बिहार में बाढ़ (Photo Credits: Twitter/ANI)
बिहार (Bihar) की राजधानी पटना उन प्राचीन शहरों में से एक है, जो आज भी आबाद है. भले ही आज इस शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद हो रही है, परंतु हकीकत यह है कि बारिश के पानी से आज इस शहर का आधा हिस्सा जलमग्न है. हजारों लोग एक तरह से 'जलकैद' अपने घरों से निकल नहीं पा रहे हैं.
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की आहट सुनकर सत्ताधारी दल जद (यू) ने अपने कार्यालय के सामने कुछ दिन पहले एक बैनर 'क्यों करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार' लगा दिया था, परंतु पटना के पानी-पानी होने के बाद सरकार भी पानी-पानी है. लोगों का मुख्य निशाना सरकार बन रही है. पटना के कई इलाकों की सड़कें पिछले पांच दिनों से जलमग्न हैं.
यह भी पढ़ें : पटना के जलजमाव वाले इलाके में लगातार चौथे दिन मदद के लिए पहुंचे पूर्व सांसद पप्पू यादव
यहां तक कि सरकार में जनता की नुमाइंदगी करने वाले दल के नेता भी व्यवस्था की तैयारी पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. पटना नगर निगम के एक पूर्व कार्यपालक अभियंता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया है कि अगर कोई व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है, तो बिल्कुल सही है.
अभियंता ने कहा, "पटना शहर में 31 बड़े नाले हैं. इन सभी बड़े नालों और नालियों में 50 प्रतिशत से अधिक की या तो सफाई नहीं की गई और यदि सफाई की भी गई तो मानदंड के अनुसार नहीं की गई. नाला और नालियों की सफाई के नाम पर महज खानापूर्ति कर काम छोड़ दिया गया. इसके अलावा भी कई आवश्यक तैयारियां नहीं की गईं."
एक अन्य अधिकारी का कहना है कि शहर के सबसे पुराने इलाके राजेंद्र नगर, कदमकुआं में पानी निकालने के लिए बनाए गए पंपहाउस ही जलजमाव में डूब गए. राजेंद्रनगर के बुजुर्ग और समाजसेवी कन्हैया दयाल कहते हैं कि राजेंद्रनगर इलाके में जलनिकासी सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम बनी हुई थी, परंतु बाद के वर्षो में इलाके की सड़कें ऊंची होती गईं और इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वह कहते हैं कि 1975 में आई बाढ़ में भी लंगरटोली, मछुआटोली में पानी नहीं चढ़ा था.
वैसे कुछ लोग पटना की बनावट को भी इसका जिम्मेदार मानते हैं. जल प्रबंधन से जुड़े किशोर जायसवाल कहते हैं, "पटना की बनावट कटोरे की तर्ज पर है. चार दिनों में 350 मिलीमीटर तक की बारिश हुई, जिस कारण पटना के निचले क्षेत्रों में पानी जमा हो गया, जिसे निकालने की व्यवस्था तक नहीं की गई." उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि नगर विकास की योजना सही ढंग से नहीं बनाई गई है.
वह कहते हैं कि अति प्राचीन काल से आज तक आबाद इस शहर के किनारे गंगा नदी के अलावा सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों का संगम बिंदु है, परंतु आज तक बाढ़ का पानी उन इलाकों तक नहीं पहुंचा था, जहां आज बारिश का पानी जमा है. उल्लेखनीय है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी बारिश के जमा पानी के कारण अपने निजी घर में तीन दिनों तक कैद रहे, और उसके बाद जिला प्रशासन और एनडीआरएफ की टीम ने उन्हें रेसक्यू कर बाहर निकाला.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी व्यवस्था की कुव्यवस्था बताते हैं. उन्होंने भी स्पष्ट कहा कि अगर तैयारी की जाती तो पटना की स्थिति ऐसी नहीं होती. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी कहते हैं कि 24 घंटे होने के बाद भी जलजमाव क्षेत्र से पानी नहीं निकलना बताता है कि प्रशासनिक लापरवाही जरूर हुई है.
गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े भगवान पाठक कहते हैं, "गंगा नदी में उफान के कारण कई जगहों पर ड्रेनेज सिस्टम के मुहाने ब्लॉक हो गए. जाहिर है अगर ये कदम उठाए जाने थे तो पहले उन इलाकों के लोगों को निकालने के लिए बेहतर इंतजाम किए जा सकते थे, जहां पर इस ब्लॉकेज का अधिक असर पड़ने वाला था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर फरक्का बांध के बैराज खोले गए तो ड्रैनेज के मुहा�� आज इस शहर का आधा हिस्सा जलमग्न है. हजारों लोग एक तरह से 'जलकैद' अपने घरों से निकल नहीं पा रहे हैं. वह कहते हैं कि फरक्का बांध से गंगा में गाद जमा है, जिससे गंगा ऊपर आ गई है.
