Kalpana Chawla Birth Anniversary: कल्पना चावला (Kalpana Chawla) अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली पहली भारतीय मूल की महिला (First Woman Of Indian Origin To Fly To Space) थीं. उन्होंने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया (Space World) में उपलब्धियां हासिल की, बल्कि तमाम छात्र-छात्राओं को उनके सपनों की उड़ान भरना भी सिखाया. नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था. उन्होंने 1991 में संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता प्राप्त कर ली और अमेरिकी नागरिक (American Citizen) बन गईं. कल्पना जब छोटी थीं, तभी से उनकी दिलचस्पी हवाई जहाज और उड़ान में बढ़ने लगी थी. उन्हें इसके प्रति इतना अधिक प्यार था कि वो अक्सर अपने पिता के साथ स्थानीय फ्लाइंग क्लब में विमानों को देखने के लिए जाती थीं.
कोलंबिया में एसटीएस-87 मिशन (STS-87 Mission) के दौरान अंतरिक्ष यान में उड़ान भरने से पहले कल्पना चावला की भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के साथ लंबी बातचीत हुई थी. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि कल्पना हमें तुम पर गर्व है. हममें से प्रत्येक को आप जैसे व्यक्ति पर गर्व है, जिसने इस तरह के अग्रणी कार्य किए हैं. खासकर भारत के युवा और महिलाएं यह देखकर गर्व महसूस कर रहे हैं कि आपने अंतरिक्ष में क्या किया है. इसके साथ ही उन्होंने कल्पना चावला को बधाई भी दी थी.
इसके साथ ही गुजराल ने कल्पना से धरती पर वापस आने के बाद भारत आने के लिए भी कहा था, लेकिन दुर्भाग्यवश 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्पना की उड़ान हमेशा-हमेशा के लिए रुक गई. चलिए कल्पना चावला के जन्मदिवस पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें.
कल्पना चावला के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
- कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था, लेकिन मैट्रिक परीक्षा पास करने के योग्य बनने के लिए उनकी जन्मतिथि को 1 जुलाई 1961 में बदल दिया गया था.
- कल्पना ने टैगोर स्कूल से ग्रेजुएशन किया और पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग (Aeronautical Engineering) में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की और 1982 में वो संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं.
- उन्होंने अपने नाम दो मास्टर डिग्री दर्ज कराई. साल 1984 में Arlington में टेक्सास विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में कल्पना ने पहला मास्टर ऑफ साइंस डिग्री हासिल किया, इसके बाद 1986 में उन्होंने दूसरी डिग्री प्राप्त की.
- कल्पना ने साल 1988 में कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय (University of Colorado Boulder) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.
- कल्पना ने उसी साल नासा एम्स रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू कर दिया. वहां उन्होंने वर्टिकल/ शॉर्ट टेक ऑफ और लैंडिंग (V/STOL) कॉन्सेप्ट पर कंप्यूटेशनल फ्लूइड डायनेमिक्स (computational fluid dynamics-CFD) रिसर्च किया.
- साल 1998 में उन्हें शटल और स्टेशन फ्लाइट क्रू उपकरण के लिए चालक दल के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया. कल्पना ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय के क्रू सिस्टम और हैबिटिबिलिटी सेक्शन के लिए जल्द ही काम करना सुरू कर दिया.
- 19 नवंबर 1997 को कल्पना भारतीय मूल की पहली महिला बनीं, जिन्होंने अंतरिक्ष शटल के छह क्रू का हिस्सा बनकर कोलंबिया अंतरिक्ष यान एसटीएस-87 से अंतरिक्ष (Columbia flight STS-87) में उड़ान भरी.
- कल्पना का निधन 1 फरवरी 2003 में दक्षिण संयुक्त राज्य अमेरिका में उस वक्त हुआ था, जब स्पेश शटल कोलंबिया STS-107 और उसके चालक दल ने निर्धारित लैंडिंग से 16 मिनट पहले प्रवेश किया. उन्हें मरणोपरांत कांग्रेशनल स्पेस मेडल (Congressional Space Medal) से सम्मानित किया गया था. यह भी पढ़ें: 1 फरवरी आज का इतिहास: अंतरिक्ष शटल कोलंबिया दुर्घटनाग्रस्त में आज ही के दिन हुआ कल्पना चावला का निधन
- कल्पना चावला के सम्मान में उनके नाम पर कई सड़कों, यूनिवर्सिटी, संस्थानों और स्कॉलरशिप का नामकरण किया गया है. कोलंबिया हिल्स की सात चोटियों में से एक कल्पना चावला के नाम पर भी है. नासा ने कल्पना को एक सुपर कंप्यूटर समर्पित किया है.
- 5 फरवरी 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐलान किया कि उपग्रहों की मौसम संबंधी श्रृंखला, मेटसैट का नाम बदलकर कल्पना किया जाना चाहिए. 12 सितंबर 2002 को भारत द्वारा लॉन्च की गई उपग्रहों की श्रृंखलाओं में पहले मेटसेट-1 (MetSat-1) उपग्रह का नाम बदलकर कल्पना-1 (Kalpana-1) रखा गया.
- कल्पना 2 दिसंबर 1982 को अपने पति जीन पियरे हैरिसन (Jean-Pierre Harrison) से मिली थी और दोनों ने दिसंबर 1983 में शादी की थी. कल्पना के पति जीन पियरे हैरिसन ने अंतरिक्ष यात्री पर आधिकारिक जीवनी 'द एज ऑफ टाइम' नाम के शीर्षक से लिखी थी.
गौरतलब है कि कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में उड़ान भरना चाहती थीं, उनके पिता बताते हैं कि कल्पना कभी असफलताओं से घबराती नहीं थीं. वो जो ठान लेती थीं उसे पूरा करके ही दम लेती थीं. आज भले ही कल्पना हमारे बीच नहीं है. लेकिन आज भी वो हमारे देश के युवाओं और महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं.