भारत ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास: शुभांशु शुक्ला का यान इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जुड़ा, Ax-4 मिशन की शानदार सफलता
India Makes Space History

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है. वे Axiom-4 (Ax-4) मिशन के अंतर्गत स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल में सवार होकर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पहुंचे. यह मिशन भारत के लिए गौरव का क्षण बन गया है, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी भारतीय मिशन ने इतनी सटीकता से और इतनी तेज गति से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक की दूरी तय की है.

इस मिशन में ड्रैगन कैप्सूल ने तय समय से लगभग 40-45 मिनट पहले अंतरिक्ष स्टेशन से डॉकिंग कर ली. यह यान 418 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए 28,000 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ISS तक पहुंचा. लॉन्च के बाद महज 26 घंटे में यह यान अपने गंतव्य तक पहुंच गया, जो तकनीकी क्षमता और समय प्रबंधन का अद्वितीय उदाहरण है.

तय समय से पहले डॉकिंग, 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से पहुंचा यान

डॉकिंग कैसे हुई? जानिए चार चरणों में प्रक्रिया

ड्रैगन कैप्सूल की ISS से डॉकिंग प्रक्रिया एक स्वचालित प्रणाली (Autonomous System) से संचालित होती है, जिसे NASA और SpaceX के कंट्रोलर लगातार मॉनिटर करते हैं. हालाँकि, शुभांशु शुक्ला और मिशन कमांडर पेगी व्हिटसन इस प्रक्रिया की निगरानी में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे.

डॉकिंग के चार मुख्य चरण:

Rendezvous (मुलाकात की शुरुआत): यान ने 90 सेकंड की इंजन फायरिंग से अपनी दिशा और गति को ISS की कक्षा के अनुरूप समायोजित किया.

Close Approach (नजदीकी पहुंच): जब यान 200 मीटर की दूरी पर आया, तब ड्रैगन और ISS के बीच सीधा संपर्क शुरू हुआ.

Final Approach (अंतिम मिलन): यह सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है जिसमें यान सीधे ISS से जुड़ता है.

Soft Capture and Hard Docking (सॉफ्ट और हार्ड डॉकिंग):  पहले सॉफ्ट डॉक होता है और फिर मैकेनिकल लॉकिंग से हार्ड डॉकिंग पूरी होती है.

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इस मिशन के जरिए भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष में नेतृत्व की भूमिका को दर्शाया है. उनका यह अभियान न केवल भारत की वैज्ञानिक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि युवाओं को विज्ञान, अंतरिक्ष और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रेरित करने वाला एक ऐतिहासिक क्षण भी है.