नई दिल्ली: इतिहास (History) में आज का दिन हर भारतीय (Indian) के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. रंग, रूप वेष, भूषा से चाहे हम कितने भी अनेक हो, लेकिन तिरंगे के नीचे जब खड़े होते हैं तो हम एक हैं, भारतीय हैं. आज उसी भारत के गौरव, तिरंगे का अंगीकरण दिवस (Tricolor Adoption Day) है. 22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान सभा (Constituent Assembly of India) की बैठक में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) के रूप में अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता (Independence) के कुछ ही दिन पहले हुई थी. Republic Day 2021 Flag Hoisting Rules: भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार जानें क्या है गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने के नियम?
राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
राष्ट्रीय ध्वज शुरुआत में कई परिवर्तनों से हो कर गुजरा. स्वतंत्रता के राष्ट्रीय संग्राम के दौरान कई अलग-अलग ध्वजों का प्रयोग किया गया. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौर से गुजरा. प्रथम राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता ( कोलकाताव ) में फहराया गया था. इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था. पीली पट्टी पर कमल बना हुआ था.
दूसरे ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में). यह भी पहले ध्वज के समान था, लेकिन इसके सबसे ऊपरी की पट्टी पर सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं. यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था.
तीसरा ध्वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया. डॉ एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया.
कांग्रेस के सत्र बेजवाड़ा (वर्तमान विजयवाड़ा) में किया गया, जहां आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वेंकैया ने एक झंडा बनाया. यह दो रंगों लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है. गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए.
1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष रहा. तिरंगे ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया. यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में चलते हुए चरखे के साथ था. यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था और इसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी थी. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्त भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया. स्स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा. केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया.
वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है. बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है. निचली हरी पट्टी हरियाली, उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है.
ध्वज संहिता
2002 से पहले, भारत की आम जनता के लोग केवल गिने चुने राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़ सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज फहरा नहीं सकते थे. लेकिन एक याचिका पर 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई.
भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें. सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है. संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है. संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है. संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है.