Diwali 2019: हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि जिन घरों अथवा परिवार में धनतेरस के दिन यमराज के नाम से दीपदान (Yam Deep Daan) किया जाता है, वहां किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती. घरों में साफ-सफाई और साज-सज्जा भी इसी दिन से शुरु हो जाती है, तथा दीपावली की खरीदारी भी धनतेरस (Dhanteras) से ही प्रारंभ होती है. आइये जानें इस दिन यम के नाम दीपदान क्यों किया जाता है और कब से इस परंपरा की शुरुआत हुई. यद्यपि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 25 अक्टूबर को यम दीपम मनाया जायेगा. सनातन धर्म में दीपावली को महापर्व माना जाता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के प्रत्येक दिन बल्कि प्रत्येक प्रहर का खास महत्व है. छोटी दीवाली से एक दिन पूर्व मनाए जाने वाले धनतेरस के दिन नये सामानों की खरीदारी बहुत शुभ मानी जाती है. इस वर्ष धनतेरस का पर्व 25 अक्टूबर यानी शुक्रवार को मनाया जायेगा. इस दिन को ‘धनत्रयोदशी’ अथवा ‘धन्वन्तरि के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि धनतेरस के ही दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरी के जन्म के रूप में भी मनाते हैं. इसीलिए इस दिन को कुछ वर्ष पूर्व ‘राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस’ के रूप में भी मनाने की शुरुआत हुई थी.
धनतेरस के दिन ही गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमाएं घर पर लाई जाती हैं, जिनकी पूजा मुख्य दीपावली के दिन की जाती है. धनतेरस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल में यही एकमात्र दिन होता है, जब हम यमराज की पूजा करते हैं. यह पूजा दिन नहीं बल्कि रात में की जाती है और पूजा के पश्चात यम के नाम एक दीप जलाकर घर के बाहर रखा जाता है. धनतेरस के दिन विशेष रूप से चांदी खरीदने की भी प्रथा है. इसके पीछे मुख्य तर्क यह है कि चांदी को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है जो वस्तुतः शीतलता प्रदान करता है.
दीपदान का महात्म्य:
धनतेरस का पर्व धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्व माना जाता है. जिन घरों में धनतेरस के दिन यम के नाम के दीप जलाये जाते हैं, उन घरों में कभी किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती. धनतेरस के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त पर पूजा स्थल को गोबर अथवा गेरू से लीप कर वहां रंगोली सजाएं. रोली से स्वास्तिक बनाएं. उस पर दीप रखकर माता लक्ष्मी का आह्वान करें. वहां पर छिद्रयुक्त कौड़ी डालें. दीपक के चारों ओर गंगाजल छिड़कें. दीपक पर रोली से तिलक लगाएं. उस पर अक्षत और मिष्ठान आदि चढ़ाएं. इसके पश्चात वहां कुछ दक्षिणा रखें. दीपक पर पुष्प चढ़ाएं. हाथ जोड़कर दीपक को प्रणाम करें और परिवार के प्रत्येक सदस्य को तिलक लगाएं. यम पूजन करने के बाद अन्त में धनवंतरी की पूजा करें.
इस दिन पुराने बर्तनों की जगह नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. इस दिन चांदी का बर्तन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि जगहों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए. इसके पश्चात आटे से बना दीपक जला कर घर के बाहर रखना चाहिए. इस दीप को यमदीप यानी यमराज का दीपक कहते हैं.
धनतेरस की रात घर की महिलाएं दीपक में तेल डालकर इसमें चार नई बत्तियां डालें. जो बत्ती जलाई गयी है, उसका मुंह दक्षिण दिशा की ओर रखें. इसके पश्चात जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य चढ़ाकर पूजा करनी चाहिए. चूंकि यह दीपक मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करें. साथ ही प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें. उनसे प्रार्थना करें कि आपके परिवार में किसी की अकाल मृत्यु न हो. अब यह दीपक घर के बाहर दूर कहीं रखकर आ जायें.
यम दीपम का समयः शाम 05.49 बजे से 07.06 बजे तक
प्रचलित कथा:
प्राचीनकाल में हेम नामक एक राजा थे. देव की कृपा से उन्हें एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योतिषियों ने शिशु की कुण्डली बनाई. कुण्डली से पता चला कि शिशु का विवाह जिस दिन होगा. उसके चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जायेगी. राजा जानकर बहुत दुःखी हुआ. उन्होंने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां किसी स्त्री की परछाईं भी न पड़े. संयोगवश एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी. दोनों ने एक दूसरे को देखते ही मोहित हो गये. उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया.
विवाह के चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेकर जाने लगे तो उसी वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय द्रवित हो उठा. राजकुमार का प्राण लेकर यमदूत यमराज के पास पहुंचा और उन्हें सारी कथा बताने के बाद उसने यम से प्रार्थना करते हुए पूछा, क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं है कि इंसान अकाल मृत्यु का ग्रास बनने से बच जाए? दूत का अनुरोध सुन यम बोले, -हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है. इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं. कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दक्षिण दिशा में दीप भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. इसीलिए लोग इस दिन दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं.