Independence Day 2024: देश अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. 15 अगस्त 1947, वो दिन था जब भारत ने अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी की नई सुबह देखी. 15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है. यह वह दिन था जब भारत ने अंग्रेजों की दासता से मुक्त होकर स्वतंत्रता की सांस ली. इस दिन की महत्ता केवल भारत की आज़ादी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर के लिए एक संदेश था कि जब एक राष्ट्र अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करता है, तो कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती.
उस दिन एक सपनों से भरा और संकल्पित भारत दुनिया के सामने उभरा. स्वतंत्रता के इस दिन ने न केवल अंग्रेजी हुकूमत के 200 सालों के शासन का अंत किया, बल्कि एक नए भारत की नींव भी रखी. यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्ष और बलिदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. आजादी का यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है.
स्वतंत्रता का सवेरा
15 अगस्त 1947 की सुबह, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया. गर्व से भरे क्षण में भारत ने एक नया अध्याय शुरू किया. यह वह क्षण था जब भारत ने एक नए युग में प्रवेश किया, एक ऐसा युग जहां स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों को सर्वोपरि रखने का संकल्प लिया गया.
पहले स्वतंत्रता दिवस का जश्न कैसे मनाया गया?
ब्रिटिश शासन 1948 तक भारत को स्वतंत्रता देने की योजना बना रहा था लेकिन अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने इस तारीख को 15 अगस्त 1947 कर दिया. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर, भारतीय नेताओं ने संसद के केंद्रीय हॉल में एक विशेष सत्र आयोजित किया. इस ऐतिहासिक अवसर को लेकर देशभर में उत्साह का माहौल था. कांग्रेस पार्टी ने सिनेमा हॉल्स को स्वतंत्रता दिवस समारोह के निशुल्क प्रसारण का निर्देश दिया, और हर स्कूल के बच्चों को मिठाई और 'स्वतंत्रता पदक' बांटने का फैसला किया.
संसद का कार्यक्रम 14 अगस्त की रात 11 बजे शुरू हुआ, और हजारों भारतीय संसद भवन के बाहर जुटे. देशभक्ति से भरे लोगों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि पंडित नेहरू को लोगों से शांत रहने की अपील करनी पड़ी. ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर संसद के सेंट्रल हॉल में पंडित नेहरू ने भाषण देना शुरू कर दिया जिसे दुनिया 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के नाम से जानती है.
जैसे ही रात के 12 बजे, शंख बजने लगे. नेहरू सहित संसद के सेंट्रल हॉल में मौजूद हर व्यक्ति की आंख में आंसू थे. महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय के नारों से पूरी संसद एकाएक गूंज उठी. अगले पूरे दिन देश में आजादी का जश्न होना था.
इस ऐतिहासिक अवसर पर महात्मा गांधी की अनुपस्थिति दिल्ली में महसूस की जा रही थी. गांधीजी उस समय बंगाल में थे, जहां वे विभाजन के कारण हो रही हिंसा को रोकने की कोशिश कर रहे थे. इस समय पंजाब और बंगाल जैसे क्षेत्रों में विभाजन की भयानक हिंसा फैली हुई थी.
पहला स्वतंत्रता दिवस: 15 अगस्त 1947
स्वतंत्रता की खबर फैलते ही देशभर में जश्न का माहौल बन गया. मुंबई के राजाबाई टॉवर, ताज होटल सहित देशभर के प्रतिष्ठित भवनों को रोशनी से सजाया गया. देशभर के गली मोहल्ले सजने लगे. ढोल बज रहे थे और लोग सड़कों पर नाच रहे थे. चारों और तिरंगे की शान दिख रही थी. दिल्ली में अनुमान था कि लगभग 30,000 लोग संसद भवन और राष्ट्रपति भवन के आसपास एकत्रित होंगे, लेकिन वास्तविक संख्या 5 लाख तक पहुंच गई. 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'महात्मा गांधी की जय', 'भारत माता की जय' जैसे नारे गूंज रहे थे.
भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस एक ऐसा दिन था जो हमेशा के लिए हमारे दिलों में बसा रहेगा. यह दिन हमें यह सिखाता है कि एकजुटता, संघर्ष और दृढ़ निश्चय के साथ हर सपना साकार किया जा सकता है.