Army Day 2019: आजाद भारत के पहले सेनाध्यक्ष को समर्पित है ये दिन, पाक राष्ट्रपति भी करता था इनके जज्बे को सलाम
के. एम. करिअप्पा

भारतीय थल सेना (Indian Army) हर साल 15 जनवरी (January 15) को सेना दिवस (Army Day) मनाती है. सेना दिवस के मौके पर स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय सेनाध्यक्ष के. एम. करिअप्पा (K. M. Cariappa) के पद ग्रहण उपलक्ष्य को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. करिअप्पा ने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश राज के समय के भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर (General Sir Francis Butcher) से यह पदभार ग्रहण किया था. रिटायरमेंट के 33 साल बाद करिअप्पा को फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था. यह दिन सैन्य परेडों, सैन्य प्रदर्शनियों व अन्य आधिकारिक कार्यक्रमों के साथ दिल्ली व सभी सेना मुख्यालयों में मनाया जाता है.

28 जनवरी 1899 में कर्नाटक के कुर्ग में शनिवर्सांथि नामक स्थान पर करिअप्पा का जन्म हुआ था. करिअप्पा को घर के सभी लोग प्यार से ‘चिम्मा’ कहकर पुकारते थे. करिअप्पा ने महज 20 साल की आयु में ब्रिटिश भारतीय सेना में नौकरी शुरू की थी. करिअप्पा ने सेंकेंड लेफ्टिनेंट पद पर सेना में नौकरी की शुरुआत की थी. करिअप्पा ने साल 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर सेना का नेतृत्व किया था. 15 जनवरी 1949 में उन्हें भारत का सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था. इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 15 जनवरी को सेना दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

करिअप्पा को आजादी के वक्त दोनों देशों की सेनाओं के बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया था. करिअप्पा साल 1953 में सेना से रिटायर हो गए थे. करिअप्पा ने अपनी सर्विस के दौरान कई कारनामे किए लेकिन रिटायरमेंट के बाद उनकी जिंदगी का एक ऐसा प्रसंग है जिसने उन्हें सबसे महान सैनिक बना दिया था. 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान करिअप्पा रिटायर होकर कर्नाटक में रह रहे थे. उनका बेटा के. सी. नंदा करिअप्पा उस वक्त भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट था. युद्ध के दौरान उनका विमान पाकिस्तान बॉर्डर में प्रवेश कर गया, जिसे पाक सैनिकों ने गिरा दिया. नंदा ने विमान से कूदकर जान तो बचा ली, लेकिन पाक सैनिकों ने उन्हें कब्जे में ले लिया. यह भी पढ़ें- भारत-चीन बॉर्डर को लेकर मोदी सरकार का बड़ा फैसला, युद्ध की स्थिति में सेना के तुरंत पहुंचने के लिए होगा 44 सड़कों का निर्माण

इस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे. अयूब खान कभी करिअप्पा के जूनियर थे और भारतीय सेना में नौकरी कर चुके थे. नंदा के पकड़े जाने का पता अयूब खान को चला तो उन्होंने तुरंत के. एम. करिअप्पा को फोन किया और बताया कि वह उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं. इस पर करिअप्पा ने बेटे का मोह त्याग कर कहा कि वो सिर्फ मेरा बेटा नहीं, भारत मां का लाल है. उसे रिहा करना तो दूर कोई सुविधा भी मत देना. करिअप्पा ने अयूब खान से कहा कि या तो आप सभी युद्धबंदियों को रिहा करें या फिर किसी को नहीं. हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद सभी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया गया.