18 फरवरी 1911 में कुंभ पर शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा
प्रयागराज कुंभ (Photo Credit: PIB)

प्रयागराज (इलाहाबाद): कुंभ को विश्व का ‘सबसे बड़ा मेला’ होने का गौरव प्राप्त है। इसके अलावा इस मेले से जुड़ी बहुत सारी कथाएं प्रयागराज को अन्य शहरों से अलग रखती है। दुनिया का यह अकेला मेला है जहां रेत पर विश्व का सबसे बड़ा और भव्य शहर बसाया जाता है। मेले में अचानक भारी तादाद में नागा बाबाओं का आना और मेले बाद विलुप्त हो जाना आज भी सभी को हैरत में डालता है। अक्षयवट का रहस्य भी आज तक बरकरार है, और अब हम आपको प्रयागराज कुंभ से जुड़ी एक और उपलब्धि बतायेंगे, कि कैसे इस मेले में पहली बार मानव ने पक्षियों की तरह उड़ान भरी और उड़ान की उस परिकल्पना ने आज मानव को चंद्र और मंगल ग्रहों तक पहुंचा दिया। जी हां, दुनिया के पहले वायुयान ने कुंभ मेला क्षेत्र से ही उड़ान भरी थी। कैसे आइये जानते हैं...

वेद-पुराण और रामायण सहित तमाम धार्मिक ग्रंथों में आकाश में उड़ने वाले ‘पुष्पक विमान’ की कहानी हम सभी ने पढ़ी-सुनी होगी. उस समय तक किसी ने मानव की हवा में उड़ने की कल्पना भी नहीं की होगी. आखिर इंसान बिना पंखों के पक्षियों की तरह कैसे उड़ सकता है? लेकिन 108 साल पूर्व एक फ्रेंच पायलट मोनोसियर हेनरी पिकेट्ट इस अनहोनी को भी होनी में बदलने के लिए कृत संकल्प थे. अंततः तमाम शोधों के पश्चात 18 फरवरी 1911 को हेनरी ने उस कल्पना की उड़ान को साकार कर ही दिया. उन्होंने सांयकाल करीब 5.30 बजे अपने विमान हैवीलैंड एयरक्राफ्ट से यमुना नदी के शहरी छोर से यमुना पार नैनी के लिए उड़ान भरी. उस समय इलाहाबाद में कुंभ मेला पूरी शबाब पर था. चूंकि हेनरी ने यह उड़ान त्रिवेणी तट के करीब से भरी थी, लिहाजा उन्हें हवा में उड़ते देखने के लिए यमुना नदी के दोनों छोर पर लाखों आंखें कौतूहल से आकाश की ओर टकटकी लगाये हुए थीं. करीब 15 किमी का हवाई सफर 13 में मिनट में पूरी कर हेनरी नैनी जंक्शन के नैनी सेंट्रल जेल के समीप नैनी जंक्शन के पास उतरे थे. विमान में उनके साथ करीब 650 पत्रों के बंडल थे. हेनरी ने दुनिया के पहले वायुयान के सफर का रिकॉर्ड तो अपने नाम दर्ज किया ही साथ ही आकाश में उड़ते हुए दुनिया के सबसे बड़े मेले प्रयाग कुंभ के दर्शन का भी गौरव स्थापित किया.

बताया जाता है कि ब्रिटिश कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा था, जो संयोग से तब इलाहाबाद आया जब यहां पर कुंभ का भव्य मेला चल रहा था. उस समय तक जहाज जैसी अजीबोगरीब चीज के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. लाखों करोड़ों लोगों ने अपनी आंखों के सामने एक व्यक्ति को वायुयान पर बैठकर यमुना नदी को पार करते देखा तो उन्हें अपनी आंखों पर ही विश्वास नहीं हो रहा था. हालांकि इस संदर्भ में यह भी कहा जा रहा है कि चूंकि कुंभ के मेले में करोंड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, लिहाजा इस बात को ध्यान में रखकर ही विमान कंपनी ने कुंभ मेला स्थल इलाहाबाद को चुना ताकि उन्हें अच्छा प्रचार-प्रसार प्राप्त हो. उनकी उम्मीदों के अनुरूप ही प्रमाण भी मिले. बताया जाता है कि इस खबर को दुनिया के हर अखबारों ने सुर्खियों के साथ छापा था.

पहली हवाई सेवा से डाक भेजने की खबरें आम होते ही सभी अपनी चिट्ठियां भेजने के लिए परेशान थे. डाकसेवा की विशेष फीस छह आना रखी गयी थी. तब सोलह आने का एक रुपया होता था. पत्र भेजने वालों की भीड़ जब बढ़ती गयी, तो डाक विभाग ने तीन-चार अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति की. देखते ही देखते भेजे जानेवाले पत्रों की संख्या हजारों में पहुंच गयी. कहते हैं एक पत्र पर तो 25 रूपये तक का टिकट लगाया गया था. पत्र भेजने वालों में इलाहाबाद के कई नामचीन हस्तियां, प्रिंस, व राजे-महाराजे भी शामिल थे. सुरक्षा के दृष्टिकोण से केवल 6,500 पत्र ले जाने की अनुमति थी. इस पहली हवाई डाक सेवा से जो भी आय हुई, वह ऑक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल इलाहाबाद को दे दी गयी.