कन्नड़ समूहों ने बोम्मई सरकार को तमिलनाडु का अनशरण करने व हिंदी थोपने से रोकने को कहा
सीएम बसवराज बोम्मई (Photo Credits: Facebook)

बेंगलुरू, 23 अक्टूबर : केंद्रीय मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा संसदीय समिति ने जब से अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी है, तब से कर्नाटक में हिंदी थोपने पर बहस छिड़ी हुई है. कन्नड़ समूह और राजनीतिक दल हिंदी इस पर चिंता जता रहे हैं. समिति ने जब से राष्ट्रपति को अपनी सिफारिशें सौंपी हैं तब से राज्य में हिंदी थोपने की आशंका से बहस हो रही है. विभिन्न समूहों ने कर्नाटक सरकार को सुझाव दिया है कि वह तमिलनाडु की तरह राज्य विधानसभा में हिंदी भाषा को लागू करने के खिलाफ प्रस्ताव पारित करे. कर्नाटक रक्षणा वेदिके की महासचिव सन्नीरप्पा ने आईएएनएस को बताया कि शुरुआत में केंद्र सरकार ने भूमि की भाषा बात की है और बाद में अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी भाषा लागू की जाएगी.

उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए. रेलवे, बैंकिंग और डाकघर के साथ यही हुआ है. इसी तरह यहां भी थोपेंगे. इसलिए हमारी सरकार को भी तमिलनाडु सरकार की तरह हिंदी के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए. सन्नीरप्पा ने कहा कि वर्तमान सरकार को अन्य मुद्दों की तरह विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक प्रस्ताव लाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि धीरे-धीरे यह कहने की कोशिश की जाएगी कि चूंकि केंद्र सरकार फंड मुहैया कराती है, इसलिए उसके आदेश का पालन करना होगा. इसे कानूनी ढांचे के तहत भी लाया जाएगा. सन्नीरप्पा ने कहा कि नजदीक आ रहे संसदीय चुनाव के कारण फिलहाल केंद्र सरकार हिंदी थोपने का साहस नहीं करेगी उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी फिर से सत्ता में आती है, तो उनके पास एक लाइन का एजेंडा है, एक राष्ट्र, एक भाषा और एक धर्म. यह भी पढ़ें : चक्रवात में बदल सकता है बंगाल की खाड़ी पर बना गहरे दबाव का क्षेत्र, बंगाल में भारी बारिश का अनुमान

सन्नीरप्पा ने कहा कि भाजपा का इरादा क्षेत्रीय दलों को खत्म करना है और वे अंजाम दे रहे हैं. हिंदी थोपने का कड़ा विरोध होगा. जद (एस) जैसे राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को उठाया है और विपक्षी नेता सिद्दारमैया भी इस बारे में बहुत मुखर हैं, इसलिए इसे थोपना इतना आसान नहीं होगा. कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा को कन्नड़ भाषा का समर्थन करने के लिए मजबूर किया जाएगा. कन्नड़ भाषा की दिशा में काम करने वाले पेशेवरों के एक समूह बनवासी बलगा के अरुण जवागल ने कहा कि हिंदी भाषी राज्यों में भारतीय प्रबंधन संस्थान (एम्स) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा. लेकिन केंद्र सरकार ने यह नहीं कहा है कि यह गैर-हिंदी राज्यों में भी लागू होगा. उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में यदि केवल हिंदी में शिक्षा देने का प्रयास किया जाता है और क्षेत्रीय भाषाओं को नजरअंदाज किया जाता है, तो संकट खड़ा हो जाएगा.

अरुण जगवाल ने कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस संबंध में कई बातें कही हैं. कर्नाटक में भी ऐसा किया जाना चाहिए. अन्यथा यह मान लिया जाएगा कि यहां सवाल करने वाला कोई नहीं है. जगवाल ने कहा कि कांग्रेस आज समिति के खिलाफ बात कर रही है. लेकिन उन्होंने पहले ही इस तरह की सिफारिशें दी हैं. अब तक इस संबंध में की गईं 11 सिफारिशों में से कांग्रेस सरकारों द्वारा 8 सिफारिशें की हैं. इसके पहले राज्य के विपक्षी नेता सिद्दारमैया ने हिंदी भाषा थोपने और स्थानीय कन्नड़ भाषा की उपेक्षा को लेकर सोशल मीडिया पर सत्तारूढ़ भाजपा पर हमला बोला था. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार कन्नड़ भाषा को नुकसान पहुंचा रही है और भाजपा के केंद्रीय नेताओं को खुश करने के लिए हिंदी भाषा का महिमामंडन कर रही है.

जद (एस) के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने यह कहकर केंद्र सरकार की खिंचाई की थी कि बीजेपी हिंदी भाषा लाकर भारत को हिंदुस्तान बनाने की साजिश कर रही है. कुमारस्वामी ने कहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट चौंकाने वाली है. इससे देश में संघवाद ढांचा नष्ट हो जाएगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एक छिपे हुए एजेंडे के माध्यम से पूरे भारत को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है. अगर बहुमत मिलने के कारण बीजेपी भारत पर हिंदी थोपती है तो भारत को नुकसान होगा. कुमारस्वामी ने कहा भारत हिंदू और हिंदी के लिए नहीं है. यह सबका है.