90 के दशक का वह दौर... साल 1999 भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी (Atal Bihari Bajpayee) पाकिस्तान (Pakistan) की सारी गल्तियों को माफ करते हुए अमन और भाईचारे की सद्भावना की बस लेकर लाहौर रवाना हुए. लेकिन चालबाज पाकिस्तान के शैतान दिमाग में भारत के खिलाफ एक बड़ा षड़यंत्र चल रहा था. मित्रता की आड़ में वह चोरी-छिपे कारगिल (Kargil) में अपनी सेना जमा रहा था. LOC के पास कारगिल सेक्टर (Kargil Sector) में पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी, लेकिन भारतीय सैनिकों (Indian Soldiers) की एक टुकड़ी ने सारा नजारा देख लिया.. उसके बाद भारतीय सेना (Indian Army) के तीनों अंगों ने बड़े शौर्य और साहस से पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया. आइये जानें पाकिस्तानी सेना ने कारगिल को ही क्यों लक्ष्य बनाया. Kargil Vijay Diwas 2021: कारगिल विजय दिवस के कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और CDS जनरल बिपिन रावत होंगे शामिल
कारगिल ही निशाने पर क्यों?
कारगिल की आबादी लगभग शून्य के बराबर रहती है, क्योंकि यहां 6 माह तक पूरा इलाका बर्फ से ढका रहता है. इसलिए छह माह ही आवागमन संभव होता है. अलबत्ता सामरिक दृष्टि से यह पूरा क्षेत्र भारत के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि श्रीनगर से लेहमार्ग से जोड़नेवाला श्रीनगर लेह राजमार्ग 1-A वहां से गुजरता है. अगर कोई दुश्मन देश इस पर कब्जा कर ले तो राजमार्ग 1-A का संबंध लेह से कट सकता है. कारगिल ऐसे स्थान पर स्थिति है, जो 4 घाटियों का प्रवेश द्वार है. इसलिए पाकिस्तानी सेना लद्दाख में प्रवेश करने के लिए सर्वप्रथम कारगिल को अपना निशाना बनाती है.
यह था पाकिस्तान का षड़यंत्र !
साल 1999 से पहले 1948, 1965 और 1971 में भी पाकिस्तानी सेना यहां कब्जा करने की कोशिश की, मगर भारतीय सेना के आगे टिक नहीं सके, और उल्टे पैरों लाहौर भागना पड़ा. सामरिक नजरिये से कश्मीर घाटी, लद्दाख और सियाचिन पर हमारी सैन्य स्थिति और सुरक्षा के लिहाज से बहुत संवेदनशील क्षेत्र है.
साल 1999 में पाकिस्तान ने एक सुनिश्चित योजना के तहत घुसपैठ करने की कोशिश की. पाकिस्तान चाहता था कि लेह को श्रीनगर से जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा कर इसे बंद कर दिया जाये, ताकि सर्दियों में लद्दाख में जरूरी सामान की आपूर्ति रोक कर द्रास और कारगिल पर कब्जा कर नियंत्रण रेखा खुलवाई जा सके. इसके साथ-साथ वह चुक घाटी, बाल्टिन और तुतुर्क क्षेत्र की पहाड़ियों पर कब्जा कर भारत को सियाचिन से पीछे हटने को मजबूर करने के दिवा स्वप्न देख रहा था. वह शिमला समझौते को खत्म कर कश्मीर को फिर से अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहता था.
क्या मुशर्रफ ने शरीफ की जानकारी के बिना यह षड़यंत्र रचा था?
पाकिस्तानी सेना ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर जम्मू-कश्मीर पर कब्जा जमाने के अपने इस अभियान को ‘ऑपरेशन बद्र’ नाम दिया. हालांकि पाकिस्तान ने अपनी इस घुसपैठ की योजना को अक्टूबर 1998 में ही बना ली थी, और इसी के तहत 1998 में तत्कालीन पाक सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान के कब्जे वाले उत्तरी इलाकों का दौरा किया. इस योजना के तहत पाक घुसपैठ इलाकों का दौरा किया. इस योजना के तहत पाक समर्थित घुसपैठिये और पाक सेना अप्रैल एवं मई 1999 के पहले सप्ताह तक कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो चुके थे. कहा जाता है कि इस युद्ध की योजना पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ ने बनाई थी, वह भी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को विश्वास में लिये बिना, लेकिन युद्ध के अंतिम दौर में परवेज मुशर्रफ ने जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ जहर उगला, उसे देखते हुए कह सकते हैं कि यह मुशर्रफ और परवेज की मिली भगत थी.
