सदियों पुरानी परंपराओं के अनुसार सनातन धर्म में धनतेरस के दिन कुछ विशेष चीजें खरीदी जाती है और शुभ मुहूर्त में माँ लक्ष्मी के साथ धन के देवता कुबेर एवं ब्रह्माण्ड के प्रथम चिकित्सक भगवान धन्वंतरि की विधिवत पूजा की जाती है. इसी के साथ एक और परंपरा का निर्वाह हम सदियों से करते आ रहे हैं, और वह है सूर्यास्त के पश्चात मृत्यु के देवता यमराज को दीपदान करना. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार धनतेरस के दिन यमराज को दीप दान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. इस वर्ष धनतेरस का पर्व 23 अक्टूबर 2022 को मनाया जायेगा.
धनतेरस के दिन यम को दीपदान क्यों करते हैं?
स्कंद पुराण के अनुसार सृष्टि के संचालन में मृत्यु के देवता यमराज को नियत समय जीवों का प्राण लेने का कार्य सौंपा गया है. जिसने जन्म लिया, उसकी मृत्यु निश्चित है. अकाल मृत्यु को रोकने के लिए धन त्रयोदशी (यम द्वितीया) के दिन यमराज की पूजा का विधान है. पूजा के बाद सूर्यास्त होने पर गेहूं के आटे से बने दीप में तेल भरकर प्रज्वलित कर घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखा जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धनतेरस के दिन छोड़कर किसी और दिन दक्षिण दिशा किसी भी दीपक के लौ को नहीं रखना चाहिए. यह भी पढ़ें : Gujarati New Year 2022: कब हैं गुजराती नववर्ष? जानें इसका महत्व, तिथि एवं धार्मिक अनुष्ठान के नियम!
स्कंद पुराण में वर्णित है...
कार्तिकेय क्षेत्रयोदशियां निशामोचे। यमदीपं बहिरददयादपमृत्य विश्वविश्यति।।
अर्थात कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को शाम के समय यमराज के नाम से घर बाहर दीपक रखने से अकाल मृत्यु टल जाती है. यमराज ने अपने सेवकों को आदेश दिया है कि धन त्रयोदशी के दिन यमराज को दीपदान करने वालों की अकाल मृत्यु नहीं होती है.
यम को दीप-दान का आध्यात्मिक महत्व
दीर्घायु मिलती है, यम को दीपदान करने से: यम को दीपदान करने से व्यक्ति की आभा में दिव्य निखार आता है. इससे उसे दीर्घायु प्राप्त होने के साथ उसकी जीवन शक्ति बढ़ती है. यम का आशीर्वाद प्राप्त करना: धनत्रयोदशी के दिन ब्रह्मांड में यम तरंगों का प्रवाह सक्रिय होता है. इसलिए इस दिन यम देवता से जुड़े सभी कर्मकांडों का फल प्राप्त करने का अनुपात अन्य दिनों की तुलना में अधिक होता है. इस दिन यमदेव को दीप चढ़ा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है यमराज के प्रति आभार व्यक्त करनाः मान्यता है कि धनतेरस के दिन यमराज नरक पर शासन करते हैं. धनतेरस के दिन यम देव द्वारा प्रक्षेपित तरंगें नर्क के विभिन्न क्षेत्रों में पहुँचती हैं. इस वजह से नर्क में उपस्थित अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित तरंगें नियंत्रित रहती हैं. परिणामस्वरूप पृथ्वी पर नर्क की आवृत्तियों का अनुपात कम होता है. तो यमराज की पूजा आध्यात्मिक भावना से की जाती है. और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए दीप-दान किया जाता है.
कैसे शुरू हुई यमराज को दीपदान की परंपरा
एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा, हे दूत क्या प्राणियों का प्राण लेते समय तुम्हें किसी पर दया आई? दूतों ने संकोचवश कहा नहीं महाराज. यम के दुबारा पूछने पर एक दूत ने बताया, हां महाराज, एक बार हेम राजा की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया. ज्योतिषियों ने बताया कि विवाह के 4 दिन बाद इस बालक की अकाल मृत्यु होगी. राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में उसका पालन-पोषण किया. एक दिन महाराजा हंस की पुत्री की सुंदरता पर मोहित होकर उस कन्या से गंधर्व विवाह कर लिया. लेकिन विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो गई. पति को मृत्यु देखकर उसकी पत्नी विलाप करने लगी. दूत ने बताया कि उस नवविवाहिता का करुण-क्रंदन सुन मेरी आंखों से आंसू आ गये थे.
एक यमदूत ने पूछा, महाराज अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताएं, यमराज बोले- अकाल मृत्यु से बचने के लिए व्यक्ति को कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान करना चाहिए. जिस घर में यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. कहते हैं कि तभी से यमराज के पूजन के बाद दीपदान की परंपरा प्रचलित हुई.













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