काठमांडू: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि किशोर न्याय केवल इससे संबंधित जेजे अधिनियम के निर्देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न विधायी कानूनों की जटिल पारस्परिक क्रिया से आकार लेता है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ अपनी बात के समर्थन में उस 14-वर्षीया बलात्कार पीड़िता का जिक्र किया जिसके 30 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने का उच्चतम न्यायालय ने मंजूरी दी थी.
शीर्ष अदालत ने 22 अप्रैल को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके नाबालिग लड़की को 30 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति प्रदान की. यह अनुच्छेद शीर्ष अदालत को किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का अधिकार प्रदान करता है.
गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत भ्रूण के गर्भपात की अधिकतम सीमा विवाहित महिलाओं के साथ-साथ विशेष श्रेणियों की महिलाओं के लिए 24 सप्ताह है. इनमें बलात्कार पीड़िताएं और अन्य कमजोर महिलाएं, यथा-विकलांग और नाबालिग शामिल हैं. नेपाल के प्रधान न्यायाधीश विश्वंभर प्रसाद श्रेष्ठ के निमंत्रण पर तीन-दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर नेपाल आए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने शनिवार को यहां किशोर न्याय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए नाबालिग लड़की से संबंधित मामले का जिक्र किया.
उन्होंने कहा कि भारत अपनी किशोर न्याय प्रणाली को विकसित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत में लगभग चार दशक तक विभिन्न किशोर न्याय कानूनों के कार्यान्वयन से सुरक्षा प्रणाली के अंतर्गत बच्चों की जरूरतें पूरी करने वाली सुविधाएं, संरचनाएं और प्रणालियां स्थापित हुई हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में किशोर न्याय केवल किशोर न्याय (जेजे) अधिनियम के निर्देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न विधायी कानूनों की जटिल पारस्परिक क्रिया से आकार लेता है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लाया गया एक हालिया मामला इसका उदाहरण है: एक 14-वर्षीया लड़की ने 1971 के एमटीपी अधिनियम के तहत अपना गर्भ समाप्त करने की अनुमति मांगी. नतीजों के डर से और अपनी बेगुनाही के कारण बाधा उत्पन्न होने पर, वह बलात्कार के बारे में चुप रही और तब तक सहती रही जब तक वह अपनी गर्भावस्था के अनुकूल नहीं हो गयी.
उन्होंने कहा कि उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की सुरक्षा का महत्व पहचानते हुए शीर्ष अदालत ने गर्भ समाप्त करने का अनुरोध स्वीकार कर लिया. हालांकि, उसने अंतत: गर्भ समाप्त करने के आदेश के खिलाफ निर्णय लिया. सीजेआई ने कहा कि किशोर न्याय कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण चुनौती अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और संसाधन है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में.
उन्होंने कहा कि अपर्याप्त किशोर सुधार या पुनर्वास गृहों की कमी के कारण यहां भीड़भाड़ बढ़ सकती है और रहन-सहन की स्थिति घटिया हो सकती है, जिससे किशोर अपराधियों को उचित सहायता और पुनर्वास प्रदान करने के प्रयासों में बाधा आ सकती है. उन्होंने कहा कि किशोर न्याय कानूनों के कार्यान्वयन में सामाजिक वास्तविकताओं को भी ध्यान में रखना होगा.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘...'बच्चों के अधिकार: भारत में सार्वजनिक स्थानों पर बाल भिखारियों का एक केस स्टडी' शीर्षक से एक अध्ययन इस खतरनाक वास्तविकता पर प्रकाश डालता है कि भारत में हर साल लगभग 44,000 बच्चे आपराधिक गिरोहों द्वारा फंसाए जाते हैं. इन बच्चों को भीख मांगने, तस्करी और अन्य आपराधिक गतिविधियों के लिए मजबूर किया जाता है.
किशोर न्याय कानूनों के कार्यान्वयन में विकलांग किशोरों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों पर भी विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अपराधों की बदलती प्रकृति, विशेष रूप से डिजिटल अपराध के बढ़ते प्रचलन, के कारण विश्व स्तर पर किशोर न्याय प्रणालियों के लिए नई चुनौतियां पैदा हुई हैं.
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