
Bangladesh Election Reform: बांग्लादेश की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है, जिन छात्र नेताओं ने पिछले साल अगस्त में आंदोलन करके सरकार बदल दी और 'क्रांति' का दावा किया, वे अब खुद सत्ता और कुर्सी के मोह में घिरते नजर आ रहे हैं. इन नेताओं की नई मांग है कि देश में चुनाव का तरीका ही बदल दिया जाए, ताकि कम वोट मिलने पर भी वे सत्ता का सुख भोग सकें.
क्या है पूरा मामला?
पिछले साल के छात्र आंदोलन के बाद 'नेशनल सिटिजन पार्टी' (NCP) नाम की एक नई राजनीतिक पार्टी बनी यही वो पार्टी है, जिसे आंदोलनकारी छात्रों ने बनाया है अब ये पार्टी और कुछ छोटी-छोटी इस्लामिक पार्टियां मिलकर मांग कर रही हैं कि बांग्लादेश में चुनाव 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व' (Proportional Representation) प्रणाली से कराए जाएं.
लेकिन, बांग्लादेश की एक बड़ी और पुरानी पार्टी, खालिदा जिया की 'बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी' (BNP) इस मांग का जमकर विरोध कर रही है. BNP का कहना है कि जो लोग यह मांग कर रहे हैं, उनका मकसद ठीक नहीं है वे या तो चुनाव में देरी चाहते हैं या फिर चुनाव चाहते ही नहीं हैं.
क्या होता है आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिस्टम?
इसे समझना बहुत आसान है अभी भारत और बांग्लादेश में जो सिस्टम है, उसे 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' कहते हैं, यानी 'जो जीता वही सिकंदर' इसमें जिस उम्मीदवार को अपने क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं, वो जीत जाता है, भले ही बाकी सारे वोट उसके खिलाफ पड़े हों.
लेकिन, आनुपातिक प्रतिनिधित्व में ऐसा नहीं होता इस सिस्टम में पार्टियों को उतने ही प्रतिशत सीटें मिलती हैं, जितने प्रतिशत उन्हें वोट मिले होते हैं.
उदाहरण के लिए: अगर किसी पार्टी को पूरे देश में 20% वोट मिले, तो उसे संसद में भी 20% सीटें मिलेंगी.
इस प्रणाली में अक्सर किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलता, क्योंकि वोट कई पार्टियों में बँट जाते हैं ऐसे में सरकार बनाने के लिए कई पार्टियों को मिलकर गठबंधन करना पड़ता है.
NCP और इस्लामिक पार्टियां यह नया सिस्टम क्यों चाहती हैं?
इसकी वजह साफ है NCP बनाने वाले छात्र नेता यह जानते हैं कि भले ही उन्होंने सरकार बदलने में बड़ी भूमिका निभाई हो, लेकिन जनता उन्हें अकेले दम पर सत्ता में नहीं लाएगी. उन्हें डर है कि मौजूदा चुनावी सिस्टम में उन्हें शायद एक भी सीट न मिले.
अगर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू हो जाती है, तो 5-10% वोट पाकर भी वे कुछ सीटें जीत सकते हैं. इससे उन्हें संसद में पहुँचने और गठबंधन सरकार में शामिल होने का मौका मिल जाएगा. यही वजह है कि NCP और जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियाँ इस मांग पर जोर दे रही हैं.
BNP क्यों कर रही है विरोध?
शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद BNP खुद को सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार मान रही है. उसे भरोसा है कि मौजूदा चुनाव प्रणाली में वह आसानी से बहुमत हासिल कर लेगी. अगर नियम बदल गया तो छोटी-छोटी पार्टियाँ भी सीटें जीत जाएँगी और BNP की ताकत कम हो जाएगी. उसे सरकार बनाने के लिए इन छोटी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ सकता है, जो वह नहीं चाहती.
आगे क्या होगा?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने घोषणा की है कि देश में आम चुनाव दिसंबर 2025 से जून 2026 के बीच कराए जाएँगे. ऐसे में चुनाव प्रणाली को लेकर यह बहस और तेज हो गई है.
एक तरफ BNP है, जो सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार है और पुराने नियमों से ही चुनाव चाहती है. दूसरी तरफ नए खिलाड़ी NCP और छोटी इस्लामिक पार्टियाँ हैं, जो नए नियम के सहारे सत्ता में अपनी जगह पक्की करना चाहती हैं. यह लड़ाई दिखाती है कि बांग्लादेश में 'क्रांति' के बाद अब असली खेल 'कुर्सी' का शुरू हो गया है.