नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों से देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन (Protest) अब हिंसात्मक होते जा रहे हैं. इस हिंसा ने न सिर्फ देश की संपत्ति एवं जन-जीवन को क्षत-विक्षत किया है बल्कि जीडीपी (GDP) को भी भारी नुकसान पहुंचाया है. क्या इस तरह अनियंत्रित होती कानून एवं अर्थव्यवस्था (Economy) का असर विदेशी निवेश (Foreign Investment) पर भी पड़ रहा है. आइये जानते हैं...
नागरिक संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act), एवं भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens) के खिलाफ देश भर में कहीं विरोध में तो कहीं समर्थन में प्रदर्शन हो रहा है. विरोध प्रदर्शनों में भारी संख्या में देश की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. वह चाहे गुवाहाटी हो, पश्चिम बंगाल हो, दिल्ली हो अथवा उत्तर प्रदेश के दर्जन भर से ज्यादा शहर हों. इन जगहों पर आंदोलनकारियों द्वारा सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर तो बुरा असर पड़ ही रहा है, साथ ही कानून व्यवस्था की भी खिल्ली उड़ रही है. जिसका असर भारत में विदेशी निवेशों पर भी पड़ता दिख रहा है. प्रियंका गांधी पहुंची मुजफ्फरनगर, CAA हिंसा में मारे गए परिवार वालों से की मुलाकात
जोखिम नहीं लेना चाहता निवेशक
कोई भी निवेशक जब किसी दूसरे देश में निवेश करने की पहल करता है तो उसकी पहली नजर अमूक देश में डिमांड एंड सप्लाई के साथ-साथ वहां की कानून व्यवस्था पर भी रहती है. वह ऐसे किसी भी देश में निवेश करके जोखिम नहीं उठाना चाहते, जहां हर दूसरे दिन हिंसक आंदोलन हो रहे हों और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा हो. क्योंकि इस तरह के आंदोलन-प्रदर्शनों से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. जिसका प्रत्यक्ष असर वहां के व्यवसाय पर पड़ता है. ऐसा नहीं कि ऐसे आंदोलनों से सरकारी सम्पतियों को ही नुकसान पहुंचता है, बल्कि आस-पास खड़ी प्राइवेट गाड़ियां, बसें अथवा रास्तों से गुजरते आमजन भी इन आंदोलनों का शिकार बनते हैं. ऐसे माहौल में कोई भी निवेशक भला अपना पैसा क्यों डुबोना चाहेगा. क्योंकि इस तरह के हिंसात्मक आंदोलनों से सबसे ज्यादा वहां का व्यवसाय प्रभावित होता है.
हिंसक प्रदर्शनों के कारण नुकसान के चौंकानेवाले आंकड़े
किसी भी प्रकार के हिंसा और आगजनी के कारण देश पर इसका कितना बुरा परिणाम पड़ सकता है इसके आंकड़े किसी को भी चौंका सकते हैं. पिछले कुछ वर्षों में भारत में हुए विरोध प्रदर्शन, हिंसा और आगजनी के बाद देश की अर्थव्यवस्था किस कदर प्रभावित हुई है, इस पर आस्ट्रेलिया की एक संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पीस (आईआईपी) ने जो सर्वे किया उससे प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में मात्र 2017 में हिंसा और आगजनी को नियंत्रित करने में लगभग 80 लाख करोड़ से ज्यादा धनराशि खर्च हुई, ये 80 लाख करोड़ रुपए भारत की जीडीपी के करीब 9 प्रतिशत है. ‘आईआईपी’ ने भी ये आकड़ा भारतीयों की खरीदारी के आधार पर निकाला है. अब इस आंकड़े को भारत के प्रति व्यक्ति के हिसाब डिवाइड किया जाये एक आम भारतीय का करीब 40 हजार रुपया हिंसा में स्वाहा हो गया.
हिंसा प्रभावित देशों में भारत 59वें और स्विट्जरलैंड अंतिम स्थान पर
‘आईआईपी’ ने साल 2017 में हिंसा एवं आगजनी से हुए नुकसानों के लिए 163 देशों का सर्वे किया था, जिसमें भारत 59वें स्थान पर था. इस सूची में सीरिया नंबर 1 पर था. प्राप्त शोध व मिले रिपोर्ट के अनुसार सीरिया के जीडीपी का लगभग 68 फीसदी हिस्सा हिंसा की भेंट चढ़ जाता है. सीरिया के बाद दूसरे नंबर पर अफगानिस्तान और सबसे कम नुकसान उठाने वाले देशों में स्विट्जरलैंड अंतिम पायदान पर पाया गया. हैरानी की बात यह है कि साल 2017 की तुलना में साल 2019 में दुगने से ज्यादा ऐसे हिंसक प्रदर्शन हुए और अभी हो रहे हैं.
भारत में क्यों नहीं थम पा रहे हैं हिंसात्मक आंदोलन
भारत में किसी भी हिंसात्मक आंदोलनों को नियंत्रण में लाने में काफी देरी हो जाती है. उसकी मुख्य वजह यही है कि यहां सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाने संबंधी मामलों में हर राज्य में अलग-अलग कानून है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आंदोलनों एवं हिंसा में सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए एक बहुत सख्त कानून पर कार्य कर रही है, जिसमें हिंसा एवं आगजनी से क्षति पहुंचाने वाले आंदोलनकारियों से ही मुआवजा वसूला जायेगा. जबकि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में पहले से ही यह कानून बना हुआ है. यही नहीं करीब दो तिहाई राज्यों में ऐसा कानून पहले बना हुआ है, जिसके तहत आंदोलनों के कारण सरकारी सम्पत्तियों में हुए नुकसान का मुआवजा आंदोलनकारियों से वसूले जाने का प्रावधान है. लेकिन कानून होकर भी कानून का पालन इसीलिए नहीं हो पाता है क्योंकि हिंसा करने वालों की तादाद बहुत ज्यादा होती है, इसके साथ ही आंदोलनकारियों की माली हालत ऐसी नहीं होती कि वे क्षति के मुआवजे की भरपाई कर सकें. क्योंकि ऐसे आंदोलनों में जहां अधिकांशतया राजनीतिक पार्टियां शामिल होती हैं, किराये पर भीड़ इकट्ठा करती हैं. ऐसे में हिंसा और नुकसान पर नियंत्रण के लिए ज्यादा जरूरी यही है कि सामाजिक जागरुकता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए, ताकि देश ऐसे हिंसक आंदोलनों से उबरकर विकास की रेस में शामिल हो.