
नाटो के सदस्य देशों में सैन्य खर्च को लेकर राय बंटी हुई है. मंगलवार को नीदरलैंड्स के हेग में शुरू हो रही नाटो की बैठक में डॉनल्ड ट्रंप भी हिस्सा ले रहे हैं.स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने जोर दे कर कहा है कि उनका देश नाटो के दूसरे सदस्य देशों की तरह रक्षा खर्च नहीं बढ़ाएगा. उन्होंने नाटो के मुखिया की एक चिट्ठी भी जारी की है जिसमें इसकी पुष्टि की गई है. रविवार को सांचेज ने कहा कि स्पेन को जीडीपी का पांच फीसदी रक्षा पर खर्च करने की जरूरत नहीं है जिसकी मांग अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कर रहे हैं.
यह मुद्दा दो दिनों के सम्मेलन में विवादों को हवा दे सकता है. कई राजनयिक स्पेन की इस बात से इनकार कर रहे हैं कि उसे यह छूट मिली है. हालांकि सांचेज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नाटो के चीफ मार्क रुते की चिट्ठी प्रकाशित कर अपने दावे की पुष्टि की है.
नाटो के सदस्य देशों के बीच हुए करार में जीडीपी का 5 फीसदी रक्षा जरूरतों पर अगले दशक में खर्च करने की सहमति बनी है. इनमें 3.5 फीसदी खर्च रक्षा जरूरतों और 1.5 फीसदी रक्षा से जुड़ी दूसरी जरूरतों मसलन बुनियादी ढांचे पर किया जाना है.
यह करार एक तरफ से ट्रंप की मांग पूरी करने की दिशा में तो दूसरी तरफ रूस को रोकने में मदद के लिए जरूरी समझा जा रहा है. सोमवार को नाटो के एक राजनयिक ने समराचार एजेंसी एएफपी से कहा कि स्पेन समेत किसी भी "सहयोगी के लिए इससे अलग रहना संभव नहीं है." उनका यह भी कहना है कि रुते के पत्र ने सिर्फ इस ओर ध्यान दिलाया है कि नाटो सदस्यों को यह तय करने का हक है कि वह अपनी वचनबद्धता कैसे पूरी करेंगे. कई यूरोपीय देशों में यह आशंका बढ़ रही है कि अमेरिका नाटो से मुंह मोड़ रहा है.
अब तक स्पेन नाटो के सदस्य देशों में रक्षा पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों में रहा है. स्पेन ने नाटो के मौजूदा लक्ष्य 2 फीसदी तक पहुंचने में भी इसी साल सफलता पाई है. इसके लिए उसने करीब 10 अरब यूरो खर्च किए हैं. यूरोप की सुरक्षा पर अमेरिका काफी पैसा खर्च करता रहा है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप चाहते हैं कि ये देश अपना रक्षा खर्च बढ़ाएं. इस बकीच अमेरिकी नेता यह भरोसा दे रहे हैं कि अमेरिका नाटो नहीं छोड़ेगा.
सैन्य खर्च पर लोगों की राय भी बंटी
सोमवार को यूरोपीयन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (ईसीईआर) की ओर से प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट में पता चला है कि कुछ देशों में रक्षा खर्च बढ़ाने को लेकर आम लोगों काफी उत्साहित हैं. सबसे ज्यादा 70 फीसदी लोग पोलैंड में रक्षा खर्च बढ़ाना चाहते हैं. इसके बाद ब्रिटेन है जहां 57 फीसदी तो एस्तोनिया में 56 और पुर्तगाल में 54 फीसदी लोग रक्षा खर्च बढ़ाने की हिमायत कर रहे हैं.
जर्मनी में 47 और स्पेन में 46 जबकि फ्रांस और इटली 45 लोग रक्षा खर्च बढ़ाने के पक्ष में है. सर्वे का सबसे दिलचस्प नतीजा इटली के बारे में है जहां 57 फीसदी लोगों ने या तो सख्ती से आ फिर नीतिगत रूप से रक्षा खर्च बढ़ाने का विरोध किया है. सर्वे में शामिल सिर्फ 17 फीसदी लोगों ने ही इसे बढ़ाने की बात कही.
सर्वे के लिए हरेक देश में 1,000 लोगों से मई के मध्य और आखिर में बात की गई थी. अनिवार्य सैनिक सेवा को दोबारा लागू करने को लेकर भी लोगों की राय बंटी हुई है. फ्रांस में 62 तो जर्मनी में 53 और पोलैंड में 51 प्रतिशत लोग इसके पक्ष में हैं. दूसरी तरफ स्पेन और ब्रिटेन में केवल 37 फीसदी लोग ही इसे लागू करने के समर्थक हैं.
नीदरलैड्स के लिए मेजबानी की चुनौती
नीदरलैंड्स जैसे छोटे से देश के लिए नाटो के सम्मेलन की मेजबानी आसान काम नहीं है, खासतौर से ऐसे वक्त में जब जंग के नए मोर्चे खुल रहे हों. यह सम्मेलन द हेग में होना है और पूरे इलाके और प्रमुख सड़कों को कई हफ्तों के लिए बंद कर दिया गया है. स्कूल और दुकानें भी बंद हैं और कई साइकिल लेन भी बंद कर दिए गए हैं. साइकिल वाले देश में यह आसान नहीं है.
सम्मेलन में आने वाले हजारों मेहमानों और पत्रकारों के लिए बने अस्थाई आवासों का रास्ता बनाने के लिए दर्जनों पेड़ भी उखाड़े गए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप समेत 32 देशों के नेताओं की मेजबानी नीदरलैंड्स के लिए सुरक्षा के लिहाज से पहला बड़ा मौका है. इस बीच ईरान पर अमेरिकी सेना के हमले के बाद विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.
नीदरलैंड्स ने 27,000 पुलिस अधिकारियों को तैनात किया है जो उसकी कुल क्षमता के करीब आधे हैं. सम्मेलन ऐसे वक्त में हो रहा है जब डच राजनीति में घमासान मचा हुआ है. धुर दक्षिणपंथी नेता गीयर्ट विल्डर्स ने आप्रवासन के मुद्दे पर विवाद के बाद सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. विल्डर्स और उनकी धुर दक्षिपंथी फ्रीडम पार्टी के समर्थन वापस लेने से सरकार गिर गई है और नए चुनाव की तारीख 29 अक्टूबर को है.
हालांकि इस बीच डच संसद ने रक्षा खर्च में बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है. ऐसे में इस सम्मेलन में नीदरलैड्स की भागीदारी को वैधता मिल गई है. हालांकि कामचलाऊ सरकार तो फिलहाल कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकती तो चुनाव के बाद नई सरकार ही यह तय करेगी की इसके लिए पैसा कहां से आएगा.
डच अखबार एडी के मुताबिक इस सम्मेलन का खर्च करीब 18.34 करोड़ यूरो आएगा यानी प्रति मिनट करीब 10 लाख यूरो. नाटो के महासचिव मार्क रुते ने बुधवार को नेताओं की बैठक को सिर्फ ढाई घंटे का ही रखा है, क्योंकि ट्रंप लंबी बैठकें बहुत पसंद नहीं करते.