हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की षष्ठी को छठ पूजा मनाई जाती है. चार दिनों तक चलने वाली यह पूजा मूलतः बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है, लेकिन आज दिल्ली और मुंबई समेत पूरे देश में इस पर्व के प्रति लोगों की आस्था देखी जा सकती है. संतान हित के लिए मनाये जाने वाले इस पर्व की विशेषता संयम और शुद्धता है, और यह एकमात्र ऐसा उत्सव है, जब उगते सूर्य के साथ डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है. इस वर्ष छठ पूजा 19 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं छठ पूजा के बारे में विस्तार से...
क्या है छठ पूजा?
सूर्यदेव एवं प्रकृति से जुड़ा छठ का पर्व एक धार्मिक अनुष्ठान है. चार दिवसीय इस पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है. श्रद्धालु गंगा-स्नान या घर में स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करते हैं, इस दिन पूर्णतः सात्विक भोजन करते हैं, दूसरे दिन खरना का दिन होता है. इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को पृथ्वी-पूजा करते हैं और संध्याकाल खीर खाकर व्रत तोड़ते हैं, यह प्रसाद सभी खाते है. तीसरे दिन निर्जला व्रत रखते हुए प्रसाद में ठेकुआ और पूड़ी आदि बनाई जाती है. इसके बाद डूबते सूर्य को नदी में उतरकर संध्या अर्घ्य दिया जाता है. नदी तट पर गन्ने का छत्र बनाकर उसके नीचे प्रसाद में ठेकुआ-पूरी, मूली, फल आदि के साथ मिट्टी का दीया जलाकर रखते हैं. महिलाएं छठ मैया का लोकगीत गाती हैं. इसे कोसी कहते हैं. चौथे दिन सूर्योदय से पूर्व परिजनों के साथ व्रती पुन नदी तट पर जाती हैं. जल में उतरकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. सूर्य एवं छठी मइया की पूजा के साथ छठ सम्पन्न होता है. व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं. ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है. यह भी पढ़ें : Ashneer Grover and Madhuri Jain Grover Stopped at Delhi Airport: अश्नीर ग्रोवर और उनकी पत्नी माधुरी को दिल्ली एयरपोर्ट पर पुलिस ने रोका, न्यूयॉर्क के लिए हो रहे थे रवाना
क्यों मनाया जाता है?
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को सर्वप्रथम माता सीता ने छठ पूजा की थी. इसके बाद से ही इस दिन छठी पूजा (चतुर्थी से सप्तमी तक) की परंपरा निभाई जा रही है. घर की महिलाएं पुत्र प्राप्ति एवं घर-परिवार की कुशलता के लिए यह कठोर व्रत रखती हैं. विशेष कार्य की सिद्धि के लिए बहुत से घरों में पुरुष भी नदी या सरोवर में खड़े रहकर सूर्य की उपासना करते हैं.
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
पुरातन कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए. श्रीकृष्ण ने उन्हें डूबते एवं उगते सूर्य की पूजा करने की सलाह दी. तब साम्ब ने सूर्य की उपासना की, इससे उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई. बताया जाता है कि साम्ब सूर्य उपासना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया. इन्हीं में एक उड़ीसा स्थित कोर्णाक मंदिर है, एक औरंगाबाद (बिहार) स्थित देवार्क मंदिर है. मान्यता अनुसार एक बार देव और दानव के बीच हुए युद्ध में देव हार गये. तब माता अदिति ने देवार्क मंदिर वाले स्थान पर छठी मइया की कठिन तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर छठी मइया ने उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति का वरदान दिया. कालांतर में माता अदिति के गर्भ से भगवान आदित्य का जन्म हुआ. तब आदित्य ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर असुरों को परास्त किया.
छठ का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व
सूर्य को जल देने के पीछे रंगों का विज्ञान छुपा है. व्यक्ति के शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी तमाम रोगों के उत्पन्न होने का जोखिम रहता है. प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य को अर्घ्य देते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से असंतुलित रंग संतुलित हो जाते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है. त्वचा की बीमारियां कम होती हैं. शरीर को सूर्य से प्रचुर मात्रा में विटामिन डी मिलती है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कार्तिक षष्ठी पर विशेष खगोलीय बदलाव होता है, जब सूर्य की पराबैंगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं. सूर्य की उषा और प्रत्यूषा के समय जल में खड़े होने से उपयुक्त दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है. इसके साथ ही छठ पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है, जो शरीर को कैल्शियम की कमी को पूरा करते हैं.