प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)
जस्टिन ट्रूडो की जगह अब मार्क कार्नी कनाडा के नए प्रधानमंत्री हैं. ये बदलाव भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने का नया मौका लाया है. लेकिन सिख नेता की हत्या को लेकर हुआ विवाद अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है.जस्टिन ट्रूडो के पद से हटने और मार्क कार्नी के कनाडा के नए प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों की खटास कम होने की उम्मीद जताई जा रही है. असल में, सितंबर 2023 से ट्रूडो और भारत के संबंध तनावपूर्ण हो गए, जब ट्रूडो ने सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को भारतीय एजेंटों से जोड़ा. हालांकि भारत ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. लेकिन इस विवाद के कारण दोनों देशों के संबंध काफी खराब हो गए.
अब ट्रूडो सत्ता से बाहर हो गए हैं और नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी को एक अनुभवी और वैश्विक नजरिए वाला नेता माना जा रहा है. वह भारत जैसे बड़े देश के साथ कनाडा के संबंधों को बेहतर बनाने पर काम कर सकते हैं. लेकिन यह सब तभी संभव होगा, जब कार्नी, कनाडा के आने वाले संसदीय चुनाव में मजबूत साबित होंगे.कनाडा के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप पर रिपोर्ट: चीन और भारत पर गंभीर आरोप
मार्क कार्नी ने सत्ताधारी लिबरल पार्टी का नेता चुने जाने से पहले कहा था कि "भारत के साथ संबंध फिर से मजबूत करने के मौके हैं और व्यापारिक रिश्तों में समान रुचि की आवश्यकता होती है. अगर मैं प्रधानमंत्री बना, तो इन संबंधों को सुधारने की कोशिश जरूर करूंगा."
और अब उनके पद संभालने के बाद, भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं. हाल ही में कनाडा की खुफिया एजेंसी कनाडा सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस के प्रमुख डेनियल रॉजर्स नई दिल्ली आए थे. यहां उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय द्वारा आयोजित एक गुप्त बैठक में हिस्सा लिया. इस बैठक में अमेरिका और ब्रिटेन के खुफिया प्रमुख भी शामिल थे.
कनाडा के सिख समूहों पर भारत की नाराजगी
हरदीप सिंह निज्जर मामले के कारण भारत और कनाडा के संबंध अत्यंत खराब हो गए थे. दोनों देशों ने एक-दूसरे के बड़े राजनयिकों, हाई कमिश्नरों को निकाल दिया था और व्यापार समझौता रोक दिया था. लेकिन इससे पहले भी भारत लगातार कनाडा के सिख कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियों को लेकर नाराजगी जताता रहा है. भारत का आरोप है कि ये संगठन पंजाब के पुराने विद्रोह को फिर से भड़काने की कोशिश कर रहे हैं.
कनाडा में राजनयिकों की हो रही है निगरानीः भारत
कनाडा में दुनिया की सबसे बड़ी सिख प्रवासी आबादी रहती है. यहां लगभग 8 लाख सिख रहते हैं, जो कनाडा की जनसंख्या में दो प्रतिशत की भागीदारी रखते है.
निज्जर खुद "खालिस्तान आंदोलन" का समर्थक था, जो पंजाब क्षेत्र में एक अलग सिख राष्ट्र बनाने की मांग करते हैं. लेकिन हाल ही में दोनों देशों के पूर्व राजनयिकों और विशेषज्ञों के बीच बातचीत हुई. जिससे संकेत मिलते हैं कि विवादित मुद्दों को पीछे छोड़ने और व्यापार, निवेश और जलवायु परिवर्तन जैसी नीतियों को आगे बढ़ाने पर ध्यान देने की कोशिश की जा रही है.
क्या भारत और कनाडा की करीबी की वजह ट्रंप है?
