएंगे इस दिन किए जाने वाले ये खास उपाय, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

हिंदू धर्म एवं भारतीय संस्कृति में गंगा को सबसे पवित्र एवं प्राचीन नदी माना जाता है. इन्हें पापनाशनी एवं मोक्षदायनी आदि नामों से भी जाना जाता है. मान्यता है कि प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि जिस मोक्ष की प्राप्ति हेतु वर्षों कड़ी तपस्या करते थे, गंगा में स्नान मात्र से उसी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार माँ गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल में वास करती हैं, श्रीहरि के पैरों से होकर निकलती हैं, तथा भगवान शिव की जटाओं से पृथ्वी पर अवतरित होती हैं. पृथ्वी पर अवतरण के दिन ही गंगा दशहरा मनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, आखिरकार माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर क्यों और कैसे अवतरित हुईं? इस संदर्भ में एक बहुत रोचक कथा है.

इंद्र ने क्यों चुराया अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा?

एक बार राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ करके अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ दिया. घोड़े के पीछे सागर के 60 हज़ार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चल पड़े. देवराज इंद्र के मन में संशय हुआ कि सागर अश्वमेध यज्ञ के बाद कहीं स्वर्ग पर अधिकार न कर ले. भयग्रस्त होकर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा चुराकर मुनि के आश्रम मे बांध दिया. उस समय मुनि ध्यान में लीन थे. उन्हें इस घटना का अहसास भी नहीं हुआ.

कपिल मुनि के क्रोध से जब राजा सागर के 60 हजार पुत्र जलकर भस्म हो गये

सगर-पुत्रों ने पृथ्वीलोक के चप्पे-चप्पे में घोड़े की तल़ाश की मगर वह अश्व नही मिला. लेकिन जब वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचे तो वहां पर उन्होने बंधा हुआ एक देखकर बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने कपिल मुनि को खूब अपशब्द सुनाए. बेवजह अपमानित होने से कपिल मुनि को क्रोध आ गया, उन्होंने सभी 60 हज़ार पुत्रों को अपनी क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया. तब सागर के पौत्र और राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने कपिल मुनि से छमा मांगते हुए अपने पूर्वजों के उद्धार का उपाय पूछा.

क्या थी भागीरथ प्रतिज्ञा?

कपिल मुनि ने बताया कि गंगा के जल से ही उनका उद्धार हो सकता है, और स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाना आसान कार्य नहीं है. भागीरथ ने प्रण किया कि अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए वे कुछ भी करेंगे. इसके बाद ही वह माँ गंगा को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या में लीन हो गये. गंगा ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा –पुत्र मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं. क्या वर मांगते हो? भागीरथ ने कहा -माँ गंगे आप सर्वज्ञानी हैं, मैं अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए आपकी तपस्या कर रहा हूं. आप पृथ्वी पर अवतरित होकर उनका उद्धार करें. गंगा ने कहा, -पुत्र मैं पृथ्वी पर आना चाहती हूं, लेकिन मेरे तेज प्रवाह से पृथ्वी का विनाश हो जायेगा. भगवान शिव ही मुझे अपनी जटाओं में धारण कर मेरे प्रवाह को संभाल सकते हैं. इसके लिए तुम्हें उन्हें प्रसन्न करना होगा. भगीरथ एक बार फिर भगवान शिव के लिए कड़ी तपस्या करने लगे. अंततः भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे वर मांगने को कहा. भगीरथ बोले, -प्रभु आप गंगा के प्रवाह को अपनी जटाओं में संभाल लें तो मां गंगा पृथ्वी पर आकर मेरे पूर्वजों का उद्धार कर देंगी. क्योंकि कपिल मुनि के शाप से वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाये हैं. भगवान शिव ने अपनी जटाएं खोल दीं. गंगा तेज प्रवाह के साथ शिवजी की जटाओं में समा गईं. तब भागीरथ की प्रार्थना पर शिव जी ने अपनी एक जटा निचोड़कर गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया. जटा से निकलने के बावजूद गंगा का प्रवाह इतना तेज था कि रास्ते में पड़नेवाली एक ऋषि की कुटिया को भी बहा ले गयीं. यह देख ऋषि गुस्से से लाल हो गये, उन्होंने अपने तपोबल से गंगा की धारा को वहीं रोक दिया. तब भगीरथ ने ऋषि को सारी बातें बताते हुए गंगा को आगे बढ़ने देने के लिए ऋषि से प्रार्थना किया. ऋषि ने कहा कि अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने की तुम्हारी कोशिश सराहनीय है. मैं गंगा को मुक्त करता हूं. जहां पर ऋषि की कुटिया थी, उस जगह को जाह्नवी के नाम से जाना जाने लगा. इसके बाद गंगा ने कपिल मुनि के आश्रम पहुंचकर भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया. वहां से होते हुए गंगा सीधा पश्चिम बंगाल में जाकर मिल गयीं, जिसे आज गंगा सागर के नाम से जाना जाता है. आज के दिन गंगा सागर में स्नान करनेवाले के जीवन में कभी कष्ट नहीँ आता और मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.