New Education Policy 2020: जब कोई छात्र देश के किसी भी विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज, आदि में दाखिला लेने जाता है, तो उसे विषयों के कॉम्बिनेशन थमा दिए जाते हैं. वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ज़ूलोजी और बॉटनी के साथ केवल केमिस्ट्री ले सकते हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज (Engineering College) में दाखिल ले लिया है और संगीत (Music) में रुचि है तो म्यूजिक सीखने के लिए बाहर किसी इंस्टिट्यूट में जाना पड़ेगा. और तो और फिजिक्स, मैथ्स के साथ आप होम साइंस नहीं ले सकते. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत यह सब बदल जाएगा. अब इंजीनियरिंग के छात्र भी म्यूजिक सब्जेक्ट ले सकेंगे.
प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय मंत्रीमंडल की बैठक में बुधवार को शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दे दी गई. इस नई नीति के तहत प्री स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक तमाम सारे बदलाव किए गए हैं। उच्च शिक्षा में बदलाव की बात करें तो सबसे मल्टीडिसिप्लिनरी सब्जेक्ट के साथ-साथ छात्र को मल्टिपल एंट्री और एग्जिट का ऑफर भी दिया जाएगा. यह भी पढ़े: New Education Policy: नई शिक्षा नीति पर बोले पीएम मोदी, एक लंबे समय से था इस सुधार का इंतजार, लाखों लोगों का जीवन बदलेगा
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने नई शिक्षा नीति के बारे में जानकारी दी, जो इस प्रकार है:
मल्टिपल एंट्री, एग्जिट
आज की व्यवस्था में अगर चार साल की इंजीनियरिंग में अगर मैं छह सेमेस्टर तक पढ़ने के बाद आगे किसी कारणवश नहीं पढ़ पाता हूं, तो मेरे पास कोई चारा नहीं है। मैं सिस्टम से आउट हो जाता हूं। नई व्यवस्था के तहत एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा, तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी.
एकेडमिक क्रेडिट के आधार पर मल्टिपल एंट्री भी मिल सकती है। यानी अगर किसी ने दो साल पूरे कर लिये हैं, लेकिन आगे के दो साल किन्हीं कारणवश नहीं पढ़ सकते है, तो एक निश्चित अवधि के बाद अगर वापस आना चाहें तो अकेडमिक क्रेडिट के आधार पर तृतीय वर्ष में प्रवेश ले सकेंगे।
एक साल के पीजी के बाद सीधे पीएचडी
अगर चार साल का कोई कोर्स है तो उनमें अगर कोई कोर्स के बाद नौकरी करना चाहता है, तो तीन साल के बाद निकल सकता है, और जिसे रिसर्च में जाना है, वो चार साल का कोर्स पूरा करने के बाद एक साल का पीजी और फिर सीधे पीएचडी में एनरोलमेंट करा सकता है। इसमें एमफिल की जरूरत नहीं पड़ेगी.
सारे प्रोग्राम मल्टी डिसिप्लिनरी होंगे
अभी की व्यवस्था में ग्रेजुशन में फिजिक्स, केमिस्ट्री के साथ मैथ्स ही ली जा सकती है, या ज़ूलोजी या बॉटनी के साथ केमिस्ट्री ही ली जा सकती है, उसके साथ फैशन डिजाइनिंग नहीं ली जा सकती थी.
नई व्यवस्था में मेजर और माइनर की व्यवस्था होगी. इससे फायदा यह होगा कि किन्हीं कारणवश अगर कोई ड्रॉपआउट हो जाता है, तो वो किसी भी समय वापस आ सकता है. और दूसरी बात अगर फिजिक्स के छात्र को म्यूजिक में रुचि है, तो वो माइनर सब्जेक्ट के रूप में संगीत ले सकता है। इसके लिए सभी विश्वविद्यालयों और शिक्षण को मल्टी डिसिप्लिनरी बनाया जाएगा.
संबद्ध कॉलेजों पर
हमारे देश में इस वक्त करीब 45 हजार संबद्ध कॉलेज हैं। कई विश्वविद्यालयों में संबद्ध कॉलेजों की संख्या 800 के ऊपर चली गई है। ऐसे विश्वविद्यालय साल भर तक परीक्षाएं ही कराते रह जाते हैं.अब एक्रिडिटेशन के आधार पर एडमिनिस्ट्रेटिव एवं एकेडमिक एटॉनॉमी दी जाएगी। नेशनल मिशन ऑन मेंटरिंग के तहत फेकल्टी का उन्नयन किया जाएगा.
केवल एक नियामक संस्था
- आज के दिन में यूजीसी, एआईसीटीई और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजूकेशन हैं। नई व्यवस्था के तहत एक ही नियामक संस्था होगी। इसमें अप्रूवल, फाइनेंसिंग, आदि के लिए अलग-अलग विंग होंगे। इसमें सेल्फ डिस्क्लोज़र बेस्ड व्यवस्था लायी जाएगी. इससे हर चीज के लिए बार-बार इंस्पेक्शन टीम को भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
- डीम्ड यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी, ऑटोनोमस कॉलेज, आदि हैं और सभी के लिए नियम अलग-अलग हैं. नई व्यवस्था के तहत ये सभी एक ही छत के नीचे काम करेंगे। यानी सब पर समान नियम लागू होंगे.
- पढ़ाई के शुल्क पर भी कैप रखा जाएगा. यानी निजी कॉलेज फीस को लेकर मनमानी नहीं कर पायेंगे. शुरू से हमारा लक्ष्य है कि जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा के क्षेत्र में होना चाहिए। वर्तमान में 4.4 प्रतिशत के करीब है.
- नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में न केवल साइंस बल्कि सोशल साइंस को भी शामिल किया जाएगा। इससे रिसर्च, इनोवेशन, पेटेंटिंग आदि में बढ़ सकेंगे। शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बनाने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा विदेशी छात्र भारत में पढ़ने आयें.
- ई-कोर्स कम से कम आठ भाषाओं में ऑनलाइन माध्यम से उपलब्ध कराये जाएंगे. असेसमेंट के लिए तकनीकियों का इस्तेमाल किया जाएगा। साथ ही नेशनल एजूकेशन टेक्नोलॉजी फोरम स्थापित किया जाएगा, जिसमें प्राइवेट सेक्टर, गवर्नमेंट सेक्टर, शिक्षाविद, वैज्ञानिक आदि शामिल होंगे.