ऑपरेशन ‘फ्लश आउट’ से भारत ने पाक सेना को खदेड़ने की शुरुआत की
सबसे पहले भारतीय सेना के गश्ती टुकड़ी की नजर पाकिस्तानी सेना पर पड़ी. भारतीय सेना ने घुसपैठियों को खदड़ने के लिए एक गश्ती दल भेजा. लेकिन उसे काफी क्षति उठानी पड़ी. घुसपैठियों ने पाकिस्तानी सेना के सहयोग से 9 मई 1999 को भारतीय सेना के आयुध भंडार को नष्ट कर दिया, औरभारतीय चौकियों पर गोलीबारी शुरु कर दी. घुसपैठियों की संख्या और फैलाव को देखते हुए भारतीय सेना ने 14 मई 1999 ऑपरेशन फ्लश आउट शुरु किया. हालात की गंभीरता को देखते हुए भारतीय वायुसेना भी इस अभियान में शामिल हुई. उधर भारतीय नेवी ने भी पाकिस्तान के खिलाफ अपना युद्धपोत अरब सागर में तैनात कर दिया. जिसके चलते पाकिस्तानी नेवी और कराची में पाकिस्तानी जहाज निष्क्रिय हो गये.
भारतीय सेना का ऑपरेशन ‘विजय’, ‘सफेद सागर’, और ‘तलवार’ के साथ चौतरफा हमला
अब तक भारतीय सेना लय में आ चुकी थी. उसकी थलसेना का ‘ऑपरेशन विजय’, जलसेना ने ‘सफेद सागर’ और वायुसेना ने ‘ऑपरेशन तलवार’ नाम से पाकिस्तानी सेना पर चौतरफा हमला कर दिया. पाकिस्तानी सेना के पास भागने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था. यह युद्ध दो माह तक चला. जुलाई के अंतिम सप्ताह में खत्म हुआ. भारत ने पाकिस्तानी प्रशासन को कड़ा संदेश दे दिया कि जब तक पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के नियंत्रण रेखा से अपनी सेना पूरी तरह वापस नहीं बुलाता, उससे कोई बात नहीं होती.
अमेरिका ने जब लताड़ा पाकिस्तान को
पाकिस्तान की गलत नीति के लिए अमेरिका एवं दूसरे देशों ने भी लताड़ा. अमेरिका ने पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत दे दिया कि अगर वह युद्ध ही चाहता है और अपनी सेना पीछे नहीं हटाता है तो अमेरिका भारत को समर्थन देगा. नवाज शरीफ ने इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी. भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 5 जुलाई को टाइगर हिल्स के पश्चिम प्वाइंट 4875 पर कब्जा कर लिया. इसके बाद भारतीय सेना ने द्रास और बाल्टिक क्षेत्र को भी अपने कब्जा जमा लिया. 10 जुलाई 1999 से पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा से पीछे हटने लगी.
अटल बिहारी बाजपेयी ने इस जीत को विजय-दिवस नाम दिया
14 जुलाई को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा की. 26 जुलाई 1999 में सभी पाकिस्तान सैनिकों एवं घुसपैठियों को भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ दिया. और प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने इस दिन को विजय दिवस के तौर पर सेलीब्रेट करने का आह्वान किया. ऑपरेशन विजय के दौरान थल सेना के 519 जवान और वायुसेना के 5 सैनिक शहीद हुए. जबकि 1365 सैनिक घायल हुए और एक सैनिक लापता हुआ. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने साबित कर दिया कि हमारे सैनिक देश की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाने का जज्बा रखते हैं, और भारत की ओर उठने वाली हर बुरी नजर का मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं.