नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि “बांझ दंपत्ति” को सरोगेसी (किराए की कोख से जन्म) के लाभ से वंचित करना माता-पिता बनने के उनके मूल अधिकार का उल्लंघन है. अदालत ने यह आदेश सरोगेसी कानून (Surrogacy Law) में संशोधन से चिंतित एक विवाहित जोड़े की याचिका पर दिया है. दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि सरोगेसी प्रक्रियाओं में दाता युग्मकों के उपयोग पर रोक लगाने वाली अधिसूचना सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम [एआरटी अधिनियम] का उल्लंघन करती है. कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिया ये आदेश.
केंद्र सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में संशोधन कर 14 मार्च को एक अधिसूचना जारी की थी. इस संशोधन के जरिए बांझ दंपत्ति को सरोगेसी के लाभ से वंचित कर दिया गया था. याचिकाकर्ता दंपत्ति ने कहा कि केंद्र सरकार की उस अधिसूचना से पहले, वे एक सरोगेट (किराए की कोख) की तलाश कर रहे थे क्योंकि पत्नी को बांझपन की समस्या का पता चला था. लेकिन अब उन्हें माता-पिता बनने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है और उनका निषेचित भ्रूण ‘कानूनी रूप से अव्यवहार्य’ हो गया है.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा, ‘पहली नजर में, अधिसूचना एक विवाहित बांझ जोड़े को कानूनी और चिकित्सकीय रूप से विनियमित प्रक्रियाओं और सेवाओं तक पहुंच से वंचित करके माता-पिता बनने के उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है.’केंद्र सरकार की अधिसूचना के नियम 7 के तहत फॉर्म 2 के पैराग्राफ 1 (डी) में संशोधन किया गया है. सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 ने जोड़ों को कानूनी और चिकित्सकीय रूप से विनियमित प्रक्रियाओं तक पहुंच से वंचित कर दिया.
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के भेदभाव का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा. "ऐसे मामलों में जहां पत्नी व्यवहार्य अंडाणु पैदा करने में सक्षम है, लेकिन गर्भकालीन गर्भधारण करने में असमर्थ है, इच्छुक दंपत्ति कानून के अनुसार सरोगेसी प्रक्रियाओं का लाभ उठाने में सक्षम होंगे. हालांकि, अगर पत्नी व्यवहार्य अंडाणु पैदा करने में सक्षम नहीं है, उन्हें सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने की अनुमति नहीं दी जाएगी,''