राजनीति
IANS|
Oct 03, 2019 10:02 AM IST
बिहार में बाढ़ (Photo Credits: Twitter/ANI)
बिहार (Bihar) की राजधानी पटना उन प्राचीन शहरों में से एक है, जो आज भी आबाद है. भले ही आज इस शहर को स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद हो रही है, परंतु हकीकत यह है कि बारिश के पानी से आज इस शहर का आधा हिस्सा जलमग्न है. हजारों लोग एक तरह से 'जलकैद' अपने घरों से निकल नहीं पा रहे हैं.
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की आहट सुनकर सत्ताधारी दल जद (यू) ने अपने कार्यालय के सामने कुछ दिन पहले एक बैनर 'क्यों करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार' लगा दिया था, परंतु पटना के पानी-पानी होने के बाद सरकार भी पानी-पानी है. लोगों का मुख्य निशाना सरकार बन रही है. पटना के कई इलाकों की सड़कें पिछले पांच दिनों से जलमग्न हैं.
यह भी पढ़ें : पटना के जलजमाव वाले इलाके में लगातार चौथे दिन मदद के लिए पहुंचे पूर्व सांसद पप्पू यादव
यहां तक कि सरकार में जनता की नुमाइंदगी करने वाले दल के नेता भी व्यवस्था की तैयारी पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. पटना नगर निगम के एक पूर्व कार्यपालक अभियंता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया है कि अगर कोई व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है, तो बिल्कुल सही है.
अभियंता ने कहा, "पटना शहर में 31 बड़े नाले हैं. इन सभी बड़े नालों और नालियों में 50 प्रतिशत से अधिक की या तो सफाई नहीं की गई और यदि सफाई की भी गई तो मानदंड के अनुसार नहीं की गई. नाला और नालियों की सफाई के नाम पर महज खानापूर्ति कर काम छोड़ दिया गया. इसके अलावा भी कई आवश्यक तैयारियां नहीं की गईं."
एक अन्य अधिकारी का कहना है कि शहर के सबसे पुराने इलाके राजेंद्र नगर, कदमकुआं में पानी निकालने के लिए बनाए गए पंपहाउस ही जलजमाव में डूब गए. राजेंद्रनगर के बुजुर्ग और समाजसेवी कन्हैया दयाल कहते हैं कि राजेंद्रनगर इलाके में जलनिकासी सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम बनी हुई थी, परंतु बाद के वर्षो में इलाके की सड़कें ऊंची होती गईं और इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वह कहते हैं कि 1975 में आई बाढ़ में भी लंगरटोली, मछुआटोली में पानी नहीं चढ़ा था.
वैसे कुछ लोग पटना की बनावट को भी इसका जिम्मेदार मानते हैं. जल प्रबंधन से जुड़े किशोर जायसवाल कहते हैं, "पटना की बनावट कटोरे की तर्ज पर है. चार दिनों में 350 मिलीमीटर तक की बारिश हुई, जिस कारण पटना के निचले क्षेत्रों में पानी जमा हो गया, जिसे निकालने की व्यवस्था तक नहीं की गई." उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि नगर विकास की योजना सही ढंग से नहीं बनाई गई है.
वह कहते हैं कि अति प्राचीन काल से आज तक आबाद इस शहर के किनारे गंगा नदी के अलावा सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों का संगम बिंदु है, परंतु आज तक बाढ़ का पानी उन इलाकों तक नहीं पहुंचा था, जहां आज बारिश का पानी जमा है. उल्लेखनीय है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी बारिश के जमा पानी के कारण अपने निजी घर में तीन दिनों तक कैद रहे, और उसके बाद जिला प्रशासन और एनडीआरएफ की टीम ने उन्हें रेसक्यू कर बाहर निकाला.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी व्यवस्था की कुव्यवस्था बताते हैं. उन्होंने भी स्पष्ट कहा कि अगर तैयारी की जाती तो पटना की स्थिति ऐसी नहीं होती. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी कहते हैं कि 24 घंटे होने के बाद भी जलजमाव क्षेत्र से पानी नहीं निकलना बताता है कि प्रशासनिक लापरवाही जरूर हुई है.
गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े भगवान पाठक कहते हैं, "गंगा नदी में उफान के कारण कई जगहों पर ड्रेनेज सिस्टम के मुहाने ब्लॉक हो गए. जाहिर है अगर ये कदम उठाए जाने थे तो पहले उन इलाकों के लोगों को निकालने के लिए बेहतर इंतजाम किए जा सकते थे, जहां पर इस ब्लॉकेज का अधिक असर पड़ने वाला था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर फरक्का बांध के बैराज खोले गए तो ड्रैनेज के मुहाने खोल दिए गए, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी." वह कहते हैं कि फरक्का बांध से गंगा में गाद जमा है, जिससे गंगा ऊपर आ गई है.