कनाडा के पूर्व राजनयिक डेविड मैकिनॉन का मानना है कि अमेरिका की नई सरकार, भारत और कनाडा के पुराने मतभेद भुलाने में मदद कर सकती है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "2025 तक कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी हों या पियरे पॉइलीवर, भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की असली वजह राष्ट्रपति ट्रंप के कारण अमेरिका और कनाडा के बदलते संबंध हो सकते हैं."
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मैकिनॉन के अनुसार कनाडा अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहता और वह इंडो-पैसिफिक और यूरोप के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है. उन्होंने कहा, "भारत, कनाडा के लिए एक बेहतर साझेदार है, क्योंकि हमारे पास तकनीक, शिक्षा और निवेश में ऐसे संसाधन है, जो एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा हम दोनों लोकतांत्रिक विरासत साझा करते हैं और वैश्विक व्यवस्था को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं."
मैकिनॉन ने यह भी कहा कि भारत और कनाडा को अपने रिश्ते सुधारने के लिए समझदारी के आगे बढ़ना होगा, खासकर जहां गहरे मतभेद हैं. आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि कनाडा और भारत निज्जर हत्या मामले और खालिस्तान मुद्दे पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं.
अमेरिका, चीन और भारत के बीच फंसा कनाडा
कनाडा में भारत के पूर्व राजदूत अजय बिसारिया का मानना है कि मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री बनने से भारत-कनाडा संबंध सुधारने का अच्छा मौका मिल सकता है.
बिसारिया ने कहा, "इसका समाधान कुछ इस तरह से किया जा सकता है. दोनों देशों में हाई कमिश्नरों की बहाली की जाए, भारत को कनाडा में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया जाए और व्यापार समझौते को आगे बढ़ाया जाए. यह सब राजनीतिक रूप से और भी जरूरी हो गया है, क्योंकि कनाडा को अमेरिका और चीन दोनों के साथ भू-राजनीतिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है."
इसके साथ बिसारिया ने चेतावनी भी दी कि कनाडा की नई सरकार की प्राथमिकता अमेरिका से जुड़ी आर्थिक समस्याएं हो सकती हैं क्यूंकि डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापार से जुड़ी मांगों के कारण कनाडा को आर्थिक संकट झेलना पड़ रहा है. ऐसे में हो सकता है कि भारत के साथ संबंध सुधारना कनाडा के लिए प्राथमिकता ना हो.
पहला कदम कौन बढ़ाएगा?
मार्क कार्नी कनाडा, ब्रिटेन और आयरलैंड के नागरिक हैं. हालांकि उन्होंने संकेत दिया है कि वह ब्रिटिश और आयरिश पासपोर्ट छोड़ सकते हैं. वह इससे पहले बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर भी रह चुके हैं. ऐसे में कनाडा के व्यापार संबंधों को मजबूत करना उनकी प्राथमिकता हो सकती है.
भारतीय शोध संस्थान, मंत्राया की संस्थापक शांथि मारिएट डिसूजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "कनाडा को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत की जरूरत है और भारत को भी कनाडा के साथ व्यापार समझौते से फायदा हो सकता है."
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उन्होंने कहा कि "हालांकि यह समझौता होने में समय लग सकता है, लेकिन यह भांपने का सबसे बेहतर तरीका होगा यह देखना कि भारत कितनी जल्दी कनाडा में अपने हाई कमिश्नर को नियुक्त करता है."
अगर भारत कनाडा में अपना राजनयिक नियुक्त करता है, तो इससे कनाडा को भी जल्द ही नई दिल्ली में अपने राजनयिक को तैनात करने का मौका मिलेगा.
डिसूजा ने कहा, "फिलहाल दोनों देशों के संबंध काफी खराब हैं, ऐसे में कोई भी संभावित सुधार बेहतर ही माना जाएगा. भारत और कनाडा के रिश्ते सुधारने के लिए नए प्रधानमंत्री को सबसे पहले भारत की मुख्य चिंता, कनाडा में सिख उग्रवाद के प्रति बरती जाने वाली नरमी, को दूर करना होगा."